राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए शुरू किए गए नेशनल एलिजिबिलिटी कम एन्ट्रेंस टेस्ट (एनईईटी) से जुड़े अध्यादेश पर मुहर लगा दी है. इस अध्यादेश के आने से राज्यों के बोर्ड 1 साल तक के लिए एनईईटी के दायरे से बाहर हो जाएंगे.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि देशभर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले एक कॉमन एन्ट्रेंस टेस्ट के जरिए होंगे. इसे एनईईटी नाम दिया गया. इसके तहत पहला टेस्ट 1 मई को हो चुका है, जबकि दूसरे दौर का टेस्ट 24 जुलाई को होना है.
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अदालत का आदेश टालने के लिए अध्यादेश
केंद्र सरकार ने एनईईटी को एक साल तक आंशिक तौर पर टालने के लिए 20 मई को अध्यादेश पर अपनी ओर से मुहर लगाई थी. अब राष्ट्रपति ने इस पर दस्तखत कर दिए हैं.
केंद्र का कहना है कि एनईईटी को लेकर कुछ राज्यों ने आपत्ति जाहिर की थी, जिसके बाद सरकार ने अध्यादेश लाने का फैसला किया.
अध्यादेश में कहा गया है कि सभी सरकारी कॉलेज, डीम्ड यूनिवर्सिटी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज एनईईटी के दायरे में आएंगे. केवल राज्य सरकार की सीटों के लिए 1 साल की छूट दी गई है, हालांकि अगले साल से राज्य बोर्ड के स्टूडेंट्स को भी इस टेस्ट में शामिल होना होगा.
एनईईटी के विरोध में हैं कई राज्य
स्नातक स्तर पर मेडिकल कोर्स में दाखिला केवल एनईईटी के जरिए लेने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कई राज्य सहमत नहीं हैं. इन राज्यों का मानना है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) एनईईटी केवल अंग्रेजी और हिन्दी माध्यम में कराएगी, जिससे उन छात्रों को नुकसान होगा, जो ऐसी परीक्षाएं अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषाओं में देते हैं. साथ ही राज्यों का सिलेबस भी अलग है.
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