कोलकाता से करीब 50 किलोमीटर दूर बैरकपुर लोकसभा सीट के नाहटी ब्लॉक में मेरी मुलाकात 42 साल के प्रवीर कुमार दास से होती है, जो पिछले 25 साल से लाल झंडा उठाए हैं.
‘हम लोग पक्का कम्युनिस्ट हैं. इंकलाब जिंदाबाद.” प्रवीर कुमार बातचीत की शुरुआत में ही ऐलान कर देते हैं.
‘पार्टी हारे या जीते हम वामपंथी (उम्मीदवार) को ही वोट देंगे.’ वह कहते हैं, लेकिन अगले ही पल दास जो बताते हैं वह आज बंगाल की राजनीति का एक अविश्वसनीय सच है.
‘हम लोग वोट तो गार्गी चटर्जी (बैरकपुर लोकसभा सीट से सीपीएम उम्मीदवार) को ही देंगे, लेकिन देश के लिए नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री होना जरूरी है.’
दास हमें बताते हैं कि उनके जैसे कट्टर वामपंथी अपनी पार्टी को कभी नहीं छोड़ सकते, लेकिन भारत का गणतंत्र और जनता केंद्र में मोदी को ही मांग रहा है.
‘हमारे आसपास जो पाकिस्तान और चीन जैसा संत्रासवादी देश है यह मोदी से डर रहा है, कांप रहा है. बहुत दिनों बाद भारतवर्ष को एक हीरो मिला है’ दास ने मुझे बताया.
बंगाल में 2011 में सत्ता खोने के बाद लेफ्ट का आधार खिसकता गया है. 2006 में रिकॉर्ड जीत हासिल करने वाली सीपीएम को 2011 में केवल 40 सीटें मिल पाई और उसका वोट प्रतिशत 37% से घटकर 30% रह गया.
इसके बाद 2014 लोकसभा चुनावों में सीपीएम को केवल दो सीटों पर जीत मिली और 2016 के विधानसभा चुनावों में लेफ्ट फ्रंट को कांग्रेस से गठबंधन करना पड़ा लेकिन निराशा ही हाथ आई.
बंगाल में ममता बनर्जी को हराने की कोशिश
बंगाल में जमीन पर घूमने और प्रवीर दास जैसे वामपंथियों के बयानों को परखने से पता चलता है कि सीपीएम और दूसरी लेफ्ट पार्टियों का काडर कई बूथों पर ममता बनर्जी को हराने के लिए काम कर रहा है.
‘यह बात सीटें जिताने की नहीं ममता को कमजोर करने की है. ममता बनर्जी की तानाशाही से सब परेशान हैं. चाहे वामपंथी हो या कोई और हो. इसलिए जिन बूथों पर लगता है कि सीपीएम कमजोर है, वह हमें वोट दिलवाते हैं तो उनका स्वागत है.’दमदम सीट पर एक बीजेपी कार्यकर्ता ने मुझे बताया
बीजेपी राज्य के सीमावर्ती जिलों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. बशीरहाट, मालदा, मुर्शीदाबाद समेत 1 दर्जन से अधिक जिलों पर बीजेपी के लिए ध्रुवीकरण के लिहाज से जमीन तैयार है.
बांग्लादेशी घुसपैठियों और गो-तस्करी के नाम पर भावनात्मक विभाजन कर बीजेपी राज्य की 23 सीटें जीतने की बात कर रही है, लेकिन पार्टी के पास राज्य में संगठन का अभाव है और उसे चुनाव जीतने के लिए अधिक ताकत चाहिए.
‘पहले ममता हटाओ फिर बीजेपी भगाओ’
उधर ममता बनर्जी राज्य की प्रशासनिक मशीनरी और काडर की ताकत के दम पर जमीन पर काफी मजबूत हैं. राज्य के कई सीटों पर 50 प्रतिशत या उससे अधिक मुस्लिम आबादी होने के कारण वह चुनावी गणित में आगे दिख रही हैं. ऐसे हाल में लेफ्ट फ्रंट के काडर को ‘पहले ममता हटाओ फिर बीजेपी भगाओ’ की रणनीति सूझ रही है.
‘प्रवीर दास जैसे कार्यकर्ताओं की मजबूरी है कि वह खुद पार्टी से दूर नहीं जा सकते, लेकिन ममता को हारते देखना चाहते हैं. उन्हें मोदी में यह उम्मीद दिखती है कि वह ममता को हरा सकते हैं,’एक स्थानीय पत्रकार ने बताया
बीजेपी के संभावित विस्तार के डर से राज्य का मुस्लिम वोट तृणमूल कांग्रेस के पास चला गया है. लेफ्ट के कार्यकर्ताओं को लगता है कि ममता को रास्ते से हटाकर फिर ‘सेक्युलर वोट’ को अपनी ओर लाया जा सकता है.
टीएमसी सांसद और बैरकपुर से उम्मीदवार दिनेश त्रिवेदी का प्रचार कर रहे तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ता जितोब्रतो पलित कहते हैं, ‘हमें पता है कि सीपीएम के काडर में यह भावना है. वह 2021 के चुनाव पर फोकस कर रहे हैं लेकिन यह रणनीति उनका नुकसान ही करेगी.’
ममता बनर्जी से नाराज बंगाल के लोग?
जहां ममता बनर्जी अपने समर्थकों को इस बारे में आगाह करती हैं, वहीं बंगाल में सीपीएम के वरिष्ठ नेताओं को भी लगता है कि बीजेपी की मदद करना ‘आत्मघाती’ होगा. खासतौर से त्रिपुरा में बीजेपी के आने के बाद ‘दमनचक्र’ सीपीएम के लिए कतई सुखद अनुभव नहीं है.
ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के खिलाफ डायमंड हार्बर सीट से लड़ रहे सीपीएम नेता फुहाद हलीम कहते हैं कि असल में टीएमसी और बीजेपी चुनाव में एक दूसरे की मदद कर रहे हैं, लेकिन वह यह भी मानते हैं कि ममता बनर्जी के ‘तानाशाही पूर्ण और दमनकारी’ रवैये के प्रति पूरे राज्य में काफी गुस्सा है.
पिछले साल पंचायत चुनावों में बंगाल में जबरदस्त हिंसा हुई और एक तिहाई सीटों पर विपक्षी पार्टियां नामांकन तक नहीं कर पाईं और टीएमसी के उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए, तो क्या यही गुस्सा धुर विरोधी बीजेपी को जीत दिलाने से परहेज नहीं करता?
सीपीएम पोलित ब्यूरो के एक वरिष्ठ सदस्य का मानना है कि पार्टी का काडर बीजेपी की मदद नहीं कर रहा, लेकिन वामपंथियों के वोटर रहे लोगों का एक हिस्सा जरूर बीजेपी की ओर जा रहा है.
‘बंगाल में हमारा नारा है ‘तृणमूल को हराओ, बीजेपी को हटाओ’ लेकिन कुछ जगह लोग तृणमूल के गुंडों के डर से बीजेपी की ओर जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि बीजेपी उन्हें इस भय से छुटकारा दिला सकती है.’, इस पोलित ब्यूरो नेता ने कहा.
(हृदयेश जोशी स्वतंत्र पत्रकार हैं. उन्होंने बस्तर में नक्सली हिंसा और आदिवासी समस्याओं को लंबे वक्त तक कवर किया है.)
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