फेक न्यूज़ के बहाने मीडिया पर शिकंजा कसने के खिलाफ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सरकार को चेतावनी दी है. फेक न्यूज के बारे में सूचना प्रसारण मंत्रालय के नोटिफिकेशन पर गिल्ड ने कहा है कि ऐसा करके सरकार मीडिया में गलत तरीके से दखल दे रही है. वह मीडिया की पुलिसिंग में लगी है. अगर सरकार ने फेक न्यूज़ के बहाने पत्रकारों की सदस्यता रद्द करने और उनके खिलाफ शिकायतों की शुरुआत से पत्रकारों की प्रताड़ना का नया सिलसिला शुरू हो जाएगा.वैसे सरकार ने पत्रकारों के विरोध के बाद इस नोटिफिकेशन को वापस ले ले लिया है.
PM मोदी का आदेश, स्मृति ईरानी का फैसला वापस
इस बीच, फेक न्यूज को लेकर सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी नोटिफिकेशन वापस ले लिया गया है. पीएम मोदी के दखल के बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय ने फेक न्यूज पर लिया गया अपना फैसला वापस लिया है.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को फेक न्यूज से जुड़ी प्रेस नोट वापस लेने को कहा है. प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि फेक न्यूज पर फैसला प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) जैसी संस्थाओं को लेना चाहिए.
सोमवार को सूचना प्रसारण मंत्रालय ने फेक न्यूज को लेकर नई गाइड लाइन जारी की थी. इसके तहत 'फेक न्यूज' फैलाने वाले पत्रकारों की मान्यता रद्द किए जाने का प्रावधान भी किया गया था.
फेक न्यूज पर I&B मिनिस्ट्री ने लिया था ये फैसला
सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि किसी भी तरह की 'फेक न्यूज' के बारे में शिकायत मिलने पर जांच की जाएगी. प्रिंट मीडिया से संबंधित शिकायतों की जांच प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया करेगा. जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबंधित शिकायतों को जांच के लिए न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन के पास भेजा जाएगा. ये दोनों संस्थाएं ही तय करेंगी कि जिस खबर की शिकायत की गई है, वह 'फेक न्यूज' है या नहीं.
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जानकारी के मुताबिक, शिकायतों पर जांच के लिए 15 दिन का वक्त तय किया गया है. सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने एक ट्विटर यूजर को दी गई प्रतिक्रिया में कहा, 'यह बताना उचित होगा कि फेक न्यूज के मामले पीसीआई और एनबीए द्वारा तय किए जाएंगे, दोनों एजेंसियां भारत सरकार द्वारा रेगुलेट या ऑपरेट नहीं की जाती हैं.'
फैसले के विरोध में मीडिया जगत ने उठाई थी आवाज
सरकार के इस फैसले के सामने आने के बाद मीडिया जगत से इसके विरोध में आवाजें उठी थीं. मीडिया जगत से जुड़े लोगों ने यह कह कर सरकार के इस फैसले की आलोचना की थी कि यह मीडिया का गला घोंटने की कोशिश के तहत उठाया जा रहा सरकार का अलोकतांत्रिक कदम है.
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