ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 130 किलोमीटर दूर है भद्रक, जहां शुक्रवार, 7 अप्रैल को सांप्रदायिक हिंसा भड़की थी. द क्विंट ने भद्रक पहुंचकर हिंसा के बाद के हालातों को समझने की कोशिश की. हम सांप्रदायिक हिंसा के बाद राख के ढेर में तब्दील हुई जिंदगी की कुछ तस्वीरें लेकर आए हैं.
साल 1991 में भी भद्रक ने हिंदू-मुस्लिम दंगे का दंश सहा था. अब 26 साल बाद एक फेसबुक पोस्ट की वजह से भद्रक ने फिर सांप्रदायिक हिंसा को झेला है. हिंसा को रोकने के लिए शांति समिति की बैठक नाकाम साबित हुई और देखते ही देखते- दर्जनों दूकानें टूटने, लूटने और बंद होने लगे.
स्थानीय दुकानदारों के मुताबिक, हिंसा में करोड़ों का नुकसान हुआ है.
नीचे दिख रही 360 डिग्री तस्वीर भद्रक के चंदन बाजार की एक दुकान की है. सांप्रदायिक हिंसा में इस दुकान को जला दिया गया.
हिंसा में करोड़ों का नुकसान
हालात ये थे कि एक तरफ मुस्लिम भीड़ चंदन बाजार जैसी जगहों पर हिंदूओं की दुकानों पर हमला कर रही थी. वहीं दूसरी तरफ, उसी समय हिंदू भीड़ टाउनहॉल रोड के हनीफ मार्केट में आग लगा रही थी.
टाउनहॉल रोड का प्लास्टिक मार्केट भी पूरी तरह से तहस नहस हो गया है.
टाउनहॉल रोड पर शेख हबीब की प्लास्टिक उत्पादों की दुकान थी. अब हबीब दुकान से वो सामान ढूंढ रहे हैं जो आग की लपटों से बच गई है.
‘’राज्य सरकार को हमें मुआवजा देना होगा’’ हिंसा में सब कुछ गंवा बैठे दुकानदारों की यही मांग है.
‘तब और अब’
35 वर्षीय शारफुद्दीन खान अपने 'फैंसी फुटवियर' दुकान की फोटो दिखाते हुए कहते हैं, "यह शॉप नंबर 1, लोकनाथ मार्केट था" फिर वो निराशा में अपनी दुकान की तरफ देखते हैं जहां अब बस मलबा ही बचा है.
50 सालों की कड़ी मेहनत एक घंटे में बर्बाद हो गई
ये कहना है राजकुमार गुप्ता का जिनकी चंदन बाजार में किराने की दुकान दंगे में तबाह हो गई.
‘पुलिस ने कुछ नहीं किया’
उन्होंने मेरे दुकान को तबाह कर दिया, सारा सामान लूट लिया. 4 पुलिसवाले खड़े रहे और देखते रहे. मैंने एक दिन में 1 करोड़ खो दिया.कृष्ण मुरारी, ग्रोसरी शॉप के मालिक
हिंसा के 5 दिन पूरे हो चुके हैं लेकिन अभी तक प्रशासन ने हमारी जली हुई दुकानों का निरीक्षण नहीं किया है. कब तक हम सबूतों को बचाए रखें? कब तक दुकानें बंद रखें ?चंदन बाजार में बर्बाद हुई दुकान का मालिक
शेख तबारक अली की कोर्ट रोड पर स्टेशनरी और कॉस्मेटिक उत्पादों की दुकान थी. शुक्रवार दोपहर को वो दुकान बंद कर नमाज के लिए गए थे.
नमाज के बाद मैं थोड़ा आराम करने के लिए घर चला गया. मैं जब शाम 5 बजे अपनी दुकान की तरफ लौट रहा था. लेकिन रास्ते में मैंने लोगों को मशालों और तलवारों के साथ देखा. मेरी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई. शाम को मैंने जब अपने दुकान के पड़ोस में रहने वाले गुप्ता जी को फोन किया तो उन्होंने बताया की भीड़ ने मेरी दुकान जला दी है.शेख तबारक अली
‘हमें मुआवजा चाहिए’
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बुधवार को भद्रक पहुंचे. उन्होंने जिला अधिकारी को दंगे के वास्तविक पीड़ितों की पहचान करने के लिए कहा है जिससे मुआवजे के लिए व्यवस्था की जा सके.
दुकानदारों ने अपना लाखों, करोड़ों खो दिया है. अब उन्हें मुआवजे का ही इंतजार है. ऐसे में उनका एक ही सवाल है कि ये प्रक्रिया कब तक पूरी होगी जिससे दंगों के दंश पर मरहम लग सकेगा.
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