निठारी कांड की 9वीं बरसी पर द क्विंट ने निठारी गांव जाकर लोगों से बातचीत की. 29 दिसंबर, 2006 को पहली बार यह मामला सामने आया था, जब मोनिंदर सिंह पंढेर के बंगले के पीछे बहने वाले नाले में इंसानों के अवशेष मिले थे.
इतने साल में कुछ भी नहीं बदला. नाले में आज भी गंदा पानी बह रहा है और जिस बंगले में दर्जनों बच्चों का बलात्कार कर बेरहमी से मार डाला गया था, वह खंडहर बना पड़ा है.
अपनी 10 साल की बेटी को खो देने वाला झब्बू लाल आज भी न्याय के लिए दर-दर भटक रहा है.
केस से पंढेर का नाम वापस लेने के लिए एक वकील ने मुझे एक करोड़ रुपए की रिश्वत देनी चाही थी, पर मैंने नहीं ली. कई परिवारों ने केस से मोनिंदर का नाम वापस ले लिया है. मैंने उन्हें रिश्वत लेते नहीं देखा, पर इसके अलावा और क्या वजह हो सकती है उसका नाम वापस लेने की?
झब्बू लाल, ज्योति के पिता
तीन साल के हर्ष को खोने वाली उसकी मां आज भी अपने पहले बच्चे को खोने के सदमे से नहीं निकल पाई है. वह कहती है कि पहले बच्चे को खोने के बाद वह अपने दूसरे बच्चे का जरूरत से ज्यादा खयाल रखने लगी है. वह उसे कभी अकेले नहीं खेलने देती.
हमें आज भी अपने बच्चे को खुले में खेलने देने में डर लगता है. हत्यारों को भी वैसे ही मारा जाना चाहिए, जैसे हमारे बच्चों को उसने मारा था. उसका घर आज भी हमें बच्चों के साथ हुए हादसे की याद दिलाता है.
पूनम, हर्ष की मां
केस का सूरते हाल
इस हादसे के बाद कुल 16 केस दर्ज हुए थे, जिनमें से सिर्फ 5 में पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली, दोनों को आरोपी बनाया गया है, बाकी मामलों में सिर्फ कोली ही आरोपी है.
निचली अदालत अब तक 7 मामलों में फैसला सुना चुकी है, जिनमें से 1 में मोनिंदर और कोली दोनों को दोषी पाया गया है, बाकी मामलों में सिर्फ कोली को अपराधी करार दिया गया है. वर्ष 2007 में दोनों को ही मौत की सजा मिली थी, पर 2008 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मोनिंदर को सभी आरोपों से बरी करते हुए कोली को मुख्य आरोपी बना दिया. पर इस फैसले के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और 2008 से यह मामल उसी तरह लटका हुआ है.
सात साल तक जेल में रहने के बाद पंढेर ने अगस्त, 2014 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से अपने लिए बेल का जुगाड़ कर लिया. पर निचली अदालत में उसके खिलाफ चार केस अभी बाकी हैं. कोली की मौत की सजा माफ किए जाने की दया याचिका अब भी राष्ट्रपति के पास लंबित है.
शुरुआत में पीड़ित परिवार इस केस पर ध्यान दे रहे थे, पर अब वे अपनी रोजी-रोटी कमाने में उलझ गए हैं. सिर्फ उन चंद मामलों के सिवा जिनमें पंधेर को आरोपी बनाया गया है, कोई भी परिवार इन मामलों की परवाह नहीं करता. निश्चित रूप से कोहली को बचाने के लिए कुछ परिवारों ने अपने बयान बदल लिए, बिना आर्थिक फायदे के उन्होंने ऐसा नहीं किया होगा.
खालिद खान, पीड़ितों के वकील
खान आगे बताते हैं कि पीड़ित परिवारों का बयान जरूरी था, क्योंकि कोली और पंढेर, दोनों ने ही मारे गए बच्चों के कपड़े और चप्पल वगैरह जब्त कराने में मदद की थी. पर लोगों के बयान बदल लेने के कारण कई मामलों में उन्हें क्लीन चिट मिल गई.
दुर्भाग्य से पुलिस की नाकामी के चलते आज भी नोएडा से बच्चे लगातार गायब हो रहे हैं.
कुछ भी नहीं बदला है. आज भी बच्चों के गायब होने की खबरें लगातार आती रहती हैं. हमें इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए रास्ते निकालने होंगे.
लोकेश बत्रा, आरटीआई कार्यकर्ता
निठारी कांड उन मामलों की एक और मिसाल है, जिनमें रसूख वाले अपराधी बचकर निकल जाते हैं और गरीब पीड़ित इंसाफ की राह देखते रह जाते हैं.
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