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ये जो तेरा इत्र है, इसमें बारिश का जिक्र है

बारिश की खुशबू समेटे इस परफ्यूम में क्या है खास, पढ़िए हमारी ये रिपोर्ट. 

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बारिश, चांद, मोहब्बत, सागर, सबके अपने क़िस्से हैं...मेरे पास तेरी कतरन और मेरे टूटे हिस्से हैं... - पीयूष मिश्रा

बारिश से न जाने आपकी कितनी यादें जुड़ी होंगी, मिट्टी की वो खूशबू , बारिश का वो शोर. खुद को जरा झकझोरिए और देखिए बारिश की यादें आपको कैसे गुदगुदाएगी. कोई भला कैसे भुला सकता है वो बचपन में बारिश में खेलना, कॉलेज के दिनों में दोस्तों के साथ बारिश की शरारतें, गीले बालों को झटकना और घर के एक कोने से मां की डांट की आवाज पर सकपकाना, हां अगर इश्क में हैं तो बारिश की अहमियत बखूबी जानते होंगे.

और इन सारी यादों को तरोताजा करने के लिए बस बारिश में मिट्टी की सौंधी खुशबू काफी है. दिलो-दिमाग पर एक नशा सा छा जाता है और हम एक पल अपनी सारी यादों को जी लेते हैं.

तो पेश है बारिश की खुशबू वाला परफ्यूम

बिल्कुल बारिश में मिट्टी की खुशबू मानिए किसी ने आपको बोतल में बंद कर दे दिया हो, ऐसा है ये रेन परफ्यूम. हिंदी में इसे मिट्टी इत्र कहते हैं जिसे दुनिया भर की तमाम कंपनियां सजा- धजा कर, लेबल लगाकर आपको बेचती हैं.

लेकिन कन्नौज में बने मिट्टी इत्र की बात ही कुछ और है.

स्नैपशॉट

कितनी होती है कीमत?

10 ग्राम की शीशी 120 रुपए से लेकर 600 रुपए तक आती है.

कीमत इत्र की क्वालिटी पर निर्भर करता है.

एक किलो इत्र की कीमत 38 हजार रुपए से लेकर 70 हजार तक.

कहां- कहां इस्तेमाल होता है मिट्टी इत्र?

कहा जाता है कि मिट्टी इत्र की खुशबू से विचलित दिमाग शांत हो जाता है. पहले मानसिक तौर पर अस्थिर लोगों को इलाज इस इत्र से किया जाता था. लेकिन उसके लिए अलग तरह से इत्र को बनाया जाता था.

इसकी खुशबू में कुछ तो बात है. हमारे पूर्वज बताते हैं कि इस इत्र की खुशबू से विचलित दिमाग शांत हो जाया करता था. 80 साल पहले वैद्य हमारे परिवार से ये इत्र खरीद कर ले जाते थे. अब तो इसकी बिक्री न के बराबर है, कईयों को तो पता भी नहीं है कि इस तरह का इत्र भी होता है. 
युनुस इत्रवाला, हैदराबाद में इत्र के दुकानदार.

वैसे हम आपको बता दें कि इस इत्र का इस्तेमाल पान और गुटखे में भी होता है.

चलिए कन्नौज- इत्र के शहर

कन्नौज, उत्तर प्रदेश का एक ऐसा शहर है जो दुनिया भर में इत्र के शहर के नाम से मशहूर है. यहां कि गलियों में फैली खूशबू आपको अरमानों को हवा भी दे सकती है और यादों की हसीं दुनिया में भी ले जा सकती है.

और यहीं बनता है मिट्टी इत्र.

कैसे बनता है मिट्टी इत्र?

तस्वीरों के जरिए हम आपको ये समझाते हैं कि आखिर बारिश में गीली मिट्टी की खुशबू को कैसे बोतलबंद किया जाता है.

इत्र बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले मिट्टी के बर्तन तैयार किए जाते हैं, फिर उन्हें स्टीम डिस्टिलेटर में डाल कर कोयले और बिजली से भट्ठी सुलगाई जाती है. फिर स्टीम अपने प्रेशर से एक कॉपर कंटेनर में पहुंचता है.

  • फिर इन बर्तनों से निकलती भाप को एक पाइप के जरिए चंदन के तेल के संपर्क में लाया जाता है.
  • सैंडलवुड तेल कॉपर के बर्तनों में होते हैं.
  • और फिर उनसे सब भाप निकलती है तो उसमें ऑयल बेस होता है जिसे कंडेनसर में डाला जाता है.
  • आखिर में सिर्फ तेल की तरह का तरल पदार्थ निकलता है जिसकी खुशबू बिल्कुन गीली मिट्टी की तरह होती है.

मिट्टी इत्र का इतिहास 4000 साल पुराना है. मॉर्डन परफ्यूम्स के जमाने में अब ये लुप्त हो रही है. न तो इसके प्रमोशन के लिए कोई जुगत लगाई जा रही है और न ही इस कारोबार को करने वाले इसे प्रचलित करने के इच्छुक दिखते हैं.

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