एनडीए सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की सफलता के दावे करती है लेकिन अभी तक सिर्फ एक चौथाई से ज्यादा किसानों को ही इसके ब्योरों के बारे में पता है. जलवायु जोखिम प्रबंधन कंपनी डब्ल्यूआरएमएस के एक सर्वे में यह तथ्य सामने आया है.
हालांकि सर्वे में कहा गया है कि कई राज्यों में इस योजना के तहत नामांकित किसान काफी संतुष्ट हैं. वेदर रिस्क मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लि. (डब्ल्यूआरएमएस) ने कहा
हाल में आठ राज्यों- उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, नगालैंड, बिहार और महाराष्ट्र में बेसिक्स की ओर से किए गए सर्वे में यह तथ्य सामने आया कि जिन किसानों से जानकारी ली गई उनमें से सिर्फ 28.7 प्रतिशत को ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की जानकारी है.
पेचीदा नियमों से हो रही दिक्कत
सर्वे के अनुसार किसानों की शिकायत थी कि ऋण नहीं लेने वाले किसानों के नामांकन की प्रक्रिया काफी कठिन है. उन्हें स्थानीय राजस्व विभाग से बुवाई का प्रमाणपत्र, जमीन का प्रमाणपत्र लेना पड़ता है जिसमें काफी समय लगता है. इसके अलावा बैंक शाखाओं और ग्राहक सेवा केंद्र भी हमेशा नामांकन के लिए उपलब्ध नहीं होते क्योंकि उनके पास पहले से काफी काम हैं.
सर्वे के मुताबिक किसानों को यह नहीं बताया जाता कि उन्हें क्लेम क्यों मिला है या क्यों नहीं मिला. उनके दावे की गणना का तरीका क्या है. सर्वे के अनुसार 40.8 फीसदी लोग औपचारिक स्रोतों मसलन कृषि विभाग, बीमा कंपनियां या ग्राहक सेवा केंद्रों से सूचना जुटाते हैं.
नीतीश कुमार ने हटा दी है पीएम फसल बीमा योजना
पिछले दिनों बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को हटाकर राज्य सरकार की स्कीम को लागू कर दिया था नीतीश सरकार की नई योजना में किसानों को कोई प्रीमियम नहीं भरना होगा, प्राकृतिक आपदा के कारण फसल खराब होने पर उन्हें मुआवजा दिया जाएगा. सहकारी विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी अतुल प्रसाद इसे इंश्योरेंस स्कीम नहीं असिस्टेंस स्कीम बताते हैं, उन्होंने कहा कि इससे पहले वाली इंश्योरेंस स्कीम से किसानों से ज्यादा इंश्योरेंस कंपनियों को फायदा होता था. उन्होंने कहा कि ये बीमा योजना रैयत और गैर रैयत दोनों तरह के किसानों के लिए है.
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