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"चुनाव लड़ना मकसद था, जीतना नहीं" PM मोदी के खिलाफ न लड़ पाने पर क्या बोले श्याम रंगीला?

Shyam Rangeela nomination rejected: श्याम रंगीला ने कहा, ‘‘यह जो खेल खेला जा रहा है, लोकतंत्र को जिस तरह खिलौना बना दिया गया है. अब मैं उस का शिकार हो गया हूं. "

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द क्विंट से बातचीत में करीब एक हफ्ते पहले कॉमेडियन श्याम रंगीला (Comedian Shyam Rangeela) पीएम मोदी (PM Modi) के गढ़ वाराणसी (Varanasi LokSabha Election) में उनसे मुकाबला करने के लिए काफी उत्साहित थे. हालांकि, पांच दिनों की भागदौड़ और इंतजार के बाद 15 मई को श्याम रंगीला को बताया गया कि उनका नामांकन खारिज कर दिया गया है.

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"मैंने वैसे भी जीतने के बारे में नहीं सोचा था, मुझे पता था कि यह मुश्किल होगा. मेरा लक्ष्य जीतना नहीं था, लेकिन चुनाव लड़ना था. मेरा यह फैसला यह दिखाने के लिए था कि लोकतंत्र में मौजूदा हालात को चुनौती दी जा सकती है, लेकिन ऐसा भी नहीं होने दिया गया."
श्याम रंगीला ने द क्विंट से कहा

लेकिन श्याम रंगीला के नामांकन को खारिज किये जाने से पहले वास्तव में क्या हुआ था? उनका आरोप है कि चुनाव आयोग के तर्क आधारहीन है और उन्होंने जानबूझकर देरी की.

श्याम रंगीला ने कहा, ‘‘उन्होंने साफ संदेश दे दिया है कि चुनाव आयोग कंट्रोल में है. जो खेल खेला जा रहा है और लोकतंत्र के साथ किस तरह खिलवाड़ किया जा रहा है. उस खेल का अब मैं शिकार हो गया हूं."

हलफनामे और शपथ पर भागा दौड़ी

श्याम रंगीला ने कहा कि केवल वे ही नहीं, बल्कि लगभग 300 के करीब ऐसे उम्मीदवार थे, जो अपना नामांकन दाखिल करना चाहते थे लेकिन उनका भी यही हाल हुआ. उन्होंने कहा, "ऐसे लोग हैं, जो लड़ना चाहते हैं, लेकिन उनका नामांकन स्वीकार नहीं किया जा रहा है."

उस दिन नामांकन दाखिल करने आए लगभग 70% लोग नामांकन दाखिल नहीं कर पाए, वे कार्यालय से बाहर चले गए, उन्होंने नारे लगाए और अपने दस्तावेज के टुकड़े कर दिए.

यह लोग तीन दिन तक लाइन में खड़े थे.

लेकिन असल में हुआ क्या था ?

सभी दस्तावेज आधिकारिक रूप से जमा करने की आखिरी तारीख 14 मई, दोपहर 3 बजे तक थी.

उन्होंने कहा, "उन्होंने हमें दोपहर तीन बजे के बाद ही अंदर जाने दिया, मुझे मेरे वकील प्रेम प्रकाश को भी अंदर नहीं लाने दिया. हम करीब 30 लोग थे, हमारे दस्तावेजों की जांच की गई. मेरे फॉर्म में एक भी बॉक्स खाली नहीं था. रंगीला ने बताया, "उन्होंने हमें शाम पांच बजे दूसरा हलफनामा देने को कहा, जबकि अंतिम समयसीमा तीन बजे थी."

रंगीला ने उस दिन के घटना को याद करते हुए बताया कहा, "अधिकारियों ने मुझे तीन बजे के बाद ही अंदर जाने दिया. जब अंदर गया तो मुझे मेरे वकील प्रेम प्रकाश को भी अंदर लाने की अनुमति नहीं दी गई. हम करीब 30 लोग थे, हमारे दस्तावेजों की जांच की गई. मेरे फॉर्म में एक भी बॉक्स खाली नहीं था पर उन्होंने हमसे दूसरा हलफनामा शाम पांच बजे दर्ज करने को कहा. जबकि हलफनामा दायर करने की समयसीमा तीन बजे तक थी."

श्याम रंगीला को रात 11.59 पर अपना हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा गया. पीआरओ ने दस्तावेज पर यह समय लिखा भी था.

उन्होंने आगे कहा, "जब हम उसी रात 10 बजे से पहले, उनके दिए समय सीमा से पहले पहुंचे तो डीएम ने कहा, 'वे यहां कैसे आ गए? उन्हें अंदर किसने आने दिया?' उन्होंने शायद यह मान लिया था कि हम रात को नहीं आएंगे और अगर हम नहीं आते हैं तो बचा काम हम पूरा नहीं कर पाएंगे."

श्याम रंगीला डीएम कार्यालय भी गए और समय दिखाने के लिए वीडियो भी रिकॉर्ड किया.

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अगली सुबह रंगीला को बताया गया कि उनका नामांकन खारिज कर दिया गया है. जिसके बाद वह डीएम राजलिंगम से मिलने गए और उनसे सवाल किया कि "मैं पिछले दिन रात 10 बजे यहां था, आपने मेरा नामांकन खारिज क्यों किया और कागज पर रात 11:30 बजे तक का समय क्यों लिखा?" आप मुझसे मेरा डॉक्यूमेंट क्यों नहीं ले सके?"

उन्होंने जवाब दिया, 'वह आने का वक्त नहीं था, कोई आधिकारिक समय नहीं था. आप बस हमसे बहस कर रहे हैं.' जब मैंने उन्हें वह फॉर्म दिखाया, जिसमें उनके अधिकारी ने रात 11:59 बजे का समय लिखा था, तो उन्होंने मुझसे कहा, 'हम जो भी समय चाहे लिख सकते हैं, लेकिन आखिरी तारीख 14 मई को दोपहर 3 बजे तक ही थी. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम क्या लिखते हैं.'
श्याम रंगीला ने द क्विंट से कहा

जहां तक शपथ की बात है तो रंगीला ने निम्नलिखित घटनाओं का उल्लेख किया:

सबसे पहले, उम्मीदवारों ने समय सीमा के भीतर, एक दिन पहले ही शपथ लेने का अनुरोध किया था. "अधिकारियों, विशेषकर डीएम ने हमें आश्वासन दिया कि यह काम बाद में किया जाएगा, उन्होंने हमें पर्चियां दीं और हमें वहां से चले जाने को कहा."

दूसरा, उनके वकील ने उन्हें यह भी बताया कि शपथ दिलाने की जिम्मेदारी कार्यालय की है. "मैंने अधिकारियों से भी इसके बारे में पूछा, मुझे बताया गया कि यह एक सरल प्रक्रिया है, जिसमें अधिकारी और मैं दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हैं और शपथ ग्रहण हो जाती है. कुछ भी जटिल नहीं होता है. इसे पूरा करना उनकी जिम्मेदारी है."

तीसरा, अन्य उम्मीदवार जिन्होंने अपना शपथ लिखा था और उसे अपने दस्तावेजों के साथ संलग्न किया था, अधिकारी ने उस पर हस्ताक्षर नहीं किए और उन्हें बोला कि उन्होंने अपना शपथ प्रस्तुत नहीं किया है. "मैंने लोगों को इससे जूझते देखा है. वे बस अपनी बात से मुकर गए."

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'एक सुनियोजित साजिश': श्याम रंगीला

इसके अलावा, उन्होंने बताया कि 14 मई तक 15 नामांकन हुए थे, फिर प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपना नामांकन दाखिल किया और अब तक केवल आठ नामांकन ही स्वीकार किए गए हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि 15 में से सात फर्जी उम्मीदवार थे, जिन्हें जानबूझकर पूरी प्रक्रिया में देरी करने के लिए रखा गया था, ताकि अन्य लोग दस्तावेज प्रक्रिया पूरी न कर सकें.

हालांकि, श्याम ने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने कभी शपथ लेने से इनकार नहीं किया, बल्कि असल में उन्होंने ही इसके बारे में पूछा था. बावजूद इसके डीएम राजलिंगम ने एक्स पर पोस्ट करके नामांकन खारिज होने के लिए उन्हें दोषी ठहराया.
उन्होंने कहा, "यह एक सोची-समझी साजिश थी, उन्हें पता था कि ऐसा होगा. उन्होंने हमसे गुस्सा कर सवाल किया कि हम वहां रात में क्यों थे, हम अपनी मर्जी से क्यों जाएंगे? कौन चाहेगा? उन्होंने हमें ऐसा करने को कहा था और हम उनके आदेश के अनुसार जो कुछ भी कर सकते थे, कर रहे थे."

चुनाव में पीएम मोदी को टक्कर देने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ रंगीला ने कहा, वह "चुनाव आयोग को बेनकाब करेंगे, हम चुनाव ना लड़ सके, इसलिए यह रणनीतिक चाल चली गई थी."

एक हफ्ते पहले जब श्याम रंगीला ने द क्विंट से बात की थी, तो उन्होंने हमें बताया था कि साल 2017 में जो घटना हुई थी, उसके बाद से ही उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया था.

उस वक्त टीवी शो 'लाफ्टर चैलेंज' के एक एपिसोड को प्रसारित होने से रोक दिया गया था. इसमें रंगीला कंटेस्टेंट थे, जिसमें उन्होंने न केवल प्रधानमंत्री मोदी बल्कि राहुल गांधी की भी नकल की थी.
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उनका मानना है कि कॉमेडी में ऐसी सेंसरशिप नहीं होनी चाहिए. इसके बाद श्याम रंगीला को टीवी से काम मिलना बंद हो गया, जिससे उनका करियर प्रभावित हुआ. यही घटना उन्हें राजनीति की ओर ले गयी.

उन्होंने कहा, "जिस उद्देश्य से मैं चुनाव लड़ना चाहता था, चुनाव न लड़ने के बावजूद भी मैं उस उद्देश्य को पूरा करूंगा. अगर मैंने लड़ाई लड़ी होती तो मुझे अनुमति मिल जाती और मैं प्रतिबंधों के भीतर ही काम कर पाता. लेकिन मेरी कॉमेडी और कंटेट के माध्यम से मेरा लक्ष्य और उद्देश्य लोकतंत्र को बचाना है, जो अभी भी सांस ले रहा है"

उन्होंने कहा कि अन्य लोगों की तरह वह पैसे वाले नहीं हैं, बल्कि किसान परिवार से आते हैं. उनके पास कोई आलीशान संपत्ति या पूंजी नहीं है, जिससे उन्हें चुनावी लड़ाई के लिए धन जुटाने में मदद मिलती.

उनका एकमात्र संकल्प मतदान और लोकतंत्र के बारे में बात करना है और यही वह बात है जो उन्हें अभी भी दृढ़ बनाए रखती है.

उन्होंने बातचीत के दौरान यह कहकर अपना बात खत्म की कि "मुझे खुशी है कि मैंने वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला किया, अगर मैंने ऐसा नहीं किया होता तो ये सारी खामियां और रणनीतियां सामने नहीं आती. अब लोग देश के हालात को खुद देख सकते हैं."

वाराणसी में वर्तमान लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में मतदान होगा.

(द क्विंट ने वाराणसी डीएम कार्यालय से संपर्क किया है और जवाब मिलते ही इस कॉपी को अपडेट कर दिया जाएगा.)

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