पेगासस विवाद में धुला संसद का मानसून सत्र
संसद का मॉनसून सत्र पेगासस विवाद के कारण बिना किसी काम-काज के हंगामे में धुलने की ओर है.जहां सरकार जांच की मांग को खारिज कर 'बचाव मोड' में है वही विपक्ष एक साथ पूरी मजबूती से पेगासस के मुद्दे पर दबाव बना रहा है.
ऐसा पीएम मोदी के सात सालों के कार्यकाल में पहली बार होगा जब विपक्ष ने दोनों सदनों में काम नहीं होने दिया है.बीजेपी के भारी बहुमत वाले लोकसभा में भी विपक्ष पेगासस जांच के मुद्दे पर अड़ा हुआ है.
पेगासस विवाद मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का सबब बनता जा रहा है. बीजेपी को यह याद होगा कि कैसे सिर्फ एक मुद्दे पर वो अतीत में पूरे सत्र को चलने देती थी और कांग्रेस सरकारों को घेरने में कामयाब रहती थी.
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से क्या है मांग ?
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अगले हफ्ते 'द हिंदू' अखबार के पूर्व चीफ एडिटर एन. राम और एशियानेट के फाउंडर शशि कुमार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करेगा.इस याचिका में पेगासस की मदद से भारतीय नागरिकों की कथित जासूसी और इसके लिए जिम्मेदार संस्थाओं की पहचान करने के लिए एक सिटिंग या रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में जांच कराने की मांग की गई है.
मुख्य न्यायाधीश एन.वी रमना और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के सामने दायर याचिका की तरफ से बोलते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि "इस मामले का नागरिक स्वतंत्रता पर बहुत बड़ा प्रभाव है क्योंकि इसमें विपक्षी नेताओं ,पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की निगरानी से जुड़े मुद्दे शामिल हैं. यह न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी बहस का मुद्दा है."
अपनी याचिका में दोनों पत्रकार ने कहा कि सरकार की तरफ से आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा संसद में दिए गए जवाब में कहीं भी सर्विलांस के लिए पेगासस लाइसेंस प्राप्त करने के आरोप को स्पष्ट रूप से इनकार नहीं किया गया है. याचिका में यह भी इशारा किया गया कि विश्वसनीय और स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करने के लिए केंद्र ने कोई कदम नहीं उठाया है.
सुप्रीम कोर्ट में इससे संबंधित अब तक तीन याचिका दायर की गई है जिसमें से राज्यसभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य जॉन ब्रिटास और वकील एमएल. शर्मा ने अन्य दो याचिकाएं दायर की है.
पेगासस जासूसी कांड: अब तक क्या-क्या हुआ
यह विवाद 18 जुलाई को सामने आया जब 'पेगासस प्रोजेक्ट' के तहत 18 मीडिया हाउस के साथ फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि भारत समेत कई देशों में पेगासस स्पाईवेयर की मदद से कथित जासूसी की जा रही थी.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में केंद्रीय मंत्रियों, विपक्षी नेताओं,पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, व्यापारियों और सरकारी अधिकारियों का नंबर संभावित टारगेट लिस्ट पर शामिल था.
खुलासे के बाद से ही भारत सरकार पर विपक्ष समेत सिविल सोसायटी ने अवैध जासूसी का आरोप लगाना शुरू किया क्योंकि पेगासस बनाने वाली कंपनी NSO ग्रुप का कहना है कि वो अपना मिलिट्री ग्रेड सर्विलांस टूल केवल सरकारी एजेंसियों को ही बेचती है.
सरकार का पक्ष- 'भारत के लोकतंत्र पर हमला'
मानसून सत्र के पहले ही दिन आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में कहा कि "पेगासस प्रोजेक्ट के आरोप हमारे लोकतंत्र और सुस्थापित संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश लगते हैं".
" खास लोगों पर सरकारी सर्विलांस के आरोप का कोई ठोस आधार या इससे जुड़ी सच्चाई नहीं है..अतीत में भी भारत सरकार द्वारा व्हाट्सएप पर पेगासस के उपयोग से संबंध में इसी तरह के दावे किए गए थे... यह समाचार रिपोर्ट भी भारतीय लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं को बदनाम करने का अभियान प्रतीत होता है"
अन्य देशों में कार्यवाही
जहां भारत की सरकार ने पेगासस से संबंधित जासूसी के आरोप को सिरे से खारिज कर जांच की मांग को अस्वीकार कर दिया है वहीं पेगासस खुलासे की जद में आए चार अन्य देशों फ्रांस ,इजरायल, हंगरी और मोरक्को ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं.
इजरायली अधिकारी जांच के लिए NSO ग्रुप फर्म भी पहुंचे जिसके अगले दिन कथित रूप से NSO ग्रुप ने कुछ सरकारी एजेंसियों को पेगासस के इस्तेमाल से रोक दिया है. कंपनी का कहना है कि वह जांच में पूरा सहयोग कर रही है.
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