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महाराष्ट्र में इतिहास टेक्‍स्‍टबुक पर शिवाजी का कब्‍जा,मुगल गायब!

3 पैराग्राफ्स में सिमटी मुगल शासन की तीन शताब्दी.

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भारत
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मुगलों ने तीन शताब्दियों से अधिक समय तक भारत पर शासन किया. वो हमारी संस्कृति पर एक गहरी छाप छोड़ गए, लेकिन महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड इससे कतई प्रभावित नहीं है. बोर्ड ने सातवीं क्लास के स्टूडेंट्स के लिए नई हिस्ट्री टेक्स्टबुक में बदलाव किया है. मुगलों के इतिहास पर चैप्टर में कटौती की गई है और उनकी जगह- छत्रपति शिवाजी महाराज और मराठों को किताब का केन्द्र बिन्दु बनाया गया है.

3 पैराग्राफ्स में सिमटी मुगल शासन की तीन शताब्दी.
नई किताब के कवर पर अब भगवा ध्वज और शिवाजी महाराज की एक इमेज है
(फोटो:Ebalbharati)
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किताब के नए एडिशन में और 2008 के एडिशन में साफ अंतर देखा जा सकता है, जो पिछले साल तक स्कूलों में पढ़ाया जा रहा था. आइए, हम इसे जरा नजदीक से देखें.

नई किताब के कवर पर अब भगवा ध्वज और शिवाजी महाराज की एक छवि है, जबकि पुरानी बुक का कवर रायगढ़ के किले की तस्वीर से सजा हुआ था.

किताब के अंदर शिक्षकों के लिए एक नोट शामिल है, जिसमें समझाया गया है कि पाठ्यक्रम में नए बदलाव का फैसला क्यों किया गया है:

"इस प्रस्तुति की विशेषता यह है कि यह महाराष्ट्र पर केंद्रित है. हमारा राज्य भारत गणराज्य का हिस्सा है, अगर हम महाराष्ट्र के दृष्टिकोण से इतिहास का अध्ययन करते हैं, तो हम भारत के इतिहास में महाराष्ट्र की स्थिति, भूमिका और योगदान को समझेंगे और छात्रों में एक अधिक परिपक्व राष्ट्रीय भावना का विकास होगा."

3 पैराग्राफ्स में सिमटी मुगल शासन की तीन शताब्दी.
किताब में शिक्षकों के लिए एक नोट शामिल है.
(फोटो:Ebalbharati)

शायद ये डिस्क्लेमर पाठकों के लिए पर्याप्त नहीं था:

किताब के 13 चैप्टर्स में से 11 सिर्फ मराठों पर केंद्रित रखे गए हैं.

किताब के कंटेंट का नया टेबल देखिए:

3 पैराग्राफ्स में सिमटी मुगल शासन की तीन शताब्दी.
कंटेंट का नया टेबल
(फोटो:Ebalbharati)

पहले एडिशन में शिवाजी महाराज के बारे में चैप्टर 11 के बाद बताया गया था, लेकिन नए एडिशन में स्टूडेंट्स को चैप्टर 2 में ही योद्धा राजा और उनकी उपलब्धियों के बारे में बताना शुरू कर दिया गया है.

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3 पैराग्राफ में सिमटी मुगल शासन की 3 शताब्दी

पुराने एडिशन में भारत पर विश्व की घटनाओं के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया था. टेक्स्ट बुक में पहले के कुछ चैप्टर्स में सामंतवाद की अवधारणा, दुनियाभर में इस्लाम के उदय और भारत पर अरब आक्रमण के बारे में बताया गया था. यह सब 2017 के नए एडिशन से गायब है.

पहले एडिशन में मुगल सम्राटों को समर्पित पूरे तीन चैप्टर्स को अब सिर्फ तीन पैराग्राफों में सिमटा दिया गया है. मुगलों के धार्मिक, स्थापत्य, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव को नए एडिशन में कोई जगह नहीं दी गई है.

पुरानी किताब में, अकबर को 'बुद्धिमान और सतर्क प्रशासक' बताया गया था. उनकी धार्मिक नीतियों को 'उदार और सहनशील' बताया गया था. जबकि नई किताब में सिर्फ तीन लाइनें हैं जो उनके पूरे शासनकाल को बताती हैं:

अकबर मुगल वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था. जब उसने अपने केंद्रीय प्रशासन के तहत भारत लाने की कोशिश की, तो उन्हें विपक्ष का सामना करना पड़ा.
3 पैराग्राफ्स में सिमटी मुगल शासन की तीन शताब्दी.
अकबर के लिए नई किताब में सिर्फ तीन लाइनें.
(फोटो:Ebalbharati)
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क्षेत्रीय राज्यों के बारे में क्या?

सिर्फ मुगल ही नहीं, क्षेत्रीय राज्यों के इतिहास को भी किताब से बाहर कर दिया गया है.

विजयनगर, बहमनी और राजपूत राजवंशों के इतिहास का तो उल्लेख किया गया है, जबकि चोल वंश और यादवों का कोई उल्लेख नहीं है.
3 पैराग्राफ्स में सिमटी मुगल शासन की तीन शताब्दी.
चोल वंश और यादवों का किताब में कोई उल्लेख नहीं है.
(फोटो:Ebalbharati)

प्रमुख घटनाएं, जैसे मुहम्मद बिन तुगलक का दिल्ली से दौलताबाद तक अपनी राजधानी स्थानांतरित करने का फैसला और रजिया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने वाली पहली महिला बनी, उन्हें भी किताब से हटा दिया गया है.

क्या स्टूडेंट्स को महाराष्ट्रऔर स्वतंत्रता पूर्व की घटनाओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए मराठों के इतिहास की जरूरत है? हां, है. लेकिन क्या यह सिर्फ अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तित्वों की कीमत पर हो सकता है? क्या हम इतिहास के उन पहलुओं की उपेक्षा कर सकते हैं जो भारत को परिभाषित करने में मदद करता है, जैसा कि आज हम पढ़कर जान पाए हैं?

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