क्विंटिलियन मीडिया के फाउंडर राघव बहल ने मंगलवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात कर उन्हें अपनी किताब 'सुपर इकोनॉमीज' भेंट की. बहल की किताब हिस्ट्री, करेंट अफेयर्स और पॉलिटिकल एनालिसिस पर आधारित है. इसमें यह बताया गया है कि भारत कैसे जल्द ही विश्वगुरु बन सकता है और सभी के भविष्य की शांति और समृद्धि को सुरक्षित कर सकता है.
किताब के बारे में...
विश्व में तेजी के साथ बदलाव हुए हैं. वर्ल्ड वॉर-2 के बाद छह सालों में सुपरपावर युग की शुरुआत हुई, जिसने पूरे जियो-पॉलिटिकल सीन को ही बदलकर रख दिया. मुख्य रूप से सोवियत संघ ब्लॉक और अमेरिका तथा इनके नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) सहयोगी के बीच टकराव था. इन दोनों के बीच साम्यवाद बनाम लोकतंत्र को लेकर वैचारिक मतभेद थे. लेकिन फिर भी यह लड़ाई सैन्य तरीके से लड़ी गई और इनमें एटमी हथियारों के इस्तेमाल की होड़ रही. इसका नतीजा कोल्ड वॉर के रूप में सामने आया.
साल 1989 में जब बर्लिन की दीवार गिर गई, उसके बाद कोल्ड वॉर का अंत हो गया. इसके साथ ही दो ध्रुव वाले महाशक्ति युग का भी अंत हो गया. एक वक्त ऐसा भी आया, जब अमेरिका सुपर पावर के तौर पर उभरा. सोवियत संघ के विघटन के बाद 20वीं सदी के साथ ही सुपरपावर के युग का भी अंत हो गया.
21वीं सदी की शुरुआत के साथ ही 9/11 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर टावर्स के विध्वंस के रूप में एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. इसके बाद एक और झटका उस वक्त लगा, जब सात साल बाद 15/11 को लेहमेन ब्रदर्स को दिवालिया ठहराया गया. इसके बाद सुपर इकोनॉमीज के नए युग में अमेरिका ने वापसी की शुरुआत की और भारत लगातार आगे बढ़ता रहा. सुपर पावर्स जो मिसाइलों और जंगी जहाजों से हासिल करती है, सुपर इकोनॉमीज वही मुकाम आर्थिक नेतृत्व से हासिल करती हैः बहुउद्देश्यीय संवाद, दो देशों के बीच किस तरह का परस्पर संबंध हो और मजबूत सौदेबाजी के जरिए एक्सचेंज रेट से लेकर क्लाइमेट पॉलिसी तक पर अपना प्रभाव छोड़ती है. सुपर इकोनॉमीज के युग में सफलता का रास्ता सहयोग से पूरा होता है, हुकूमत से नहीं.
दिग्गजों ने की किताब की तारीफ
इस बुक की तारीफ सिर्फ कारोबारियों ने ही नहीं, बल्कि मंत्रियों और तकनीक के क्षेत्र में दिग्गजों ने भी की है.
सुपर इकोनॉमीज में राघव बहल ने बड़े लोकतंत्र के बीच होने वाले संभावित एक्सिस की वकालत की है- अमेरिका की ताकत और भारत की क्षमता मिलने से चीन की बढ़ती ताकत पर कैसे लगाम लगाई जा सकती है. यह एक ऐसा आशावादी नजरिया है, जो संकट के बाद छिपी हुई दुनिया दिखाता है. खास तौर पर तब, जब भारत और अमेरिका के नेताओं के बीच दोस्ताना संबंध बन रहे हैं.रुचिर शर्मा, हेड ऑफ इमर्जिंग मार्केट्स, मॉर्गेन स्टेनले एंड ऑथर, ब्रेकआउट नेशंस
राघव बहल ने अनुभवों को महसूस कराने वाली किताब लिखी है, जिसमें दुनिया की उभरती राजनीति के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है. उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति को एकसाथ जोड़कर विश्लेषण किया है, जो कि एक खास बात है.फरीद जकारिया, सीएनएन एंकर
ग्लोबल पावर डायनामिक्स और सुपर इकोनॉमीज के रोल को ध्यान में रखकर शोध और विश्लेषण के साथ लिखी गई बेहतरीन किताब.सुनील मित्तल, सीईओ, भारती इंटरप्राइजेज
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