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अब हर मौसम में, पूरे साल घुटता है दिल्‍ली का दम

जहरीली हवा का बढ़ता स्तर अब साल के 12 महीने दिल्ली-एनसीआर को अपनी आगोश में ले रहा है.

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भारत
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पिछले कुछ सालों से दिल्ली-एनसीआर में सर्दी के मौसम में धुंध और भीषण वायु प्रदूषण की समस्या अब आम हो चुकी है. इस साल भी ऐसा ही हुआ. लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात ये है कि राजधानी में जहरीली हवा का जो स्तर साल के कुछ हफ्तों में देखने को मिल रहा था, वो अब साल के 12 महीने इस इलाके को अपनी आगोश में ले रहा है.

सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की जो रिपोर्ट सामने आई है, वो बेहद गंभीर है. रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली-एनसीआर के लोग इस जहरीली हवा में तिल-तिलकर घुटने को मजबूर हैं.

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पश्चिमी भारत में उठ रही धूल भरी आंधियों की वजह से दिल्ली में बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण फैल रहा है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने मार्च और मई 2018 के दौरान 24 घंटे के औसत स्तर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पीएम 2.5 स्तर का वायु प्रदूषण दर्ज किया है.

इंडियास्पेंड ने इन आंकड़ों का विश्लेषण किया है. ये चौंकाने वाले आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में हवा की खराब गुणवत्ता सर्दियों और दूसरे मौसम की घटनाओं से परे अब लगातार प्रभावित करने वाली समस्या बन गई है.

'खतरनाक' स्तर पर दिल्ली की हवा

वर्ल्ड एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक, दिल्ली में हवा की गुणवत्ता अब 'हेजर्डस' यानी 'खतरनाक' स्तर पर पहुंच चुकी है. एनसीआर के क्षेत्रों में 13 जून, 2018 को एयर क्वालिटी इंडेक्स वैल्यू 999 दर्ज किया गया. एयर क्वालिटी इंडेक्स वैल्यू में ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कण युक्त प्रदूषण को संयुक्त रूप से शामिल किया जाता है.

सीपीसीबी की एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक, मौजूदा वक्त में  दिल्ली में ‘सीवेर’ यानी ‘गंभीर’ वायु प्रदूषण दर्ज हो रहा है. इसमें 24 घंटे के औसत स्तर पर पीएम 2.5-कणों की मौजूदगी दर्ज हुई है. ये कण इंसानी बाल से 30 गुना ज्यादा महीन होते हैं. इन्हें इंसानों के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जाता है. ये प्रति घन मीटर हवा में 250 माइक्रोग्राम से ज्यादा की मात्रा में मौजूद हैं.

वायु प्रदूषण के इस ऊंचे स्तर की वजह से स्वस्थ लोगों पर भी सांस से संबंधित समस्या हो सकती है. और फेफड़ों / हृदय रोग वाले लोगों पर गंभीर असर पड़ सकता है. घर से बाहर होने वाली हल्की शारीरिक गतिविधियों के दौरान भी सेहत पर पड़ने वाले बुरे असर को अनुभव किया जा सकता है.

जहरीली हवा का बढ़ता स्तर अब साल के 12 महीने दिल्ली-एनसीआर को अपनी आगोश में ले रहा है.
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किस स्तर पर कितनी खराब होती है हवा

एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक, 0 से 50 के बीच के एयर क्वालिटी इंडेक्स को ‘अच्छा' माना जाता है, 51-100 के बीच को ‘संतोषजनक', 101-200 के बीच को ‘मध्यम', 201-300 को ‘खराब', 301-400 को ‘बहुत खराब' और 401-500 को ‘खतरनाक' माना जाता है.

जहरीली हवा का बढ़ता स्तर अब साल के 12 महीने दिल्ली-एनसीआर को अपनी आगोश में ले रहा है.

सर्दियों के अलावा दूसरे मौसम में भी पीएम 2.5 के ऊंचे स्तर

सीपीसीबी की मासिक एयर एम्बियंस रिपोर्ट (मार्च, अप्रैल और मई के लिए) के इकट्ठा किए गए आंकड़ों के एक्यूआई वैल्यू के मुताबिक, मार्च और मई 2018 के बीच दिल्ली को एक दिन के लिए भी 'अच्छी' गुणवत्ता वाली हवा नसीब नहीं हुई. इस दौरान दिल्ली से 160 किलोमीटर दूर राजस्थान के अलवर में महज दो दिनों के लिए 'अच्छी' गुणवत्ता वाली हवा दर्ज की गई.

आंकड़े बताते हैं कि तीन महीने में, दिल्ली-एनसीआर में मौजूद सात एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन ने ‘खराब’ वायु गुणवत्ता के 223 उदाहरण और ‘बहुत खराब’ वायु गुणवत्ता के 87 उदाहरणों को दर्ज किया.  

पीएम 2.5 से इंसानों के लिए गंभीर खतरा है. ये महीन कण फेफड़ों में गहराई तक चले जाते हैं, जिससे दिल का दौरा, स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर और सांस संबंधी रोग हो सकते हैं. बता दें कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से निर्धारित सुरक्षित सीमा से 10-12 गुना ज्यादा खराब है. मतलब खतरे की घंटी बज चुकी है.

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