केरल में एक बार फिर निपाह वायरस ने दस्तक दी है. एक 23 वर्षीय छात्र को निपाह वायरस से संक्रमित होने के संदेह में एर्नाकुलम के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया. जांच में उसके निपाह वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हो गई. इसके साथ ही उसके संपर्क में आए चार अन्य लोगों के भी संक्रमित होने की पुष्टि हुई है. इनमें दो नर्सें हैं, जिन्होंने त्रिशूर में उसका शुरुआती इलाज किया था. उसके दो दोस्तों में भी संक्रमण की पुष्टि हुई है. चारों को डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है.
इस मामले के साथ ही केरल का वो मामला ताजा हो गया, जब बीते साल मई महीने में ही निपाह वायरस की चपेट में आने से 10 लोगों की मौत हो गई थी. लेकिन इन सबके बीच मरीजों की जान बचाते बचाते एक नर्स ने भी अपनी जान गंवा दी थी. निपाह वायरस से जूझ रहे एक मरीज की तीमारदारी करते हुए नर्स लिनी भी इसकी चपेट में आ गईं थीं, जिससे उनकी मौत हो गई थी. लिनी की मौत की खबर और मौत से पहले अपने पति को लिखी गई उनकी चिट्ठी सुर्खियों में रही थी.
निपाह वायरस के कारण मरने से पहले नर्स की वो आखिरी चिट्ठी
अपने आखिरी वक्त में हर शख्स चाहता है कि वह अपने परिवार के साथ हो, लेकिन केरल की उस नर्स को ये भी नसीब नहीं हो सका था. वो केरल में मरीजों को निपाह वायरस से बचाते-बचाते खुद इसकी चपेट में आ गई थी.
31 साल की नर्स लिनी पुथुसेरी ने जीवन के आखिरी वक्त में अपने पति के नाम एक इमोशनल चिट्ठी लिखी और फिर दुनिया को अलविदा कह गईं. लिनी ने अपने खत में लिखा था-
‘मुझे नहीं लगता कि अब मैं तुम्हें देख पाऊंगी. हमारे बच्चों की देखभाल करना. तुम्हें उन्हें अपने साथ खाड़ी देश में ले जाना चाहिए. उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहिए. बहुत सारे प्यार के साथ.’
लिनी कोझीकोड में पेरमबरा अस्पताल में उस टीम का हिस्सा थीं जो निपाह वायरस के पहले मरीजों का इलाज कर रही थी. इस दौरान वो भी इस वायरस की चपेट में आ गईं. जब उन्हें पता चला कि अब उनकी जान नहीं बच सकती तो उन्होंने एक और त्याग किया.
उन्होंने अपने पति और दो छोटे-छोटे बच्चों को खुद से दूर रखा और आखिरी वक्त तक उनसे नहीं मिलीं. ताकि, जिन्हें वे प्यार करती थीं, वे इस जानलेवा वायरस के संपर्क में न आ जाएं. यहां तक कि लिनी की अंत्येष्टि में भी उनका परिवार शामिल नहीं हो सका.
क्या है निपाह वायरस?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, निपाह वायरस (NiV) डेडली वायरस है, जो जानवरों और इंसानों में गंभीर बीमारी को जन्म देता है.
सबसे पहले 1998 में मलेशिया के एक गांव 'सांगुई निपाह' में इस वायरस का पता चला और ये नाम इसे वहीं से मिला. इस बीमारी के चपेट में आने की पहली घटना तब हुई जब मलेशिया के खेतों में सूअर फ्रूट बैट (चमगादड़ की एक प्रजाति) के संपर्क में आए. ये जंगलों की कटाई की वजह से अपना घर गंवा चुके थे. खेतों तक पहुंच गए थे.
NiV प्राकृतिक रूप से टेरोपस जीनस के फ्रूट बैट में पाया जाता है. हमारे इको सिस्टम में लाखों फ्रूट बैट हैं- वे हमारे सर्वाइवल के लिए महत्वपूर्ण हैं. इंसानों और चमगादड़ों में बहुत सी एक जैसी आम बीमारियां होती हैं. सूअरों में भी इंसानों जैसी बीमारियां होती हैं. इसलिए जब इनके हैबिटैट को नुकसान पहुंचाया जाता है तो इनसे बीमारियों के इंसानों तक पहुंचने की संभावना ज्यादा होती है.
निपाह वायरस के लक्षण
- इसके लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ, बुखार, मस्तिष्क में जलन, सिरदर्द, चक्कर आना शामिल हैं.
- इसका मरीज 48 घंटे के भीतर कोमा में भी जा सकता है.
- यह वायरस मरीज से सीधे संपर्क में आने से फैल सकता है.
- वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, इस वायरस का इलाज करने के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है.
- इस वायरस से पीड़ित लोगों का मुख्य उपचार 'इन्टेंसिव सपोर्टिव केयर' ही है.
केरल को हाई अलर्ट पर रखा गया है. इस तरह के मामलों से निपटने के लिए दो कंट्रोल रूम बनाए गए हैं. राज्य की मेडिकल एक्सपर्ट टीम के अलावा केंद्र की ओर से भेजे गए एक्सपर्ट भी कोझीकोड में ही ठहरे हुए हैं. भारत में पहली बार निपाह वायरस को 2001 में पश्चिम बंगाल में पाया गया था.
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