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नीतीश की शराबबंदी की जिद बिहार को पहुंचा रही थी आर्थ‍िक नुकसान?

पटना हाईकोर्ट ने शराबबंदी के फैसले को झटका दिया है, वहीं आंकड़े बताते हैं कि यह फैसला बिहार के हक में भी नहीं था

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पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार को बड़ा झटका दिया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के शराबबंदी के फैसले को रद्द कर दिया है.

नए कानून को रद्द करने के साथ ही कोर्ट ने नीतीश के शराबबंदी के एजेंडे को भी झटका दिया है. कोर्ट ने कहा है कि शराब बेचने और पीने पर सजा देना पूरी तरह गलत है.

फैसले से सरकार को हो रहा था नुकसान

नीतीश कुमार के शराबबंदी के फैसले से राज्य को आर्थिक नुकसान भी हो रहा था. 'बिजनेस स्टैंडर्ड' में छपी एक रिपोर्ट की मानें, तो इस फैसले के बाद सरकार को रेवेन्यू के मोर्चे पर तगड़ी चोट पड़ रही थी. पहली तिमाही में टैक्स कलेक्शन में 34 प्रतिशत की कमी देखी गई. सरकार इस समय में सिर्फ 3752 करोड़ रुपये का ही टैक्स वसूल पाई है, जबकि पिछले साल पहले क्वार्टर में सरकार ने 5733 करोड़ रुपये का टैक्स वसूल किया था.

कीमतें बढ़ाने के बाद भी नहीं हुआ था समाधान

रेवेन्यू की कमी को दूर करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए थे. इनमें सबसे पहले वैल्यू एडेड टैक्स (VAT) बढ़ाने के साथ साथ पेट्रोल और डीजल के रेट भी बढ़ाए थे, लेकिन इसके बावजूद राज्य सरकार को कोई फायदा नहीं मिला.

संसाधनों की कमी का सबसे बड़ा असर यह हुआ कि स्कूल टीचरों को सैलेरी नहीं मिली, छात्रों को मिलने वाली स्‍कॉलरशिप रोकनी पड़ी, कर्मचारियों को उनकी पगार सही समय पर नहीं मिल पाई. यहां तक कि फूड सिक्योरिटी लॉ लागू करने में भी सरकार को दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

सरकार का इन्वेस्टमेंट पड़ा खतरे में

अपने 11 साल के कार्यकाल के बाद राज्य प्राइवेट सेक्टर में बड़ी भागीदारी कायम करने में नाकाम रहा है. हीरो साइकि‍ल, ब्रिटानिया, आईटीसी और रुचि सोया जैसे छोटे निवेश को छोड़ दें, तो राज्य सरकार किसी भी बड़े इन्वेस्टमेंट को इम्प्रेस नहीं कर पाई है. ऐसे में राज्य सरकार पैसे की कमी के चलते पूरी तरह कुछ निवेशों पर ही पूरी तरह निर्भर हो गई थी.

अगर नीतीश कुमार पैसे की इस तंगी को दूर नहीं कर पाए, तो राज्य में उनकी 'विकास पुरुष' की इमेज को धक्का लग सकता है.

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