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नीलगाय से पहले इन जानवरों को भी उतारा गया है मौत के घाट

कभी लोगों की जान पर आफत के नाम पर, तो कभी फसलों के नुकसान के नाम पर जानवरों की हत्‍या की इजाजत दी जाती है.

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भारत
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बिहार में 250 से अधिक नीलगायों को मारने का मामला काफी तूल पकड़ रहा है. इस मामले को लेकर महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर की आपस में ठन भी गई.

लेकिन यह पहला मामला नहीं है, जब इतनी बड़ी संख्या में किसी जानवर को मारा गया हो. इसके अलावा भी कई राज्यों में जानवरों को मारने की इजाजत दी गई.

कभी लोगों की जान पर आफत के नाम पर, तो कभी फसलों के नुकसान के नाम पर जानवरों की हत्‍या की इजाजत दी जाती है.
नीलगाय की समस्या सिर्फ बिहार में ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों में भी है (फोटो: Quint Hindi)
कभी लोगों की जान पर आफत के नाम पर, तो कभी फसलों के नुकसान के नाम पर जानवरों की हत्‍या की इजाजत दी जाती है.
कभी लोगों की जान पर आफत के नाम पर, तो कभी फसलों के नुकसान के नाम पर जानवरों की हत्‍या की इजाजत दी जाती है.
केरल में बड़े स्तर पर कुत्तों का सफाया किया गया (फोटो: Quint Hindi)

ये तो सामान्य जानवर थे, जिनकी हत्या की स्वीकृति दी गई. लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि राष्ट्रीय पक्षी मोर को मारने के बारे में भी कोई सोच सकता है?

इसी वर्ष फरवरी महीने में ही गोवा के कृषि मंत्री रमेश तवाड़कर ने राज्य में मोरों की संख्या कम करने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने बंदरों और जंगली सूअरों की तरह मोरों को भी फसलों के लिए नुकसानदेह माना है.

कभी लोगों की जान पर आफत के नाम पर, तो कभी फसलों के नुकसान के नाम पर जानवरों की हत्‍या की इजाजत दी जाती है.
राष्ट्रीय पक्षी मोर को भी नहीं छोड़ा (फोटो: Quint Hindi)

कम होते जंगल के कारण दिन-ब-दिन इंसानों और जानवरों के बीच टकराव देखने को मिलते ही रहते हैं. लेकिन क्या इस समस्या का अब यही समाधान रह गया है कि इन बेजुबानों की हत्या कर दी जाए?

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