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जिंदगी-मौत के बीच के वो 48 घंटे, पहाड़ की बेटी बलजीत के संघर्ष और विजय की कहानी

अन्नपूर्णा के शिखर बिंदु से उतरने के दौरान लापता हुईं पर्वतारोही बलजीत कौर वापस सोलन लौट आई हैं.

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भारत
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नेपाल में एवरेस्ट की दसवीं सबसे ऊंची चोटी को फतह करके लौट रही हिमाचल की बेटी बलजीत कौर मौत के मुंह से सुरक्षित निकलने के बाद शनिवार, 29 अप्रैल को सोलन पहुंची. यहां उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए उनका गला कई बार रुंध गया. सात साल बाद घर लौटकर मां से गले मिलने की ललक ने उन्हें इतना उत्साहित कर दिया कि वे बस अब जल्दी से जल्दी घर पहुंच जाना चाहती हैं.

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दरअसल, नेपाल में 8 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित माउंट अन्नपूर्णा को फतेह करते हुए 18 अप्रैल को यह खबर सामने आई थी कि पर्वतारोही बलजीत कौर की वापस कैंप की ओर लौटते वक्त मौत हो गई. हालांकि, बाद में मैनेजमेंट की तरफ से जानकारी दी गई कि बलजीत कौर की मौत की खबर उनकी तरफ से गलती से दे दी गई. बलजीत कौर ने सेटेलाइट फोन के जरिए अपने सिग्नल भेजे थे, जिसके माध्यम से उनके सर्च ऑपरेशन में लगे तीन हेलीकॉप्टर ने उन्हें ढूंढ निकाला.

बलजीत ने बताई चौंकाने वाली बातें

शनिवार को बलजीत अपने परिजनों के पास सोलन पहुंच गई है. यहां स्थानीय लोगों ने उसका जोरदार स्वागत किया. वहीं इस दौरान बलजीत ने अपने साथ हुई सारी घटना को बयां किया. जिसमें उन्होंने चौंकाने वाली बातें बताई. बता दें कि बलजीत कौर जिला सोलन के ममलीग की रहने वाली हैं. उनके पिता हिमाचल पथ परिवहन निगम से बतौर चालक रिटायर हुए हैं और माता गृहिणी हैं.

माउंटेन सिकनेस का हुईं शिकार

बलजीत ने बताया कि समिट तक पहुंचने के करीब 100 मीटर नीचे ही वह माऊंटेन सिकनेस की शिकार होने लगीं. उन्हें नींद आने लगी और जागते हुए भी सपने आने लगे. इसके बावजूद किसी तरह अभियान पूरा किया लेकिन वापसी में कुछ दूर आने पर ही उनके लिए चलना नामुमकिन हो गया. इस पर शेरपा उन्हें वहीं छोड़कर नीचे आ गए. बलजीत बर्फ के बीच पहाड़ पर बिना ऑक्सीजन नीचे आने की कोशिश करती रहीं. आखिर उनकी नजर जेब में पड़े मोबाइल फोन पर पड़ी, जिससे वो मैसेज भेजने में सफल रहीं और हैलीकॉप्टर से उन्हें रेस्क्यू किया गया. मदद मांगने के करीब 4 घंटे बाद रेस्क्यू शुरू हुआ.

बलजीत कौर का भव्य स्वागत

शनिवार को नेपाल से सोलन पहुंचने पर बलजीत कौर का भव्य स्वागत हुआ. उन्होंने अन्नपूर्णा चोटी पर हुए हादसे के बारे में बताया कि कैसे एजेंसी की मिस मैनेजमैंट की वजह से हादसा हुआ. उन्होंने बताया कि वह बिना ऑक्सीजन के विश्व के सबसे मुश्किल अन्नपूर्णा पहाड़ को चढ़ रही थीं. इसलिए एजेंसी ने उन्हें अनुभवी शेरपा का इंतजाम किया लेकिन एक विदेशी पर्वतारोही ने ज्यादा पैसे का उसे ऑफर दिया तो वह शुरू में ही साथ छोड़कर चला गया. फिर उन्हें एक और शेरपा दिया गया लेकिन वह उतना अनुभवी नहीं था. फिर भी वह उसके साथ पहाड़ चढ़ने को तैयार हो गईं. वह शेरपा एक पोर्टर (ट्रेनी) को भी अपने साथ लेकर आया.

बलजीत ने बताया कि जब 7375 (24193 फुट) की ऊंचाई पर स्थित माऊंट अन्नपूर्णा कैंप 4 से 15 अप्रैल को अन्नपूर्णा चोटी की ओर निकले तो शेरपा ने उन्हें और ट्रेनी को आगे चलने को कहा और खुद बाद में आने की बात कही. वह काफी आगे निकल चुके थे तो उसी समय एक और शेरपा हांफता हुआ आया और बोला कि उनके शेरपा ने उसे भेजा है. वह शेरपा पहले ही बहुत थका हुआ था क्योंकि एक दिन पहले ही वह अन्नपूर्णा अभियान से वापस लौटा था.
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मैंने अभियान छोड़ने की बात कही, शेरपा नहीं माने

बलजीत ने कहा कि एक बार मैंने अभियान छोड़ने की बात भी कही लेकिन शेरपा नहीं माने कि ट्रेनी के लिए अभियान पूरा करना जरूरी है ताकि वह अगली बार शेरपा बन सके. इसके बावजूद वह अन्नपूर्णा चोटी को फतेह करने में कामयाब रहीं. हालांकि ऑक्सीजन की कमी व थकान होने की वजह से बेहोशी की स्थिति में थी. चलना मुश्किल हो रहा था. अन्नपूर्णा कैंप 4 भी काफी दूर था. ऐसे समय में शेरपा व ट्रेनी भी उन्हें वहां पर अकेले छोड़कर चले गए. हालांकि इसके लिए वह उन्हें जिम्मेदार नहीं मानतीं. बलजीत ने कहा कि उन्हें जाने के लिए मैंने ही कहा, वे वहां से न जाते तो उनकी जान जा सकती थी. 48 घंटे तक बलजीत वहां पर अकेली रहीं और बेस कैंप तक पहुंचने के लिए लगातार प्रयास करती रहीं.

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