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संसद का विशेष सत्र: मुख्य चुनाव आयुक्त से जुड़ा बिल क्या है और इससे क्या बदलेगा?

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर ये विधेयक 10 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था.

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भारत
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बुधवार, 13 सितंबर की देर रात जारी किए गए संसदीय बुलेटिन में केंद्र सरकार ने 18 सितंबर से शुरू होने वाले संसद के विशेष सत्र के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर विधेयक को सूचीबद्ध किया है. आइए जानते हैं कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक (The Chief Election Commissioner and Other Election Commissioners (Appointment, Conditions of Service and Term of Office) Bill, 2023) में किस तरह के प्रावधानों को शामिल किया गया है.

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मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति को लेकर ये विधेयक 10 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था.

केंद्र सरकार के इस नए विधेयक में प्रावधान है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने का अधिकार प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय कमेटी के पास होगा. कमेटी में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक नामित कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे. कैबिनेट मंत्री का नाम प्रधानमंत्री तय करेंगे.

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने 2 मार्च को सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक हाई-पॉवर कमेटी ही मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को चुनेगी.

जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली बेंच का फैसला 2015 की जनहित याचिका पर आया, जिसमें चुनाव आयोग के केंद्र द्वारा नियुक्त सदस्यों की कार्यप्रणाली की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी.

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की दो-जजों की बेंच ने मामले को एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया था, क्योंकि इसमें संविधान के अनुच्छेद 324 की बारीकी से जांच की जरूरत थी, जो मुख्य चुनाव आयुक्त की भूमिका से संबंधित है.

अनुच्छेद 324(2), भारत के राष्ट्रपति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त के अलावा निर्वाचन आयुक्तों की संख्या समय-समय पर निर्धारित करने के लिए भी सशक्त बनाता है.

कोर्ट ने संविधान सभा की बहसों की स्टडी करके यह निष्कर्ष निकाला कि संविधान सभा का "चुनाव आयोग में नियुक्तियों के मामले में कार्यपालिका को विशेष रूप से फैसला लेने-देने का इरादा नहीं था."

विधेयक अब इस खालीपन को दूर करने और चुनाव आयोग में नियुक्तियां करने के लिए एक कानून बनाने की कोशिश करता है.

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विधेयक में क्या हैं नए प्रावधान?

मौजूदा वक्त में कानून मंत्री विचार के लिए प्रधानमंत्री को उपयुक्त उम्मीदवारों के एक ग्रुप का सुझाव देते हैं. राष्ट्रपति यह नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर करते हैं.

विधेयक के मुताबिक कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति (जिसमें चुनाव से संबंधित मामलों में ज्ञान और अनुभव रखने वाले सरकार के सचिव के पद से नीचे के दो अन्य सदस्य शामिल होंगे) पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी, जिनको नियुक्ति जिम्मेदारी दी जा सकती है.

इसके बाद विधेयक के मुताबिक- प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री की एक चयन समिति मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करेगी.

क्या संसद सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द कर सकती है?

संसद के पास फैसले में व्यक्त चिंताओं को संबोधित करके कोर्ट के फैसले के प्रभाव को रद्द करने की शक्ति है. कानून केवल फैसले का विरोधाभासी नहीं हो सकता.

विधेयक में चयन समिति की संरचना इस बात पर सवाल उठाती है कि क्या यह प्रक्रिया अब पूरी तरह से आजाद है या अभी भी कार्यपालिका के पक्ष में धांधली की जा रही है. तीन सदस्यीय पैनल में प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री के साथ, प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही नेता प्रतिपक्ष को वोट से बाहर कर दिया जाता है.

विपक्ष ने विधेयक पर जताया था विरोध

बता दें कि, राज्यसभा में कांग्रेस, केजरीवाल की AAP पार्टी समेत अन्य विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया था. विपक्षी दलों ने कहा ने कहा था कि बिल के जरिए सरकार संविधान पीठ के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट को कमजोर कर रही है.

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