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मोदी की तारीफ से आलोचना तक, PB मेहता ने गुजरे सालों में क्या लिखा

सवाल उठ रहा है कि क्या मेहता को मोदी सरकार की ओलाचना के लिए अशोका यूनिवर्सिटी से बाहर किया गया है?

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स्तंभकार प्रताप भानु मेहता ने हाल ही में अशोका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद से चर्चा शुरू हो गई क्या इस्तीफे का कारण उनके द्वारा लिखे गए लेखों के माध्यम से मोदी सरकार की आलोचना है? अभी यह बात पूरी तरह साफ नहीं है. ऐसा नहीं है कि मेहता हमेशा से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते रहे हैं.

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साल 2014 से पहले स्तंभकार मेहता गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का सराहा करते थे. मोदी के प्रधानमंत्री बनने (2014) के बाद वह उनकी नीतियों के आलोचक हो गए.

1. साल 2013 में केंद्र सरकार ( कांग्रेस) की आलोचना

स्तभंकार प्रताप भानु मेहता ने 2013 में इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था 'While we were silent' (जब हम चुप थे) इसमें उन्होंने बताया कि कैसे यूपीए ने अपने 10 साल के कार्यकाल में देश के बुनियादी ढांचे, संस्थाओं और उद्योगों को नष्ट किया है.

इस लेख में उन्होंने लिखा,

“उन्होंने (काग्रेंस के नेतृत्व में केंद्र सरकार) ने हर चीज पर प्रतिबंध लगाए जैसे कि विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी. साथ ही राजद्रोह के कानूनों का इस्तेमाल किया. औपनिवेशिक कानून को बनाए रखा. वह (काग्रेंस) कहते थे कि हम सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ खड़े हैं लेकिन दिग्विजय सिंह को नहीं रोका गया. लेकिन हम चुप थे, क्योंकि अगर ताकत हिंदुत्वा की न हो तो हम कहां बोलते हैं.”
सवाल उठ रहा है कि क्या मेहता को मोदी सरकार की ओलाचना के लिए अशोका यूनिवर्सिटी से बाहर किया गया है?

2. गुजरात दंगे (2002) और पीएम मोदी

साल 2012 दिसंबर में जब नरेंद्र मोदी एक बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तो उस समय मेहता ने 2002 के गुजरात दंगे में मोदी की भूमिका को लेकर "A Modi-fied Politics" शीर्षक से लेख लिखा.

जिसमें उन्होंने कहा गुजरात दंगे (2002) की जांच एसआईटी ने की. जांच एजेंसियों द्वारा मोदी को सभी आरोपों से दोषमुक्त होने के बाद भी वह राजनीतिक दोषी बने रहेंगे.

“आप उन लोगों को देख कर हैरान हो सकते हैं कि क्यों 1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों के बाद कई काग्रेंस के कैबिनेट मंत्रियों ने अभी तक जवाब नहीं दिए. यह मैं यह नहीं कह रहा हूं कि 1984 का हवाला देकर मोदी का राजनीतिक बचाव किया जाना चाहिए. मेरा बस इतना कहना है कि बुराई पर हमला करना इस सूरत में ज्यादा मुश्किल हो जाता जब अन्य संदर्भों में आप इसे सही मानते हैं.”

3. तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 'फासिस्ट' कहने वालों की निंदा

साल 2014 लोकसभा चुनाव के पहला चरण होने में कुछ दिन रह गए थे. इसी बीच कई लोगों ने तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को 'फासिस्ट' कहा था. इस पर स्तंभकार प्रताप भानु मेहता ने 'Regarding Fascism' शीर्षक से लिखे लेख में इसकी निंदा की. उन्होंने कहा कि

फासीवाद की चिंताओं को उस‌ बिखरते संभ्रांत की बौखलाहट कहा जा सकता है जो राजनीतिक चुनौतियों के जवाब में नैतिकता को ढाल बना लेते हैं. फासीवाद में सैन्य शक्ति और लोगों को मिटा देना होता है, क्या भारत में इसकी पुनरावृत्ति हो सकती है?

उन्होंने लेख में यह जरूर माना कि देश में सांप्रदायीकरण बढ़ रहा है. मुजफ्फरनगर दंगों(2013) को एक साल भी नहीं हुआ था. मेहता ने कहा कि बीजेपी का प्राथमिक लक्ष्य आर्थिक विकास है. इसे हासिल करने की कोशिश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एजेंडा हावी नहीं होने देंगे.

आगे लिखा कि

“बीजेपी को इस वक्त मिलने वाला फायदा अलग प्रकार का है. लंबे समय में व्यापक संप्रदायवाद अस्थिरता का निमार्ण करता है जो कि विकास को नुकसान पहुंचाता है. स्थानीय संदर्भों में तो हिंसा से लाभ हो सकता है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नहीं.”

4) दादरी में भीड़ द्वारा अखलाक की हत्या के बाद बदले स्तंभकार प्रताप भानु मेहता के विचार

सितंबर 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी में घर में गोमांस रखने के शक में अखलाक की भीड़ ने हत्या कर दी थी. इसके बाद प्रताप भानु मेहता ने अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में 'Dadri Reminds Us How PM Modi bears Responsibility For the Poison that is being Spread' शीर्षक से लेख लिखा. इसमें उन्होंने लिखा,

“किसी को उम्मीद नहीं थी कि बीजेपी का चरित्र आसानी से बदल जाएगा लेकिन यह उम्मीद जरूर थी कि अवसरवाद कट्टरता को काबू में कर लेगा. आशा थी कि भारत 21वीं सदी में पहुंचने की जरूरतों को लेकर बुरे लोगों को हरा देगा. उन्हें लगा कि अखलाक की हत्या से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे को नुकसान होगा लेकिन सच्चाई यह है कि बीजेपी और संघ में कई व्यक्ति इससे सशक्त महसूस कर रहे हैं.”
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5) साल 2016 में जेएनयू में कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी पर

साल 2016 में जेएनयू छात्रसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार को कथित देश विरोधी नारे लगाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद मेहता ने अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में An Act Of Tyranny: 'Modi Govt Threatened Democracy: That is the most anti-national of all acts' शीर्षक से कॉलम लिखा. इसमें उन्होंने कहा,

राष्ट्रवाद का इस्तेमाल कर संवैधानिक देश भक्ति को कुचला जा रहा है और सत्ता की शक्तियों का इस्तेमाल कर संस्थाओं को नष्ट किया जा रहा है. आरोप था कि आतंकी अफजल गुरु की बरसी पर जेएनयू में कुछ देश विरोधी नारे लगे हैं. इसके बाद कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी हुई थी, जबकि कन्हैया के भाषण में देश विरोधी जैसा कुछ भी नहीं था.
सवाल उठ रहा है कि क्या मेहता को मोदी सरकार की ओलाचना के लिए अशोका यूनिवर्सिटी से बाहर किया गया है?

6) हरियाणा के स्थानीय युवाओं को निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण की आलोचना

हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार विधेयक, 2020 को हाल ही में राज्यपाल की मंजूरी मिल गई है.

जिसके बाद यह कानून बन गया है. इस पर प्रताप भानु मेहता ने द इंडियन एक्सप्रेस में हाल ही में अपने लेख के माध्यम से सरकार की आलोचना की. लिखा कि यह संवैधानिक रूप से सही नहीं और सामाज को बांटने वाला भी है. इस कानून के तहत हरियाणा में निजी क्षेत्र की 50 हजार रुपये से कम प्रति माह वेतन वाली नौकरियों में राज्य के युवाओं को 75 प्रतिशत आरक्षण है.

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