"जो भी बच्चा बारहवीं में अच्छे नंबर लाएगा उसको आगे पढ़ाई के खर्च की चिंता नहीं करनी पड़ेगी…"
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह (Shivraj Singh Chouhan) का ये बयान देखने सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन इसी प्रदेश में 2,357 स्कूल बिना शिक्षकों के चल रहे हैं तो वहां 8,000 से ज्यादा स्कूलों में मात्र एक ही शिक्षक पदस्थ हैं.
अभी पिछले हफ्ते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर में स्कूली बच्चों को संबोधित करते हुए ऊपर लिखा बयान दिया था लेकिन शायद उनके पास स्कूली शिक्षा विभाग के ये आंकड़े मौजूद नही थे. सवाल यह है कि जब स्कूल में टीचर ही नही होंगे तो बच्चा बारहवीं कक्षा तक पहुंचेगा कैसे ?
मध्यप्रदेश के किस्सों में आज बात करेंगे बेतरतीब शिक्षा व्यवस्था की जो लाखों छात्रों का भविष्य खतरे में डाल रही है.
आखिर क्यों 2300 से अधिक स्कूलों में कोई टीचर नही है?
इसका एक जवाब जो मध्यप्रदेश शिक्षक संघ के अध्यक्ष उपेंद्र कौशल देते हैं उसके मुताबिक प्रदेश में शिक्षक भर्ती में हो रही देरी है तो वहीं दूसरा कारण मनपसंद ट्रांसफर नीति है.
दरअसल अगले साल मध्यप्रदेश में चुनाव होना है ऐसे में हर विभाग अपने अपने लोगों को खुश करने में लगा हुआ है. इसी क्रम में बीते सितंबर में स्कूल शिक्षा विभाग ने 2022 की ट्रांसफर नीति के तहत शिक्षकों को मनचाहे इलाकों में ट्रांसफर के आदेश दे दिए.
उक्त ट्रासंफर प्रक्रिया में 43,118 ऑनलाईन आवेदनो में से कुल 25,905 टीचर्स के ट्रांसफर किए गए हैं.
हालांकि इतना कुछ करने के बाद भी शिक्षक विहीन स्कूलों की संख्या में कमी आई मात्र 123 की और एक शिक्षक वाले स्कूलों की कुल संख्या 9461 से घटकर 8307 तक आ पाई. यानी कि पूरी खिचड़ी पकने के बाद भी प्रदेश भर में वर्तमान में 2357 स्कूलों में एक भी शिक्षक नही हैं और 8307 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक है.
मामले पर उपेंद्र कौशल ने क्विंट से आगे बातचीत के दौरान कहा कि विभाग की लापरवाही और शिक्षकों की कमी की वजह से ये हालात पैदा हुए हैं.
"एक तो पहले ही स्कूलों में शिक्षकों की संख्या कम है. शिक्षक छात्र अनुपात कमज़ोर है और उसके बाद भी सरकार शिक्षक भर्ती में देरी किए जा रही है. अप्रैल-मई में हुई परीक्षाओं के बाद भी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र नही मिला है. और ऊपर से विभाग ने मनपसंद ट्रांसफर के लिए फॉर्म भरवा लिए. मनचाहा ट्रांसफर देने के कारण हर जिले के ग्रामीण अंचल के स्कूलों में पदस्थ शिक्षकों ने शहरी अंचल के स्कूल में ट्रांसफर करवा लिए और ग्रामीण स्कूल अब शिक्षक विहीन हो गए हैं .परीक्षाएं नजदीक हैं, ऐसे में बच्चों का भविष्य खतरे में डालने के लिए विभाग जिम्मेदार होगा"उपेंद्र कौशल
उपेंद्र आगे कहते हैं कि विभाग में कारवाई के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति ही होती है और मध्यप्रदेश में शिक्षा के स्तर में गिरावट के लिए शिक्षकों से ज्यादा ऊपर बैठे अफसरों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
क्विंट ने स्कूली शिक्षा विभाग के आयुक्त अभय वर्मा और अपर संचालक डीएस कुशवाह से कई बार संपर्क करके जानकारी लेने का प्रयास किया लेकिन दोनों से ही कोई जवाब नही मिला है. जवाब मिलने पर खबर अपडेट की जाएगी.
मध्यप्रदेश में सरकारी वादों के इतर स्कूलों में भर्ती बच्चों की संख्या में कमी आई है. शिवराज मामा के भांजे भांजियों की शिक्षा और भविष्य को लेकर मध्यप्रदेश में स्थिति चिंताजनक है.
स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने बीते वर्ष 2021 में विधानसभा में कांग्रेसी विधायक प्रवीण पाठक के एक सवाल के जवाब में बताया था कि वर्ष 2010-11 में कक्षा 1 से 8 तक लगभग 105.30 लाख छात्र पढ़ रहे थे और 2020-21 में यह संख्या घटकर 64.3 लाख रह गई है.
यानी कि लगभग 30 लाख बच्चों ने सरकारी स्कूल छोड़ दिया था. इसके बचाव के तर्क में कहा गया था कि इन बच्चों ने प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन ले लिया है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वर्ष 2010-11 और 2019-20 में प्राइवेट स्कूलों में मात्र 3 लाख बच्चों के नामांकन की ही बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी.
जहां एक तरफ स्कूलों से बच्चे दूर जा रहे हैं, और शिक्षकों की कमी ने इस हालात को और खराब कर दिया है वहीं दूसरी ओर हजारों शिक्षक ऐसे हैं जो प्रतिनियुक्ति पर हैं.
यानी कि नौकरी तो शिक्षक की कर रहे हैं, वेतन भी पा रहे हैं लेकिन काम दूसरे विभागों, मंत्रियों और नेताओं के यहां कर रहे हैं. मूल विभागों को छोड़ अन्य विभागों में ड्यूटी बजा रहे शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति खत्म करने के आदेश भी बेअसर साबित हो रहे हैं.
ऐसे में 18 सालों के बीजेपी शासनकाल में स्कूली शिक्षा की हालत सुदृढ़ हुई है ऐसा कहना गलत होगा.
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