शहरों में जर्नलिस्ट खासकर अंग्रेजी मीडिया में काम करने वाली महिलाओं ने वर्कप्लेस पर होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ बोलना शुरु किया. एक-एक कर कई नामी-गिरामी लोगों की पोल खुली. अब धीरे-धीरे ही सही इस आंदोलन ने छोटी जगहों, भारत के अंदरूनी इलाकों में भी अपना असर दिखाना शुरु कर दिया है.
इस आंदोलन का महानगरों के बाहर कोई प्रभाव पड़ा है या नहीं ये समझने के लिए क्विंट ने खबर लहरिया की एडिटर-इन-चीफ मीरा देवी और सीनियर रिपोर्टर कविता देवी से बात की.
खबर लहरिया मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में खासकर बुंदेलखंड क्षेत्र की खबरों पर प्रमुखता से काम करने वाला पूरी तरह से महिला मीडिया संगठन है.
लोकल मीडिया को #MeToo में रुचि नहीं
49 साल की मीरा का कहना है कि “बुंदेलखंड के जिलों में #मीटू आंदोलन को समझने वाले बहुत कम लोग हैं क्योंकि इसकी कवरेज मुख्य रूप से अंग्रेजी में है. हालांकि, अगर ये हिंदी में लिखा जाता तो इलाके के हर लोग इसे पढ़ते.”
“स्थानीय मीडिया मुश्किल से ही इस मुद्दे को उठा पा रहा है. कवरेज पर चर्चा करते वक्त एक पुरुष रिपोर्टर ने मुझे कहा, ‘हम कैसे जान सकते हैं कि ये महिलाएं सच्ची हैं या नहीं? शायद ये सब झूठ हो और वो सिर्फ इस मौके का फायदा उठा रही हों.”
खबर लहरिया और इसके रिपोर्टर्स ने स्थानीय भाषा में एक खुला खत लिखा ताकि महिला पत्रकार के तौर पर उनके साथ होने वाले रोजमर्रा के उत्पीड़न को दर्ज किया जा सके. उन्होंने उम्मीद की थी कि स्थानीय मीडिया आॅर्गनाइजेशन इसे कवरेज देंगे.
खत लिखने के बाद, हमने इसे सभी स्थानीय प्रकाशनों में भेज दिया. स्थानीय भाषा में लिखने के बावजूद सिर्फ दैनिक भास्कर ने इसे अभी तक छापा है.मीरा देवी
दैनिक भास्कर में ये 12 अक्टूबर को छपा था. मीरा के मुताबिक बाकियों ने ‘बहाने’ के तौर पर कहा कि हम अप्रूवल मिलने का इंतजार कर रहे हैं. कुछ ने टालने के लिए कहा कि दशहरा के बाद छापेंगे.
मीरा ने बताया कि बाकी लोकल मीडिया आॅर्गनाइजेशन ने ओपन लेटर इसलिए नहीं छापा क्योंकि उन्हें डर है कि उनके खिलाफ कहानियां उभर कर बाहर न आने लगें. इसे न छापने की वजह- "उनका डर है."
'हर रोज उत्पीड़न' की छिपी हुई कहानियां
लेकिन अब सवाल है कि वो कौन सी कहानियां है जिसके खुलने का पुरुषों को डर है? कविता और मीरा ने क्विंट को बताया कि किस तरह उन्हें मीडिया इंडस्ट्री में रहते हुए पुरुषों की ओर से किए जाने वाले उत्पीड़न से लड़ना पड़ता है.
कविता बताती हैं कि खबर संबंधी काम के लिए बने वाॅट्सऐप ग्रुप में सिर्फ खबर लहरिया की ही रिपोर्टर महिलाएं हैं. उस ग्रुप में 200 से 250 की संख्या में पुरुष हैं.
“मीडिया वाले मर्द बहुत लाइन मारने की कोशिश करते हैं, बोलना पड़ता है कि हमारी शादी हो चुकी है, बच्चे हैं, नहीं तो वो मानते नहीं हैं.”
कविता और मीरा दोनों ने बताया, पोर्न क्लिप, ब्लू फिल्में, महिलाओं की नग्न और मॉर्फ की गईं तस्वीरें 'न्यूज ग्रुप' पर भेजी जाती हैं. कविता आगे कहती हैं- "लोग वाॅट्सऐप से मेरी तस्वीरें लेते हैं, एडिट करते हैं और 'सुंदर बनाने' के बाद उन्हें वापस भेजते हैं. वे हमें पत्रकार के तौर पर नहीं सिर्फ एक महिला के तौर पर देखते हैं.”
आईपीसी की धारा 354 ए के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति किसी महिला की रजामंदी के बिना उसे पोर्नोग्राफी दिखाता है तो वो यौन उत्पीड़न के अपराध का दोषी होगा. इसके लिए तीन साल तक जेल की सजा, या जुर्माना हो सकता है, या दोनों हो सकते हैं.
मीरा कहती हैं कि जब भी वो महिलाओं के बारे में बात करते हैं, महिलाओं को लेकर उनकी ओछी सोच बाहर आ जाती है. "नवरात्र चल रहा है... मर्दों में से एक ने कहा कि दुर्गा मां के आठ हाथ हैं और एक में भी मोबाइल फोन नहीं है."
वो ऐसा बेलकर तंज करना चाह रहे थे कि 'महिलाओं को मोबाइल फोन का इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए?'
इन तानों के बावजूद, कविता और मीरा डिजिटल मीडिया को आगे बढ़कर अपना और आजमा रही हैं. वीडियो रिकॉर्ड करना, मेल करना, कॉल करना और मैसेज करना ये सब वो आसानी से कर रही हैं.
जब वो विरोध करती हैं तो क्या होता है?
मीरा और कविता दोनों ने कई बार विरोध जताने की कोशिश की. लेकिन उनका कहना है कि ग्रुप पर तस्वीर भेजने वाले ये कहते हैं कि 'गलती से फोटो आ गई' या वो ये कहते हैं कि "हमने ध्यान नहीं दिया कि किस ग्रुप पर फोटो भेज रहे थे."
लेकिन ये 'गलतियां' बार-बार होती हैं. कविता ने उन्हें ये भी बताने की कोशिश की कि ये ग्रुप न्यूज के लिए है किसी और चीज के लिए नहीं. लेकिन ग्रुप में शामिल मीडियाकर्मियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा.
“ये उनके लिए गंभीर बात नहीं है. मैंने उन्हें बताया है कि ये एक न्यूज ग्रुप है, उन्हें इन चीजों के बारे में बात करने के लिए अपना अलग ग्रुप बनाना चाहिए. शर्मिंदगी वाली बात है कि बोलने के बावजूद वो ऐसा करते रहते हैं”
कविता ने बताया कि आखिरी बार किसी ने ग्रुप में ब्लू फिल्म डाली थी. एडमिन से शिकायत करने के बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया गया. बार-बार बोलने पर जब एक्शन लिया गया तो उस शख्स को ग्रुप से नकालने के कुछ ही दिन बाद वापस शामिल कर लिया गया. वे इसे एक मजाक मानते हैं- मीरा ने बताया.
#MeToo आंदोलन ने शहरी भारत में तूफान सा खड़ा कर दिया है. लेकिन कविता और मीरा का कहना है कि उनके इलाके में इन मुद्दों को हल करने के लिए कमिटी या फोरम नहीं है. कविता ने कहा, "हमने अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं कराई है, लेकिन जैसे ही ये कहानियां बुंदेलखंड में उठनी शुरु होंगी. हम जल्द ही कार्रवाई कर सकते हैं."
“अब नहीं आते पोर्न क्लिप”
इन सबके बावजूद खबर लहरिया के ओपन लेटर का थोड़ा असर तो जरूर हुआ है.
पुरुषों ने अब अश्लील वीडियो, ब्लू फिल्मों और मॉर्फ तस्वीरों को भेजना बंद कर दिया है. हम उनके अंदर के डर महसूस कर सकते हैं जो इस तरह की आपत्तिजनक एक्टिविटी करते हैं. उन्हें लगता है अब महिलाएं बोलेंगी इसलिए, उन्होंने दूरी बनानी शुरू कर दी है.मीरा देवी
मीरा कहती हैं, "जब मैंने इस इलाके के लगभग 600 स्थानीय पत्रकारों को ओपन लेटर फाॅरवर्ड किया, तो किसी ने कमेंटबाजी नहीं की. उन्होंने हाथ जोड़ने वाली इमोजी के साथ जवाब दिया या बिल्कुल जवाब नहीं दिया. "
कानूनी सहारा लेने का विकल्प रखते हुए खबर लहरिया की रिपोर्टरों ने सोच लिया है कि अगली बार कोई भी पुरुष उनके साथ अपमानजनक तरीके से व्यवहार करने से पहले दो बार सोचें.
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