देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को हिंसा और असहिष्णुता से दूर रह कर शांति और विज्ञान की ओर मुड़ने का संदेश दिया.
उन्होंने देश को शांति कायम करने, प्रदूषण को दूर करने और प्रगति की ओर बढ़ने का संदेश दिया.
उन्होंने कहा कि इतिहास के प्रति सम्मान राष्ट्रीयता का एक आवश्यक पक्ष है. और जब हिंसा की घृणित घटनाएं स्थापित आदर्शो पर चोट कर रही हों तो उन पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है. हमें हिंसा, असहिष्णुता व अविवेकी शक्तियों से अपनी रक्षा करनी होगी.
राष्ट्रपति ने 67वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि “हमारी उत्कृष्ट विरासत, लोकतंत्र की संस्थाएं सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती हैं.”
उन्होंने कहा कि हमारे निर्णय सामंजस्य, सहयोग और सर्वसम्मति से लिए जाने चाहिए, और इन निर्णयों को तुरंत अमल में न लाने से हमें ही नुकसान होगा.
उन्होंने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय क्रांति के साथ 21वीं सदी एक ऐसा युग होगा, जिसमें लोगों और देश की सामूहिक ऊर्जा उस बढ़ती हुई समृद्धि के लिए समर्पित होगी, जो पहली बार घोर गरीबी के अभिशाप को मिटा देगी.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जीपर यह उम्मीद इस शताब्दी के प्रथम 15 वर्षो में फीकी पड़ गई है. इसकी प्रमुख वजह क्षेत्रीय अस्थिरता में चिंताजनक वृद्धि और आतंकवाद है.
राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, “हमारी विवेकपूर्ण चेतना और हमारा नैतिक दोनों ही शांति चाहते हैं. यह सभ्यता की बुनियाद और आर्थिक प्रगति की आवश्यकता है. परंतु हम कभी भी यह छोटा-सा सवाल खुद से नहीं पूछ पाए हैं कि शांति कायम करना इतना मुश्किल क्यों है? टकराव खत्म करने से ज्यादा शांति लाना इतना कठिन क्यों है?”
(IANS से इनपुट के साथ)
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