महज सात साल की अबोध उम्र में ब्याही भीलवाड़ा जिले की 19 वर्षीय बालिका वधु मानसी को आखिरकार 12 साल बाद बाल विवाह से मुक्ति मिल गई. 'बालिका वधु' मानसी ने एक एनजीओ की मदद से भीलवाड़ा के पारिवारिक न्यायालय में बाल विवाह निरस्त करने की गुहार लगाई थी. जिस पर पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश हरिवल्लभ खत्री ने संवेदनशीलता दिखाते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाकर बाल विवाह निरस्त किया और कड़ा संदेश दिया.
मूल रूप से भीलवाड़ा जिले के पालडी निवासी उन्नीस वर्षीय मानसी का बाल विवाह महज सात साल का उम्र में वर्ष 2009 में बनेडा तहसील निवासी युवक के साथ हुआ था. मानसी ने करीब 12 साल तक बाल विवाह का दंश झेला.
इस दौरान जाति, पंचों व अन्य की ओर से लगातार गौना करवाने के लिए दबाव बनाया जाता रहा. कई धमकियां भी मिलती रही, लेकिन मानसी झुकी नहीं. उसने गूगल की मदद से बाल विवाह के खिलाफ मददगार की तलाश की और पूरे साहस से न्यायालय में मुकदमा दायर किया.
मानसी को सारथी ट्रस्ट की डॉ कृति भारती की बाल विवाह निरस्त मुहिम के बारे में जानकारी मिली. जिसके बाद मानसी ने उनसे सम्पर्क किया. डॉ कृति ने इसी साल मार्च माह में जोधपुर से भीलवाड़ा आकर पारिवारिक न्यायालय में मानसी के बाल विवाह निरस्त का मुकदमा दायर किया.
बाल विवाह से मुक्ति
पारिवारिक न्यायालय भीलवाड़ा में मानसी के साथ डॉ कृति भारती ने पेश होकर न्यायालय को बाल विवाह संबंधी तथ्यों से अवगत करवा पैरवी की. जिसके बाद न्यायाधीश हरिवल्लभ खत्री ने बालिका वधु मानसी के 12 साल पहले महज सात साल की उम्र में हुए बाल विवाह को निरस्त करने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया.
न्यायाधीश खत्री ने बाल विवाह के खिलाफ समाज को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि 'बाल विवाह के बंधन से मासूमों का वर्तमान और भविष्य दोनों खराब होता है.' वहीं सारथी ट्रस्ट की डॉ कृति भारती के बाल विवाह निरस्त की साहसिक मुहिम की सराहना की.
टीचर बनना चाहती है मानसी
अदालत के फैसले के बाद मानसी ने कहा कि 'मुझे अब बाल विवाह के वनवास से मुक्ति मिल चुुकी है, मैं बीए द्वितीय वर्ष में पढ रही हूं, अब आगे पढ़-लिखकर शिक्षिका बनना चाहती हूं.'
सारथी ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी और पुनर्वास मनोवैज्ञानिक डॉ.कृति भारती ने कहा, "न्यायाधीश हरिवल्लभ खत्री ने बाल विवाह के मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाकर बाल विवाह निरस्त कर दिया. हम अब मानसी के बेहतरीन पुनर्वास के लिए प्रयासरत हैं."
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