बिहार चुनाव से पहले बीजेपी पूरी तरह से एक्टिव है, इसी तैयारी के दौरान बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हुई, जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा "प्रधानमंत्री गरीब रोजगार योजना जिसमें हमारे प्रवासी मजदूरों को वहीं उसी जगह पर रोजगार मिले इसकी व्यवस्था भी की गयी है. शायद 22 जिले हैं बिहार के या उससे ज्यादा भी हो सकते हैं, जिनको इस योजना के तहत जोड़ा गया है. उसको भी हमें ध्यान में रखना चाहिए और आगे बढ़ाना चाहिए." लेकिन सच तो ये है कि अध्यक्ष जेपी नड्डा का ये बयान जमीनी हकीकत से परे है.
पीएम ने जिस गांव से शुरू की योजना उसकी सच्चाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब कल्याण योजना की शुरुआत 20 जून को की. योजना की शुरुआत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पीएम ने खगड़िया के बेलदौर प्रखंड के तेलिहार पंचायत से की.
इसका मकसद था मजदूरों की आर्थिक समस्याओं को दूर करना और रोजगार के अवसर बढ़ाना. इसके तहत 6 राज्यों के 116 जिलों के मजदूरों को 125 दिनों के लिए काम देने की बात कही गयी. इसमें बिहार के 32 जिले शामिल किये गए हैं.
इस दौरान प्रधाममंत्री मोदी को खगड़िया के बेलदौर प्रखंड के मुखिया अनिल सिंह से बताया कि उनकी पंचायत में देश के अलग-अलग हिस्सों से 475 प्रवासी मजदूर वापस आए हैं.
जब करीब 2 महीने बाद इस रिपोर्टर ने 18 अगस्त को मुखिया अनिल सिंह से बात की और गांव में प्रवासी मजदूरों के रोजगार की स्थिति जाननी चाही, तो पता चला कि ज्यादातर मजदूर काम की तलाश में वापस जा चुके हैं. और गांव में अब 100 से भी कम प्रवासी मजदूर रह रहे हैं.
उन्होंने हमें बताया कि 70-80 मजदूरों ने मुश्किल से 20-25 दिनों तक काम किया और अब काम पूरी तरह से बंद है. हालांकि उन्होंने गांव में प्रवासी मजदूरों की कुल संख्या को 475 से कम कर 463 कर दिया.
जिस मजदूर से सीएम नीतीश ने की बात वो अब भी बेरोजगार
अब दूसरा मामला देखिए. जमुई के सिकंदरा ब्लॉक के नवकाडीह के रहने वाले कैलाश रविदास कोलकाता में चप्पल बनाने का काम करते थे. लॉकडाउन में काम बंद हो गया तो 23 मई को घर लौटे और सिकंदरा के आईटी केंद्र में बने क्वारंटीन सेंटर में रहने चले गए.
वहां पहुंचते ही स्थानीय प्रशासन उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात करने के लिए तैयार करने लगा.
कैलाश ने हमें बताया,
“23 तारीख को 11 बजे दिन में मैं क्वारंटाइन सेंटर पहुंचा. पहुंचते ही BDO, CO और DM पूछने लगे कहां से आये हैं, क्या काम करते थे. हमने बता दिया. हमको बोलने लगे यहां काम कीजिए. हमने कहा काम मिलेगा तो क्यों नहीं करेंगे. उन्होंने कहा-ठीक है आप लोगों के लिए फैक्ट्री खुलवाएंगे. हम बोले हम चप्पल बनाते हैं, हमसे सीधे फैक्टरी खोलने बोलियेगा तो मुमकिन नहीं है. यहां मटेरियल नहीं मिलता है. बहुत फैक्ट्री यहां बंद हो चुकी है.”
सीएम ने 24 मई को कैलाश से बात की, लेकिन उन्होंने रोजगार का कोई जिक्र नहीं किया, वीडियो कॉन्फ्रेंस खत्म होने के बाद अधिकारियों ने भी उसकी खबर नहीं ली.
इस रिपोर्टर ने करीब तीन महीने बाद 18 अगस्त को कैलाश से बात की. तीन महीने से कैलाश बेरोजगार हैं. सीएम से हुई एक बातचीत ने कैलाश को अपने गांव में मजाक के विषय बना दिया है.
कैलाश ने बताया,
“यह एक मजाक वाली बात बन गई है. किसी भी बात पर गांव के लोग कहते हैं, हां कैलाश जी आपको तो मुख्यमंत्री नौकरी देंगे, डीएम नौकरी देंगे, BDO साहब नौकरी देंगे. लेकिन कोई अधिकारी दोबारा नजर नहीं आया. क्वारंटाइन सेंटर से निकले ढाई महीने हो गए, आज तक कोई खबर लेने नहीं आया.”
कैलाश दिव्यांग हैं, घर पर कमाने वाला कोई नहीं, कर्ज लेकर घर चल रहा है. बेटा है वो भी साथ ही कोलकाता में काम करता था.कैलाश ने बताया, "बैठे हुए हैं, कर्ज ले कर खा रहे हैं. ढाई महीने हो गया है, 10-11,000 रुपए कर्ज ले चुके हैं"
कैलाश रविदास के बारे में बात करने के लिए हमने सिकंदरा के सीओ को फोन किया तो उन्होंने कैलाश को BDO से जा कर मिलने को कहा है. फिलहाल मदद की कोई खबर नहीं है.
पीएम ने कहा था- किसी को कर्ज ना लेना पड़े
विडम्बना ये है की प्रधानमंत्री ने गरीब रोजगार कल्याण शुरू करने के दौरान अपने सम्बोधन में कहा था, "साथियों, सरकार पूरा प्रयास कर रही है, कि कोरोना महामारी के समय में आपको गांव में रहते हुए किसी से कर्ज न लेना पड़े."
कैलाश वापस कोलकाता जाना चाहते हैं. ऐसे भी प्रवासी मजदूरों की वापसी का सिलसिला बहुत पहले ही शुरू हो चुका है.
क्विंट ने 10 जून को एक स्टोरी की थी जिसमें आपको बताया था कि पंजाब और हरियाणा से बसें भेज कर कैसे बिहार से प्रवासी श्रमिकों को वापस ले जाया जा रहा है. अब, यह एक आम दृश्य बन गया है. प्रवासियों को वापस ले जाने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से रोजाना बसें भेजी जा रही हैं.
नहीं रुक रहा मजदूरों का पलायन
दिल्ली के किसी सिलाई कारखाने में काम करने के मकसद से किशनगंज के पोठिया के रहने वाले रकीब 16 अगस्त को ऐसी ही एक बस से वापस लौट गए. बस में रवाना होने से पहले उन्होंने बताया,
“पैसा नहीं बचा है. आखिरकार, हमने 5000 में खरीदा मोबाइल 2,000 में बेच दिया है. उससे बस का किराया दे देंगे. क्या करेंगे वापस जाएंगे नहीं, तो खाएंगे कैसे”
इस योजना की जिम्मेदारी बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग को दी गयी है. विभाग के द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 26 अगस्त तक 5258.31 करोड़ रूपए की लगात से 3,67,56,784 रोजगार अवसर पैदा किए जा चुके हैं.
विभाग के अपर सचिव राजीव रौशन से जब हमने तेलिहार गांव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया,
“इसे सकारात्मक तरीके से देखने की जरुरत है. प्रत्येक नागरिक को कहीं भी आने जाने की, कहीं रोजगार करने की स्वतंत्रता है. अलग-अलग स्किल के लोग देश के अलग-अलग कोनों से आते हैं. गरीब कल्याण योजना का ये उद्देश्य नहीं है कि कोई आदमी कहीं जाए ही न. हम अगर अपने देश में एक राज्य से दूसरे राज्य जा रहे हैं, अगर इसको पलायन कहेंगे, तो मुझे लगता है इस परिभाषा पर फिर विचार करना होगा. हो सकता है, ये मीडिया की बनाई हुई परिभाषा हो.”
हालांकि, योजना को शुरू करते हुए प्रधानमंत्री ने साफ कहा था, "ये अभियान समर्पित है, हमारे श्रमिक भाइयों के लिए, हमारे गांव में रहने वाले नौजवानों, बहनों बेटियों के लिए. इनमें से ज्यादातर वो श्रमिक हैं, जो लॉकडाउन के दौरान गांव में वापस लौटे. हमारा प्रयास है कि इस अभियान के जरिए श्रमिकों और कामगारों को घर के पास ही काम दिया जाए."
(तंज़ील आसिफ़ एक स्वतंत्र पत्रकार और मैं मीडिया के सह-संस्थापक हैं.)
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