जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद घाटी में अमन-चैन बनाए रखना केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. सबसे बड़ा खतरा, कश्मीर के उन पत्थरबाजों से है, जिन्होंने पिछले पांच सालों तक सरकार का नींद उड़ा रखी थी. उसे इस बात का बखूबी इल्म है कि पत्थरबाज फिर चुनौती बन सकते हैं. बदले हालात में सरकार ने भी पत्थरबाजों की कमर तोड़ने का मन बना लिया है.
घाटी में धारा 370 हटाते ही मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर की जेलों में बंद 26 बंदियों को आगरा शिफ्ट कर दिया है. कहने को तो ये अलगाववादी या फिर आतंकवादी हैं. लेकिन असल में ये वो लोग हैं,जो घाटी में पत्थरबाजों को न सिर्फ ट्रेंड करते थे बल्कि हर स्तर पर उनकी मदद भी करते थे.
‘नजरबंद’ कर लाया गया जेल
केंद्र सरकार से हरी झंडी मिलते ही पत्थरबाजों को वायु सेना के विशेष विमान से आगरा के खेरिया एयरपोर्ट पर लाया गया. एयरपोर्ट से केंद्रीय कारागार तक वाहनों में कड़ी सुरक्षा के बीच बंदियों को जाया गया. पूरे रुट पर पुलिसफोर्स तैनात रही. सरकार बंदियों को लेकर इस तरह अलर्ट थी जिन वाहनों में कैदी सवार थे, उन वाहनों की खिड़कियों को कपड़े से ढ़क दिया गया था. सूत्रों के मुताबिक बंदियों की आंखों पर पट्टी बांधी गई थी, जिसके पीछे वजह ये है कि बंदियों को इस बात का आभास ना हो पाए कि उन्हें किस जेल में लाया गया. सेंट्रल जेल के बाहर हाई सिक्योरिटी लगाई गई है. पुलिस के साथ पीएसी के जवान तैनात कर दिए गए हैं. इसके अलावा खुफिया तंत्र को भी अलर्ट कर दिया गया है.
'तन्हाई' बैरक में रखे गए कश्मीरी बंदी !
सूत्रों के मुताबिक लाए गए बंदियों को आगरा जेल के 'तन्हाई' बैरक में रखा गया है. आमतौर पर तन्हाई बैरक में उन बंदियों और कैदियों को रखा जाता है, जो बेहद खूंखार होते हैं. जिनसे जेल की सुरक्षा व्यवस्था को खतरा रहता है. इस तरह के बंदियों को जेल के अंदर बने छोटे साइज के बैरक में अकेले रखा जाता है. ये बंदी जेल के किसी दूसरे बंदी या कैदी से नहीं मिल सकते हैं. तन्हाई बैरक में इन बंदियों को सिर्फ नाश्ते और खाने के अलावा जिंदगी जीने की आवश्यक चीजें ही मुहैया कराई जाती हैं.
इन कैदियों को अगर किसी से मिलना भी है तो इसके लिए जेल प्रशासन की इजाजत लेनी पड़ती है. ऐसे बंदी हर वक्त सीसीटीवी की निगाह में रहते हैं.
पत्थरबाज देते रहे हैं चुनौती !
कश्मीर में आए दिन पत्थरबाजी की खबरें सुर्खियां बनती रहीं. कई बार ऐसे हालात पैदा हुए कि पत्थरबाजों ने सेना के जवानों को घेर लिया. नौबत तो यहां तक आ गई कि पत्थरबाजों को सबक सिखाने के लिए राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर लितुल गोगोई को अपनी गाड़ी के आगे एक पत्थरबाज को बांधना पड़ गया. इस मसले को लेकर कश्मीर में खूब हो हल्ला मचा. जम्मू कश्मीर पुलिस के डीएसपी अयूब पंडित को भला कौन भूल सकता है. 25 जून 2017 को श्रीनगर में एक मस्जिद के बाहर पत्थरबाजों ने अयूब पंडित की पीट-पीटकर जान ले ली थी.
मोदी सरकार ये जानती है कि घाटी से धारा 370 हटते ही पत्थरबाज जब घरों से निकलेंगे तो उनको कंट्रोल कर पाना कठिन होगा.
पत्थरबाजों के ‘आकाओं’ के खिलाफ एक्शन
श्रीनगर की गली-गली में पत्थरबाजों की ऐसी टोली बन गई जो हमेशा सुरक्षा बलों के लिए चुनौती पेश करती रहीं. सूत्रों के मुताबिक इन पत्थरबाजों के पीछे कुछ सियासी और अलगाववादी संगठनों के लोग हैं, जो इनकी मदद करते रहते हैं. पत्थरबाजी के लिए युवाओं को तैयार करना. पत्थरबाजी कैसे करनी है, इसकी ट्रेनिंग देने के साथ ही उनकी आर्थिक मदद करना. यही लोग करते रहे हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं के मास्टरमाइंड भी यही लोग थे. पिछले साल जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगने के बाद ऐसे लोगों के खिलाफ तेजी से कार्रवाई की गई और बड़ी तादाद में उनकी गिरफ्तारी भी हुई.
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इन पत्थरबाजों को श्रीनगर की जेल में रखा गया है. लेकिन अब जबकि राज्य से धारा 370 हटा लिया गया है, मोदी सरकार को इस बात का शक है कि जेल में बंद ये पत्थरबाज साजिश रच सकते हैं.
ओवरलोड हुए जम्मू-कश्मीर के जेल
जम्मू-कश्मीर में बदलते हालात के बीच सरकार अलर्ट है. सुरक्षा बलों ने एहतिहातन उन लोगों की गिरफ्तारी शुरु कर दी है, जो अमन-चैन में खलल डाल सकते हैं. पिछले कुछ दिनों में कश्मीर में पांच सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. नतीजा ये हुआ कि श्रीनगर जेल ओवरलोड हो गई है. जेल में बंदियों को रखने की जगह कम पड़ने लगी. ऐसे में सरकार ने श्रीनगर जेल में पहले से बंद खूंखार बंदियों को देश के दूसरे राज्यों में शिफ्ट करना शुरु कर दिया है. सुरक्षा बलों को आशंका है कि अगर जेल में बंदियों की संख्या ऐसे ही बढ़ती रही तो खतरा भी उत्पन्न हो सकता है. माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बंदियों की संख्या और भी बढ़ सकती है.
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