नोएडा की अमीर बस्तियों के बीच निठारी गांव के घरेलू कामगारों के घरों में अब चूल्हे और उनके चेहरे बुझे हुए हैं. उनका कहना है कि जो उन्हें पहले काम देते थे वो अब उन्हें पूछ भी नहीं रहे हैं, उनके पास अब घर चलाने के लिए न तो काम है और न ही पैसे.
मैं पांच घरों में काम करती हूं.जब लॉकडाउन हुआ था, मुझे उस महीने (मार्च) का पैसा मिला था. उसके बाद और पैसा नहीं दिया.आज जब मैं गई पैसे मांगने तो उन्होंने बोला हमारी ही सैलरी नहीं आ रही है तो तुम्हे कहां से दें. उन्होंने कहा कि हम लोग अपने गांव जा रहे हैं, काम पर मत आना.अर्चना हालदार, घरेलू कामगार
अर्चना ने आगे कहा. मेरा एक बेटा गांव में है और दूसर यहां है वो बीमार है, उसके इलाज के लिए ही मैं यहां आई हूं, मैंने सोच था कि यहीं काम करूंगी और बेटे का इलाज कराऊंगी, लेकिन यहां आ कर फंस गए हम लोग.
अर्चना की तरह और भी हैं, जिनकी हालात कुछ ऐसी ही है. 30 साल की शौंपा के पति दिल की बीमारी से गुजर गए लॉकडाउन के बाद काम भी छिन गया.
जब से मेरे पति गुजरे हैं तब से मैं घर पर ही बैठी हूं काम ही नहीं चल रहा है, बस सोचती रहती हूं कि कैसे गुजारा हो.शौंपा, घरेलू कामगार
दया और भीख का सहारा
एक दूसरी घरेलू कामगार बसंती सरकार बताती हैं कि, उनका सारा पैसा खत्म हो गया है और अब दया और भीख ही सहारा है.
बसंती कहती हैं कि, “मुझे अपने बेटे के स्कूल और ट्यूशन की फीस देनी है. लेकिन मेरे पास पैसा नहीं है. और यह पहले ही महीने का ही फीस है. मैं तीन महीने से बच्चों की फीस नहीं दे पा रही हूं. स्कूल वाले फीस मांग रहे हैं. मेरा बेटा बोलता है कि फीस देना है, लेकिन मैंने उससे ये नहीं कहा है कि मैं उसकी फीस दे पाऊंगी या नहीं.”
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