सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में वकीलों के आचरण को 'शर्मनाक' बताया है. उन्होंने गुरुवार को खुद वकीलों के व्यवहार पर खेद जताया.
कोर्ट की ओर से अयोध्या मामले में एडवोकेट सीएस वैद्यनाथन को दलील शुरू करने को कहे जाने पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन और दुष्यंत दवे ने सुनवाई छोड़कर चले जाने की चेतावनी दी थी.
बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस ने कहा:
कल (बुधवार को) जो कुछ भी हुआ, वह शर्मनाक है. परसों (मंगलवार को) जो कुछ हुआ था, वो बहुत ज्यादा शर्मनाक है. दुर्भाग्य से वकीलों के छोटे समूह का मानना है कि वे अपनी आवाज उठा सकते हैं. हम साफ-साफ बता रहे हैं कि आवाज उठाना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. आवाज उठाना आपकी (वकीलों की) अक्षमता का परिचायक है.
वकीलों को याद दिलाई परंपरा
वकीलों को उनकी परंपरा की याद दिलाते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि ये वकालत की परंपरा नहीं है. अगर वकीलों का संघ खुद का रेगुलेशन नहीं करता है, तो हम उस पर रेगुलेशन के लिए दबाव डालेंगे.
गौरतलब है कि सिब्बल, धवन और दवे ने राम जन्मभूमि मामले में सुनवाई 2019 के आम चुनाव तक स्थगित करने की मांग की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने रामलला की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ एडवोकट सीएस वैद्यनाथन को दलील पेश करने की कार्यवाही शुरू करने को कहा था. बाद में मामले में सुनवाई के लिए 8 फरवरी की तारीख मुकर्रर की गई.
इससे पहले एडवोकेट राजीव धवन ने कोर्ट से कहा था कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच दिल्ली की प्रशासनिक शक्तियों को लेकर कशमकश के मामले में किसी फैसलों पर विचार नहीं करते, जिसका वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने विरोध किया था.
चीफ जस्टिस ने इंदिरा जयसिंह की सराहना की थी, जिन्होंने धवन से कहा था कि वो किसी फैसले को लेकर अक्खड़ रुख अख्तियार नहीं कर सकते.
मामले में सुनवाई शुरू करने पर चीफ जस्टिस की ये टिप्पणी गुरुवार को तब आई, जब एडवोकेट गोपाल सुब्रह्मण्यम ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि वे भी वकालत की परंपरा का पालन करने और अदालत की गरिमा को कायम रखने में 'रूढ़िवादी' हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)