महाराष्ट्र चुनावों के नतीजे से ये तो साफ है कि राज्य में एक बार फिर सरकार बीजेप-शिवसेना गठबंधन की बनेगी, लेकिन गठबंधन की दोनों पार्टियों में कौन बड़ा रोल निभाएगा और किसे छोटे भाई से ही संतुष्ट होना पड़ेगा ये खींचतान का मुद्दा बनता दिख रहा है. गुरुवार 24 अक्टूबर को आए नतीजों के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सबसे पहले कहा कि पार्टी फिफ्टी-फिफ्टी से पीछे नहीं हटेगी.
उद्धव ठाकरे ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने तेवर साफ कर दिए कि वो 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान अमित शाह के साथ मुख्यमंत्री पद को लेकर हुए समझौते से पीछे नहीं हटने वाली.
हालांकि दोनों पार्टियों को 2014 के मुकाबले इस बार सीटों का नुकसान हुआ है. 2014 विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन नहीं हो पाया था और दोनों पार्टियों ने अकेले ही सभी सीटों पर चुनाव लड़ा था.
पूर्ण बहुमत न होने की स्थिति में दोनों पार्टियों को आखिर गठबंधन करना पड़ा था, लेकिन बीजेपी के मुकाबले कम सीट होने के कारण शिवसेना को छोटी भूमिका से ही काम चलाना पड़ा. उस वक्त देवेंद्र फडणवीस सरकार में शिवसेना को कोई बड़े मंत्रीपद भी नहीं मिले. फिर भी शिवसेना को तब इसी भूमिका से काम चलाना पड़ा.
शिवसेना को उस वक्त विपक्ष और मीडिया के तंज भी झेलने पड़े कि महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ी भाई की भूमिका वाली शिवसेना को सत्ता के चक्कर में छोटे भाई के तौर पर काम करना पड़ रहा है. इसके बावजूद वो सत्ता में बने रहे.
बीएमसी चुनाव के वक्त भी दोनों पार्टियों में गठबंधन टूटा था और उद्धव ने यहां तक बोल दिया था कि वो भविष्य में बीजेपी के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे.
इसके बावजूद लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अमित शाह ने उद्धव से मुलाकात की और फिर दोनों पार्टियों के बीच समझौता हो गया. विधानसभा चुनाव में भी ये गठबंधन जारी रहा.
लेकिन एक बार फिर शिवसेना को छोटी भूमिका ही मिली और सिर्फ 126 सीटों से ही काम चलाना पड़ा. लेकिन मौजूदा नतीजों के बाद शिवसेना ने साफ कर दिया है कि छोटा या बड़ा भाई वाली कोई बात नहीं चलने वाली और दोनों पार्टियों की ताकत बराबर है. साफ तौर पर उद्धव बीजेपी पर दबाव का ये मौका नहीं छोड़ना चाहते.
दबाव का एक और कारण- आदित्य
लेकिन दबाव बनाने का एक और बड़ा कारण है आदित्य ठाकरे. पहली बार ठाकरे परिवार के किसी सदस्य ने चुनाव लड़ा और वो जीते भी. ऐसे में आदित्य ठाकरे को लेकर भी उद्धव बार्गेनिंग पावर का इस्तेमाल करना चाहते हैं.
शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत समेत कई नेता पहले ही अपनी इच्छा जता चुके हैं कि वो आदित्य को मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं. खुद उद्धव ने सामना को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने बाला साहेब ठाकरे से वादा किया था कि एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाएंगे और उसे पूरा करके रहेंगे.
ऐसे में आने वाला वक्त दोनों पार्टियों के गठबंधन और महाराष्ट्र की राजनीति के लिए बेहद दिलचस्प होने वाला है. क्या दोनों पार्टियों के बीच ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री या शिवसेना को उपमुख्यमंत्री पद पर कोई सहमति बन पाती है? इस पर ही सबकी नजर रहेगी.
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