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मुजफ्फरनगर में मस्जिद गिराने के पीछे की जमीनी हकीकत

स्थानीय लोगों ने माना कि मस्जिद बनाने की परमीशन नहीं ली गई थी, फिर प्रशासनिक दबाव में खुद इमारत को गिराया गया है

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पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के खतौली टाउन में मस्जिद गिराए जाने की तस्वीर शेयर की जा रही है. लेकिन इनमें लगाए जा रहे आरोप जमीनी हकीकत को सही तरीके से नहीं दिखाते. यह समझने के लिए कि मस्जिद को क्यों गिराया गया, 'द क्विंट' ने स्थानीय लोगों, प्रत्यक्षदर्शियों, उस जमीन के पुराने मालिक, सुन्नी वक्फ बोर्ड और जिला अधिकारी से बातचीत की.

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स्थानीय लोगों ने माना कि मस्जिद बनाने की परमीशन नहीं ली गई थी, फिर प्रशासनिक दबाव में खुद इमारत को गिराया गया है

(द क्विंट द्वारा प्राप्त फोटो)

हमने यह पाया कि मस्जिद को स्थानीय लोगों ने वक्फ की जमीन पर, वक्फ बोर्ड या स्थानीय प्रशासन की इजाजत के बिना बनाया था. हमें पता चला कि स्थानीय लोगों से हफ्तों तक मस्जिद के अवैध होने के बारे में बात की गई थी. हमें यह भी पता चला कि जमीन के पुराने मालिक और स्थानीय लोगों ने इस बात को स्वीकार किया है कि मस्जिद बिना अनुमति के बनी थी और 'प्रशासन के दबाव' में उन्होंने खुद मस्जिद को गिराने का फैसला लिया.

जमीन के मालिक रहे काजी नबील ने क्विंट को बताया कि 40 साल पहले उनके परिवार ने इस जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दान किया था. उन्होंने कहा, "मस्जिद को ढहाए जाने की प्रक्रिया में हमने टीन की चादरें और नमाज पढ़ने वाली कालीनें बचा ली है, इनका उपयोग हम दूसरी मस्जिद में करेंगे."

"कब्रिस्तान बनाने की इजाजत मिली थी, मस्जिद की नहीं"

आज से लगभग 40 साल पहले जब नबील के परिवार ने उस जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दान दिया था तो वह 'अलल खैर' के तहत दी गई थई. खुद 'वक्फ' का मतलब है अब आप जमीन के मालिक नहीं है और 'अलल खैर' का मतलब हुआ कि आपने यह जमीन जनकल्याण के उद्देश्य से दी है. इस मामले में जमीन के इस्तेमाल का उद्देश्य कब्रिस्तान बनाना था.

स्थानीय लोगों ने माना कि मस्जिद बनाने की परमीशन नहीं ली गई थी, फिर प्रशासनिक दबाव में खुद इमारत को गिराया गया है

(द क्विंट द्वारा प्राप्त फोटो)

सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी ने भी इसी बात की पुष्टि की. उन्होंने कहा "यह तथ्य है कि यह जमीन हमारे पास कब्रिस्तान के रूप में पंजीकृत कराई गई थी. यह भी सच है कि बोर्ड और स्थानीय प्रशासन से मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं ली गई थी. आगे भविष्य में मस्जिद बनाने के पहले उन्हें बोर्ड और प्रशासन से इजाजत लेनी चाहिए. अगर अनुमति ली होती तो कोई समस्या ही नहीं होती".

नबील और उसके परिवार ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने या स्थानीय लोगों ने जमीन पर मस्जिद बनाने के लिए वक्फ बोर्ड या स्थानीय प्रशासन की इजाजत नहीं ली थी. नबील ने 'द क्विंट' से कहा कि "वहां एक कब्रिस्तान था तथा उस पर अस्थाई मस्जिद बना दी गई थी. वह पूरी तरह मस्जिद भी नहीं बनी थी. हमने प्रशासन से मस्जिद बनाने की इजाजत ले ली होती. लेकिन उससे पहले ही लॉकडाउन और कोरोना की दूसरी लहर आ गई."

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नबील ने बताया कि उन्हें कुछ वक्त से इन प्रशासनिक मसलों की जानकारी लग चुकी थी. इसलिए उन्होंने वहां मौजूद लोगों से इस बारे में बातचीत की. नबील ने कहा "प्रशासन ने हमसे कहा कि हमें मस्जिद बनाने के लिए अनुमति लेने की जरूरत थी और हम मानते हैं कि हमारे पास अनुमति नहीं थी. इसलिए पहले ही स्थानीय लोगों को बता दिया गया था कि मस्जिद को ढहाया जाने वाला है."

हालांकि 23 मई को इमारत गिराए जाने के दौरान नबील उस जगह पर मौजूद नहीं थे, उन्होंने कहा कि सरकार के दबाव के चलते स्थानीय लोगों ने खुद इकट्ठा होकर मस्जिद गिरा दी.

स्थानीय लोगों ने माना कि मस्जिद बनाने की परमीशन नहीं ली गई थी, फिर प्रशासनिक दबाव में खुद इमारत को गिराया गया है

(द क्विंट द्वारा प्राप्त फोटो)

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"हम भावुक,उदास और गुस्से में है कि हमने खुद मस्जिद तोड़ी"

हमने पूरे घटनाक्रम को जानने के लिए प्रत्यक्षदर्शी काजी कलीफ और स्थानीय निवासी अमीर अंजुम से बात की.

स्थानीय लोगों द्वारा मस्जिद ढहाए जाने के एक दिन पहले 22 मई को प्रशासन ने वहां आकर पूछताछ की थी. कलीफ ने कहा "उन्होंने आकर पूछा कि मस्जिद बनाने के लिए कौन जिम्मेदार है. मैंने कहा, मैं जिम्मेदार हूं .मैंने उन्हें बताया कि कैसे सब लोगों ने मिलकर यह मस्जिद बनाई है. वह स्थानीय लोगों को बताते रहे कि कैसे यह मस्जिद बिना अनुमति के बनी है. कुछ लोग भावुक हो गए, कुछ लोग गुस्सा, जबकि दूसरे लोग पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी के चलते डर गए.

"उन्होंने हमें धमकाया और कहा कि अगर हम खुद उसे नहीं गिराते हैं, तो उन्हें मशीन का उपयोग करना पड़ेगा और वह हमारे खिलाफ मामला भी दर्ज करेंगे. लोग डरे हुए थे, गुस्से में थे, हम जेल भी नहीं जाना चाहते थे. हम लोग बिना स्थायी रोजगार वाले गरीब लोग हैं. आखिरकार हमें मानना पड़ा."
कलीफ
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भावुक होते हुए कलीफ ने बताया कि वे जानते थे कि उनके पास अनुमति नहीं है. लेकिन उनकी इच्छा थी कि उन्हें मस्जिद तोड़ने के लिए बोलने के पहले अपनी बात रखने का हक दिया जाता. "मस्जिद में नमाज सिखाते थे, कुरान सिखाते थे, दीन की बात करते थे. हमारे लिए वह पाक जगह थी".

स्थानीय लोगों ने माना कि मस्जिद बनाने की परमीशन नहीं ली गई थी, फिर प्रशासनिक दबाव में खुद इमारत को गिराया गया है

(द क्विंट द्वारा प्राप्त फोटो)

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"जो मामले को सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं और शांति भंग कर रहे हैं, उनकी जांच की जाएगी": SDM, खतौली

हालांकि जहां कलीफ ने कहा कि उन्हें अपना पक्ष रखने का अधिकार नहीं दिया गया, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय प्रशासन ने इस दावे को सिरे से नकार दिया. खतौली के SDM इंद्रकांत द्विवेदी ने 'द क्विंट' से कहा कि "1 मार्च से ही, जब क्षेत्र में कुछ काम हो रहा था, प्रशासन उस क्षेत्र में गया और उन्हें बताया कि यह कंस्ट्रक्शन अवैध है. प्रशासन का यह आना-जाना बहुत दिनों से हो रहा है. इस बार की तरह उस समय भी उन्होंने यह स्वीकार किया था कि कंस्ट्रक्शन अवैध था".

स्थानीय लोगों ने माना कि मस्जिद बनाने की परमीशन नहीं ली गई थी, फिर प्रशासनिक दबाव में खुद इमारत को गिराया गया है

(द क्विंट द्वारा प्राप्त फोटो)

जैसा जमीन के पुराने मालिक ने भी बताया है, जमीन का इस्तेमाल कब्रिस्तान बनाने के उद्देश्य से किया जाना चाहिए था. लेकिन उसकी जगह अस्थायी मस्जिद बना दी गई. इसी बात को दोहराते हुए मुजफ्फरनगर के अल्पसंख्यक कार्याधिकारी ने बताया कि जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड की थी. जिस पर अवैध मस्जिद बनाई गई थी. उन्होंने कहा "हमने उन्हें पुलिस स्टेशन भी बुलाया और उनसे बातचीत की थी. उन्होंने माना था कि निर्माण अवैध था. इसके बाद उन्होंने उसे ढहा दिया."

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SDM द्विवेदी ने यह भी कहा कि "जब हमें इस बात की जानकारी मिली तो हमने उनसे बातचीत की और पूछा कि क्या उन्होंने वक्फ बोर्ड को लिखा है, क्या उन्होंने नक्शे को पास करवाया है, क्या उन्होंने जिला प्रशासन को इसकी जानकारी दी है. उन्होंने इनमें से कुछ नहीं किया था. उन्होंने कहा कि वह खुद संरचना को हटा देंगे और उन्होंने ऐसा ही किया". SDM द्विवेदी ने आगे कहा कि जिन्होंने मस्जिद को गिराया था, वह मीडिया से बात नहीं कर रहे हैं. बल्कि निहित स्वार्थ वाले लोग बयान दे रहे हैं और क्षेत्र की शांति में बाधा डाल रहे हैं.

" हम उनसे बातचीत कर रहे हैं और यह पता लगा लेंगे कि वह कौन है. हम इसकी जांच करेंगे". उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन का यह सुनिश्चित करना कर्तव्य है कि कोई भी अवैध कंस्ट्रक्शन ना हो. "अगर उन्होंने इजाजत ली होती तो हमारे पास कार्यवाही करने का कोई अधिकार कहां होता?"

'झूठी खबर' फैलाने वालों पर कार्रवाई के विषय में SDM द्विवेदी ने कहा "खतौली टाउन में कोई नहीं कहेगा कि यह कार्रवाई अवैध थी. एजेंडे के लिए कुछ लोग ट्विटर पर झूठी खबर फैला रहे हैं. हम उनके खिलाफ कार्रवाई पर विचार कर रहे हैं. यह शांति भंग करने की कोशिश है और उच्च अधिकारियों ने इसे संज्ञान में लिया है."

फारूकी ने यह भी बताया कि उन्होंने पढ़ा कि कैसे सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर लिखा और बोला जा रहा है. फारूकी ने कहा कि मुद्दे के संप्रदायिक होने की खबर गलत है.

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