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मनमोहन सिंह बोले- देश में बढ़ती आर्थिक असमानता चिंता की बात

10 फीसदी सबसे ज्यादा अमीरों के पास 80 फीसदी से ज्यादा संपत्ति

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पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने भारत में अमीर और गरीब वर्ग के बीच बढ़ रहे गैप पर चिंता जताई है. पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा है कि बढ़ती असमानता चिंता की बात है और वेलफेयर स्टेट होने के नाते देश में इतनी गरीबी या आर्थिक गैर बराबरी नहीं हो सकती है.

सोशल डेवलपमेंट रिपोर्ट ‘भारत में बढ़ती असमानता, 2018’ जारी करने के मौके पर पूर्व पीएम ने कहा कि कुछ सामाजिक समूह गरीबी हटाने वाले कई कार्यक्रमों और ठोस नीतियों के बावजूद काफी गरीब हैं.

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मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत आज दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन आर्थिक विकास की उच्च दर बढ़ती असमानता से जुड़ी हुई है. इनमें आर्थिक, सामाजिक, क्षेत्रीय और ग्रामीण शहरी असमानता शामिल है.

रिपोर्ट के लॉन्च होने के मौके पर पूर्व पीएम ने कहा:

‘‘बढ़ती असमानता हमारे लिए चिंताजनक है, क्योंकि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक असमानतओं का बुरा प्रभाव हमारी तेज और लगातार होने वाले विकास को नुकसान पहुंचा सकते हैं. भारत एक वेलफेयर स्टेट है, हम अति गरीबी या गैर बराबरी को जगह नहीं दे सकते.’’

यूपीए-1 के दौरान बनाई योजनाओं से हो सकता है पॉजिटिव असर

कांग्रेस नेता ने यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान शुरू की गई कई योजनाएं भी गिनाईं, जैसे शिक्षा का अधिकार कानून, सूचना का अधिकार कानून, वन अधिकार कानून, हिंदू सक्सेशन (संशोधन) एक्ट, मनरेगा आदि.

डॉ. मनमोहन सिंह के मुताबिक, इन अधिकारों को प्रभावी रूप से लागू करने से समस्या का समाधान हो जाएगा.

काउंसिल ऑफ सोशल डेवलपमेंट की इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2000 से 2017 के बीच संपत्ति में असमानता छह गुना बढ़ी है. इसमें बताया गया है कि 2015 में देश की एक फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय आय का करीब 22 फीसदी हिस्‍सा था. इसमें 1980 के दशक की तुलना में छह फीसदी की बढ़ोतरी है.

10 फीसदी सबसे ज्यादा अमीरों के पास 80 फीसदी से ज्यादा संपत्ति

इस रिपोर्ट में बताया गया है, ‘‘देश के दस फीसदी सबसे ज्यादा धनी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का करीब 80.7 फीसदी है, जबकि बाकी 90 फीसदी आबादी के पास कुल संपत्ति का महज 19.3 फीसदी है.’’

रिपोर्ट का संपादन प्रोफेसर टी. हक और डी. एन. रेड्डी ने किया है. इसमें 22 चैप्टर हैं, जिन्हें प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों और अन्य सोशल साइंटिस्ट ने तैयार किया है.

(इनपुट भाषा से)

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