ADVERTISEMENTREMOVE AD

ऑपरेशन कैक्टस: भारत ने मालदीव को सेना भेजकर संकट से ऐसे उबारा था

मालदीव में गहराते सियासी संकट के बीच जानिए वो ऑपरेशन जिसमें भारतीय सेना ने इस देश को बड़े संकट से उबारा था

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

मालदीव में एक बार फिर राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है. मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने सुप्रीम कोर्ट के किसी भी आदेश को मानने से इनकार कर दिया है. साथ ही पुलिस और सेना को भी कहा गया है कि सरकार के खिलाफ किसी भी 'असंवैधानिक' आदेश को न माना जाए. मालदीव की संसद भी स्थगित है. अब वहां की सुप्रीम कोर्ट ने भारत समेत सभी लोकतांत्रिक देशों से अपील की है कि मालदीव में कानून का राज स्थापित करने में मदद करे.

ऑपरेशन कैक्टस

यहां से हम फ्लैशबैक में जा सकते हैं, और याद कर सकते हैं 1988 के उस दौर को जब भारत की राजीव गांधी सरकार ने मालदीव के पहले सियासी संकट में संकटमोचक की भूमिका निभाई थी. इस अभियान को 'ऑपरेशन कैक्टस' का नाम दिया गया. बेहद मुश्किल इस अभियान की कामयाबी के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गेट थ्रेचर यहां तक पाकिस्तानी अधिकारियों से भी भारत को तारीफें मिली थीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

किसी भी दूसरे देश से पहले भारत ने मदद की

साल 1988 में मौमूल अब्दुल गयूम मालदीव के राष्ट्रपति थे, इस दौरान श्रीलंकाई विद्रोहियों की मदद से मालदीव में विद्रोह की कोशिश की गई. राष्ट्रपति गयूम ने पाकिस्तान, श्रीलंका और अमेरिका समेत कई देशों को मदद के लिए संदेश भेजा. किसी भी दूसरे देश से पहले भारत के तात्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मालदीव की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया. फिर शुरू हुआ 'ऑपरेशन कैक्टस'.

खास बात ये है कि ऑपरेशन मालदीव में करना था, इस देश के बारे में कोई खास जानकारी किसी के पास उस वक्त तो नहीं थी. बता दें कि गूगल 'बाबा' भी तो उस वक्त नहीं हुआ करते थे.

दो दशकों तक बतौर सैन्य अधिकारी काम कर चुके सुशांत सिंह, इस ऑपरेशन के बारे में अपनी किताब में लिखते हैं- ये एक त्वरित, छोटी और सर्जिकल कार्रवाई थी. ऑपरेशन के नतीजे सटीक रहे लेकिन इसकी तैयारी अच्छी नहीं थी.

इस ऑपरेशन की तैयारियों के बारे में वो बताते हैं-

जब आपको ऐसी विदेशी जमीन पर कार्रवाई करनी है, जहां कि जानकारी आपको महज टूरिस्ट मानचित्र, कॉफी टेबल बुक और दूसरे विश्व युद्ध की खुफिया जानकारी के आधार पर ही आपको पता हो सके, ऐसे में अच्छी किस्मत का होना बहुत जरूरी है.

आपरेशन कैक्टस की कुछ खास बातें:

  • मालदीव में तख्तापलट की कोशिश वहीं के एक नाराज अप्रवासी अब्दुल्ला लुतूफी ने की थी.
  • लुतूफी ने ये हमला समंदर के जरिए मालदीव में घुस आए पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) के 80 लड़ाकों से कराया था. कई लड़ाके पहले ही भेष बदलकर मालदीव पहुंच चुके थे.
  • हिंद महासागर में स्थित मालदीव 3 नवंबर 1988 के दिन हथियारों और बमों से गूंज उठा.
  • गयूम को प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आश्वासन के बाद सेना तैयारियों में जुट गई, इस पूरे ऑपरेशन की हीरो रही इंडियन एयरफोर्स. पीएमओ से सूचना मिलते ही एयरफोर्स का एक विमान तैयार हो चुका था.
  • इस ऑपरेशन के लिए इंडियन एयरफोर्स ने तीन आईएल-76 और 10 एएन-32 परिवहन विमान उपलब्ध कराए गए, सैकड़ों की संख्या में पहुंचे भारतीय सैनिकों ने अनजान सी धरती पर पहुंचकर विद्रोहियों को चुन-चुनकर ढेर कर दिया.

बाद में लुतूफी भी धर लिया गया. ऐसे में ऑपरेशन कैक्टस की तारीफ श्रीलंका के भाड़े के सैनिकों के नेता लुतूफी ने भी की, जब उससे पूछा गया कि इस तरह के लापरवाही भरे अभियान के सफल होने की उम्मीद थी, उसने तपाक से दुस्साहसिकअंदाज में जवाब दिया,

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस बार क्या है मामला?

दरअसल, मालदीव की सुप्रीम कोर्ट ने 1 फरवरी को निर्वासित पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद समेत जेल में बंद दूसरे नेताओं को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था जिसके बाद से देश में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है और यामीन सरकार पर संकट खड़ा हो गया है. इसके बाद 4 जनवरी को मालदीव की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट पर आरोप लगाया कि वो राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को गिरफ्तार करवाना चाहती है, सेना इस बात पर जोर दे रही है कि ऐसे आदेशों को लागू नहीं किया जा सकता.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×