राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के कामकाज पर सवाल उठाए हैं. मंच का मानना है कि आयोग की सोच में स्पष्टता की कमी है और उसे जिस गहराई और साझेदारी के साथ काम करना चाहिए वो नहीं हो पा रहा है. स्वदेशी जागरण मंच के एक सम्मेलन में नीति आयोग की समीक्षा के दौरान ये बातें सामने आईं.
स्वदेशी जागरण मंच को सबसे बड़ी आपत्ति इस बात से है कि नीति आयोग अपने कई प्रोजेक्ट्स में विदेशी संस्थाओं से सलाह लेता है. इस साझेदारी में पारदर्शिता होनी चाहिए.
मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा-
माइक्रोसोफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स अगर हमारे देश की स्वास्थ्य नीति पर बात करते हैं तो देश के लोगों को ये जानने का हक है कि आखिर उनकी दिलचस्पी और उद्देश्य क्या है. ये आयोग की वेबसाइट पर होना चाहिए.
खास बात यह है कि दिल्ली में हुए इस सम्मेलन में मंच ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया और कई सदस्यों को आमंत्रित किया था. पनगढ़िया तो नहीं आए लेकिन आयोग के सदस्य विवेक देवरॉय ने कुछ देर के लिए सम्मेलन में शिरकत की लेकिन उन्होंने चर्चा में हिस्सा नहीं लिया.
इसके अलावा मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा और शांता कुमार जैसे बीजेपी के दिग्गजों को भी शिरकत का निमंत्रण भेजा गया था लेकिन किसी ना किसी वजह से वो भी नहीं आए. हालांकि भारतीय किसान संघ, बीजेपी किसान मोर्चा, भारतीय मजदूर संघ, और एबीवीपी जैसे संगठनों के नुमाइंदे सम्मेलन में मौजूद रहे. उनके साथ डॉ संजय बारू, राजीव कुमार, सचिन चतुर्वेदी जैसे कई अर्थशास्त्रियों ने भी सम्मेलन में हिस्सा लिया.
‘नीति आयोग ने राज्यों से नहीं ली सलाह’
नीति आयोग ने कारोबार, स्वास्थ्य, कृषि, ग्रामीण विकास, शिक्षा और कौशल विकास जैसे मसलों पर अब तक 23 रिपोर्ट्स जारी किए हैं. इनमें से कृषि, स्वास्थ और आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों यानी जीएम मस्टर्ड से जुड़ी 3 रिपोर्ट्स पर तफ्सीली चर्चा की गई. आयोग पर उंगली उठाते हुए अश्विनी महाजन कहते हैं-
नीति आयोग के जल्दबाजी में लिए गए कई फैसलों ने देश में सस्ती दवाईयों की उपलब्धता को प्रभावित किया है. इसके अलवा जीएम मस्टर्ड पर नीति बनाने से पहले भी राज्यों से सलाह मश्विरा नहीं किया गया.
हालांकि स्वदेशी जागरण मंच ने साफ किया है कि ये सम्मेलन नीति आयोग की आलोचना के लिए नहीं था लेकिन अहम नीतियों को सही तरीके से लागू किए जाने के मसले पर चिंतन-मंथन तो होना ही चाहिए.
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