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लखनऊ:फिर लगे CAA प्रदर्शनकारियों के पोस्टर,HC ने जताई थी आपत्ति  

उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक बार फिर नगरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोधियों के पोस्टर जारी किये हैं

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उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक बार फिर नगरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोधियों के पोस्टर जारी किये हैं, सीएए के विरुद्ध बीते साल हुए प्रदर्शन में शामिल 8 प्रदर्शनकारियों पर गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए उनको भगोड़ा घोषित कर दिया गया है, पुलिस द्वारा घोषणा की गई है इन प्रदर्शनकारियों की सूचना देने वाले को 5 हजार रुपये का इनाम भी दिया जायेगा. ये तब है जब पोस्टर लगाने पर हाईकोर्ट आपत्ति जता चुका है और सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन है.

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पुलिस द्वारा राजधानी लखनऊ के थानों और सार्वजनिक स्थलों पर इन प्रदर्शनकारियों की तस्वीर वाले पोस्टर लगाए गये हैं. इन पोस्टर पर प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों के साथ उनका पता भी लिखा गया है. इसके अलावा पोस्टर पर लिखा गया है की इन प्रदर्शनकारियों की जानकारी देने वाले को 5 हजार नगद का ईनाम दिया जाएगा.

पोस्टर पर पुलिस अधिकारियों के नंबर भी हैं, जिनपर इसकी जानकारी दी जा सकती है. पुलिस द्वारा दो अलग-अलग पोस्टर जारी किये गए हैं. एक में वह प्रदर्शनकारी हैं, जिन पर गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है, दूसरे में वह प्रदर्शनकारी हैं, जो फरार तो हैं, लेकिन उन पर गैंगस्टर एक्ट नहीं लगा है.

जिन 8 प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें प्रशासन द्वारा सार्वजनिक की गई है उन पर गैंगस्टर का मामला दर्ज है उन में मोहम्मद अलाम, मोहम्मद तहिर, रिजवान, नायब उर्फ रफत अली, अहसन, इरशाद, हसन और इरशाद शामिल हैं, इन सभी पर थाना ठाकुरगंज में मुकदमा दर्ज है.

दूसरे पोस्टर में मुस्लिम धर्मगुरु ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॉ बोर्ड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मौलाना क़ल्बे सादिक के बेटे कल्बे सिब्तैन “नूरी”, मौलाना सैफ अब्बास, इस्लाम, जमाल, आसिफ, तौकीर उर्फ तौहीद, मानू, शकील, नीलू, हलीम, काशिफ और सलीम चौधरी के नाम शामिल है. पुलिस के मुताबिक यह प्रदर्शनकारी पिछले साल 19 दिसंबर को लखनऊ में सीएए के विरुद्ध हुए प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल थे और हिंसा भड़का रहे थे.

सहायक पुलिस आयुक्त आईपी सिंह के मुताबिक पोस्टर उन सभी जगहों पर लगाए गए हैं, जहां इन अभियुक्त प्रदर्शनकारियों के छुपे होने की संभावना है, उन्होंने बताया की जिन लोगों की तस्वीरें पोस्टर पर हैं, वह पिछले साल दिसंबर से फरार हैं.

बता दें कि पिछले साल दिसंबर में लखनऊ में सीएए के विरुद्ध प्रदर्शन में हिंसा भड़क गई थी, जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई थी और सार्वजनिक और निजी सांपत्ति का काफी नुकसान हुआ था. यह हिंसा उस समय भड़की थी जब पुलिस प्रदर्शनकारियों को उनके इलाके से निकलकर प्रदर्शन स्थल ‘परिवर्तन चैाक“ से रोक रही थी, इसके बाद प्रदर्शन स्थल पर भी पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें और हिंसा हुई थी.

हिंसा के बाद बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अलग -अलग थानों में मुकदमे दर्ज हुए, इसके अलावा बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करके जेल भी भेजा गया. प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान के मुआवजे के लिए योगी आदित्यनाथ ने उस समय भी प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों की होर्डिंग लगवा दी थी, जिस पर काफी विवाद हुआ और प्रदर्शनकारियों ने उनकी निजी जानकारी सार्वजनिक करने पर आपत्ति दर्ज कराई और कहा कि सरकार ने उनकी जान को खतरे में डाल दिया है.

इसके अलावा कोर्ट ने भी पोस्टर लगाने पर अपनी नाराजगी जताई और होर्डिंग हटाने को कहा था, लेकिन सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. मामला अभी अदालत में विचाराधीन है.

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समाजिक कार्यकर्ता राजीव यादव का कहना है की, योगी सरकार मूल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए कभी सीएए विरोधियों की होर्डिंग लगवाती है और कभी लव जिहाद जैसे साम्प्रदायिक मुद्दे उठती है.

राजीव यादव का कहना है कि जिनको पुलिस अपराधी और भगोड़ा बता रही है, दरअसल वह आंदोलनकारी हैं,जो संविधान की रक्षा के लिए सड़क पर आये थे. वह आगे कहते हैं कि आंदोलनकारी को अपराधी बनाकर सरकार ब्रिटिश राज्य के पदचिन्हों पर चल रही है.

रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव का कहना है कि प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों को सार्वजनिक करने से उनकी जान को खतरा हो सकता है, इसके अलावा यह नागरिकों का मौलिक अधिकारों का हनन भी है.

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कानून के जानकर मानते हैं कि यह प्रशासन द्वारा जल्दी में उठाया गया कदम है. वकील जिया जिलानी कहते हैं की सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल प्रदर्शनकारियों की होर्डिंग लगाने का मामला अभी कोर्च में विचाराधीन है. इसके अलवा अभी जांच भी पुरी नहीं हुई है. इस लिए प्रशासन को कोई भी कदम उठने से पहले गहन विचार करना चाहिए है.

जिया जिलानी के मुताबिक किसी को भगोड़ा तब तक नहीं घोषित किया जा सकता, जब तक कोर्ट उनको मुजरिम घोषित नहीं कर देती है. इसलिए यह कानून के प्राकृतिक सिद्धांतों के भी विपरीत है और निजता के अधिकारों का हनन भी है.

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