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प्रणब मुखर्जी के अंतिम दर्शन को पहुंचे राष्ट्रपति कोविंद, PM मोदी

देश के वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति रह चुके और भारत रत्न से सम्मानित प्रणब मुखर्जी नहीं रहे.

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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का आज दि्ल्ली में अंतिम संस्कार किया जाएगा. उससे पहले उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए उनके घर 10 राजाजी मार्ग में रखा गया है, जहां उनके अंतिम दर्शन को तमाम नेता पहुंच रहे हैं. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रणब मुखर्जी को उनके आवास पर श्रद्धांजलि दी.

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पीएम के अलावा उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन भी प्रणब मुखर्जी को श्रद्धाजंलि देने पहुंचे. लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी प्रणब मुखर्जी को फूल अर्पित किए.

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    प्रणब मुखर्जी के अंतिम दर्शन को पहुंचे राष्ट्रपति कोविंद(फोटो: PTI)
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    पीएम मोदी ने भी दी श्रद्धांजलि(फोटो: PTI)
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    नई दिल्ली में आवास पर पहुंचा प्रणब मुखर्जी का पार्थिव शरीर(फोटो: PTI)
देश के वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति रह चुके और भारत रत्न से सम्मानित प्रणब मुखर्जी नहीं रहे. 84 साल की उम्र में सेना के आरआर अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांसें लीं. पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में 11 दिसंबर 1935 को जन्मे प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक करियर 50 साल से ज्यादा लंबा रहा. इस दौरान उन्होंने सरकार के अलग-अलग पदों, कई अंतराष्ट्रीय संस्थाओं का प्रतिनिधित्व किया.

कोलकाता यूनिवर्सिटी से इतिहास और पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन और लॉ की डिग्री हासिल करने वाले प्रणब ने बतौर शिक्षक और पत्रकार के तौर पर अपना प्रोफेशनल करियर शुरू किया. साल 1969 में राज्यसभा के मेंबर चुने जाने के बाद वो पूरी तरह से सार्वजनिक जीवन में कूद पड़े.

प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक करियर

साल 1969 में ही प्रणब दा ने मिदनापुर में स्वतंत्र उम्मीदवार वीके कृष्णा मेनन के लिए कैंपेन में हिस्सा लिया. इंदिरा गांधी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कांग्रेस में ले आईं. वो उसी साल राज्यसभा सांसद और 1973 में मंत्री बने. जब इंदिरा गांधी 1980 में सत्ता में लौटीं तो मुखर्जी राज्यसभा में सदन के नेता और 1982 में वित्त मंत्री बने. जब इंदिरा की हत्या की गई तो मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना गया. लेकिन ये पद राजीव गांधी को मिला.

मुखर्जी 1986 में कांग्रेस से अलग हो गए और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया. वो 1989 में पार्टी में दोबारा शामिल हुए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

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