रावण के पुतलों का बाजार भी इस बार जीएसटी की मार से झेल रहा है. पुतला बनाने में काम आने वाली तमाम चीजों की कीमत बढ़ चुकी है, जिससे पिछले साल की तुलना में लागत में काफी बढ़ोतरी हुई है. कारीगरों का कहना है कि लागत बढ़ने की वजह से इस बार छोटे पुतलों के आर्डर आ रहे हैं, वहीं कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों की तो मांग न के बराबर है.
पश्चिमी दिल्ली का ततारपुर गांव राजधानी में रावण के पुतलों का प्रमुख बाजार है. यहां 1973 में सिकंदराबाद से आए छुट्टन लाल ने पुतले बनाने शुरू किए थे और तब से यह परंपरा चली आ रही है. बाद में उनका नाम रावण वाला बाबा पड़ गया था.
आज छुट्टन लाल के कई चेले इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. रावण वाले बाबा के चेले रहे संजय बताते हैं कि वैसे हर साल पुतले महंगे हो जाते हैं, लेकिन इस साल जीएसटी के बाद तमाम सामान काफी महंगा हो गया है.
बांस की एक कौड़ी (20 बांस) की कीमत इस साल 1,000 से 1,200 रुपये हो गई है. जबकि इस पिछले साल इसकी कीमत 700-800 रुपये कौड़ी थी. इसी तरह पुतलों को बांधने के लिए इस्तेमाल होने वाले तार का दाम भी 40-50 रुपये किलो तक पहुंच गया है. कागज 25 रुपये किलोग्राम पर आ गया है.
सुभाष एंड कौशल रावण वाले के कौशल के मुताबिक इस बार पुतलों का दाम 300 से 350 रुपये फुट पर पहुंच गया है, जबकि पिछले साल ये 250 रुपये फुट था.
अधिक लंबाई के पुतलों की मांग घटी
30 साल से यही काम करने वाले महेंद्र के मुताबिक अब अधिक लंबाई के पुतलों की मांग नहीं रह गई है. ज्यादातर आयोजक 30 से 40 फुट तक के ही पुतलों की मांग करते हैं. वहीं गली मोहल्लों में जलाने के लिए लोग 10-20 फुट के पुतलों की मांग करते हैं.
ततारपुर के पुतले दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और गुजरात तक जाते हैं. इसके अलावा कई बार विदेशों से भी ऑर्डर मिलते हैं. कुछ साल पहले यहां से रावण का पुतला ऑस्ट्रेलिया के सिडनी भेजा गया था.
ततारपुर में पुतले बनाने का काम विजयदशमी से 50 दिन पहले शुरू हो जाता है. दिल्ली के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा के करनाल और हिमाचल प्रदेश से कारीगर यहां पुतले बनाने आते हैं और यह उनके लिए बरसों से रोजी रोटी का जरिया बना हुआ है.
आखिरी दिन तक रहता है ग्राहकों का इंतजार
करनाल से दिल्ली आए मुकेश बताते हैं कि रावण के पुतलों की मूंछ बड़ी रखी जाती है. जब कुंभकर्ण या मेघनाद के पुतलों का आर्डर आता है, तो छोटी मूंछ के पुतले बनाए जाते हैं. इसी तरह अमरोहा से यहां पिछले 25 साल से लगातार आने वाले कृपाल कहते हैं कि पहले ऑर्डर मिलने पर पुतले बनाए जाते थे. अब कई आकार के पुतले बना लेते हैं और ग्राहकों का इंतजार करते हैं. अब तो आखिरी दिन तक ग्राहकों का इंतजार रहता हैं.
40 फुट के रावण का दाम 12,000 से 15,000 रुपये है. पिछले साल ये 10,000-11,000 रुपये था.
संजय बताते हैं कि आज पुतलों के कारोबार में भी काफी कंपटीशन हो गया है. कई फाइनेंसर इस मौके पर कारीगरों को ऊंचे ब्याज पर कर्ज देते हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि पुतले बिकने के बाद उन्हें उनका पैसा ब्याज के साथ मिल जाएगा.
कारीगरों के मुताबिक, इस बार ततारपुर में करीब 1,000 पुतले बन रहे हैं. हालांकि, कुछ साल पहले यहां दो हजार से ज्यादा पुतले बनते थे.
पश्चिम दिल्ली के राजा गार्डन से सुभाष नगर तक सड़कों पर रंग बिरंगे रावण के पुतलों का बाजार सजा हुआ है. हाल में दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने सड़कों से पुतलों को हटाने की कार्रवाई शुरु की थी, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट से स्वत: संज्ञान लेते हुए निगम को फटकार लगी थी और ऐसा न करने का निर्देश दिया गया था.
(इनपुट: भाषा)
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