देश के मशहूर वकील राम जेठमलानी का दिल्ली में 95 साल की उम्र में निधन हो गया है. राम जेठमलानी के नाम BAR का सबसे युवा और सबसे बुजुर्ग सदस्य होने का रिकॉर्ड है. जब उन्होंने वकालत शुरू की, तब वे केवल 18 साल के थे.
इस आर्टिकल में हम उन 5 हाई प्रोफाइल केस के बारे में बता रहे हैं, जिनमें राम जेठमलानी ने पैरवी की.
1. नानावटी केस: जब जेठमलानी पहली बार चर्चा में आए
नेवी के एक ऑफिसर कवस नानावटी ने अपनी पत्नी सिल्विया के प्रेमी, प्रेम आहूजा की गोली मारकर हत्या कर दी थी. हत्या करने से पहले कवस ने प्रेम आहूजा से पूछा था कि क्या वो सिल्विया और उसके बच्चों को अपनाने के लिए तैयार है. इस पर प्रेम ने इनकार कर दिया था.
मीडिया ट्रायल का सामना करने वाला यह पहला और ज्यूरी के डिसीजन वाला आखिरी केस था.
जेठमलानी ने प्रेम आहूजा के परिवार की तरफ से ये केस लड़ा था. हालांकि उस वक्त जेठमलानी इतने प्रसिद्ध वकील नहीं हुआ करते थे. पर जेठमलानी की पैरवी के चलते नानावटी को दोषी करार दिया गया.
हालांकि जब केस पारसी और सिंधी समुदायों के बीच टकराव का केंद्र बन गया, तो जेठमलानी ने प्रेम की बहन मैमी आहूजा से अपने भाई के कातिलों के लिए माफी का खत लिखने को कहा. इसे मैमी ने मान लिया.
2. इमरजेंसी में सरकार से टकराव
इमरजेंसी के दौरान इंदिरा सरकार ने मीसा कानून के तहत बड़ी तादाद में गिरफ्तारियां कीं. हजारों की संख्या में पॉलिटिकल एक्टिविस्ट और पत्रकारों की गिरफ्तारी हुई. शांति भूषण की अगुवाई में 12 वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार के इन कदमों का विरोध किया. राम जेठमलानी इन 12 वकीलों में शामिल थे.
लेकिन हैरान कर देने वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों वाली बेंच ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया. 5 में से सिर्फ एक जज सरकारी कदमों के खिलाफ था.
3. इंदिरा गांधी हत्याकांड के आरोपियों का केस
इंदिरा गांधी के कत्ल का केस 'ओपन एंड शट' केस था. लेकिन साजिश रचने के आरोपों का सामना कर रहे बलबीर सिंह और खेहर सिंह की मांग पर राम जेठमलानी ने केस ले लिया. 'आउटलुक' से बात करते हुए जेठमलानी ने 2009 में कहा, ‘'हमारे पेशे की परंपरा में विनती को आदेश के तौर पर देखा जाता है. मेरे पास हां करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.’'
जेठमलानी ने अपनी दलीलों से बलबीर सिंह को बचा लिया. उन्होंने साबित कर दिया कि इंदिरा गांधी के कातिलों और बलबीर को बीच रिश्ता नहीं था.
अदालत में ये साबित हुआ कि बलबीर सिंह को कत्ल के अगले दिन गिरफ्तार किया गया था और उसे 33 दिन तक अवैध हिरासत में रखा गया. हालांकि वो खेहर सिंह को नहीं बचा पाए और उसे मौत की सजा हुई.
हालांकि इस केस के बाद बीजेपी ने राम जेठमलानी को बाहर कर दिया. जब वे राज्यसभा में पहुंचे तो कांग्रेस सांसदों ने उनके खिलाफ नारेबाजी की थी.
4. राजीव गांधी हत्याकांड में पैरवी
राम जेठमलानी ने राजीव गांधी हत्याकांड में एलटीटीई ऑपरेटिव मुरुगन की फांसी के खिलाफ भी केस लड़ा. जेठमलानी का कहना था कि मुरुगन पहले ही 23 साल जेल में काट चुका है.
केंद्र ने तमिलनाडु सरकार के उस फैसले का विरोध किया था, जिसमें दोषियों की सजा कम करने का फैसला लिया गया था. केंद्र ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील लगाई थी.
इस दौरान जेठमलानी ने कहा कि 21 मई, 1991 को किया गया सुसाइड अटैक, जिसमें राजीव गांधी की मौत हो गई थी, वह भारत के खिलाफ हमला नहीं था.
5. हर्षद मेहता केस- जब वकीलों के पास आया बड़ा पैसा
1992 में हर्षद मेहता स्कैम के खुलासे के बाद माना जाता है कि मुंबई के वकीलों की किस्मत चमक गई. इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, शुरुआती सालों में हर्षद मेहता और उसके भाइयों ने देश के सबसे महंगे वकीलों को पैरवी के लिए रखा.
इसी दौरान वकीलों को एक लाख रुपये, एक सुनवाई के तक मिलने लगे, जबकि सुप्रीम कोर्ट के वकील भी इतना पैसा नहीं कमा रहे थे. लाइवमिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, खास वकीलों को 5 से 15 लाख रुपये प्रति सुनवाई तक दिया जाता है.
लेकिन केवल एक ही वकील था, जो 25 लाख रुपये तक चार्ज करता था... आखिर क्यों जेठमलानी इतना चार्ज लेने में कामयाब हुए. दरअसल जेठमलानी ज्यादातर काम समाजसेवा के लिए कर रहे थे, इसलिए कम केस हाथ में लेते थे और उन्हें काम पर लेने की फीस ऊंची रखते थे.
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