ADVERTISEMENTREMOVE AD

शाह बानो के बेटे ने क्‍व‍िंंट को बताया,तीन तलाक का फैसला कितना अहम

तलाक पर मुस्लिम महिलाओं की यह लड़ाई काफी पहले ही शुरू हो गई थी. इस लड़ाई में पहला कदम इंदौर की शाह बानो ने रखा था. 

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

भले ही सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर अब जाकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया हो, लेकिन मुस्लिम महिलाओं की यह लड़ाई काफी पहले ही शुरू हो गई थी. इस लड़ाई में पहला कदम इंदौर की शाह बानो ने रखा था. शाह बानो को उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने साल 1978 में तलाक दे दिया था.

तीन तलाक पर आए फैसले के बाद द क्विंट ने शाह बानो के बेटे जमील अहमद से बात की और जानने की कोशिश की कि इनके लिए क्या है इस फैसले का मतलब.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दूसरी बीवी की वजह से मेरे पिता ने मेरी मां को तलाक दे दिया था

जमील अहमद बताते हैं:

मेरे पिता ने दो शादियां की थीं. मेरी मां शाह बानो उनकी पहली बीवी थी. मेरे पिता की दूसरी बीवी उनसे 14 साल छोटी थी. मेरी मां और मेरे पिता की दूसरी बीवी के बीच में हमेशा छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा होता था. इस वजह से मेरे पिता ने मेरी मां को तलाक दे दिया था.

क्या है पूरा मामला?

एमए खान इंदौर के जाने-माने वकील थे. 1979 में तलाक के बाद शाह बानो ने भरण-पोषण के लिए निचली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने सभी दलीलें सुनने के बाद एमए खान को हुक्म दिया कि वे हर महीना शाह बानो को गुजारे के लिए 79 रुपये दें.

लेकिन एमए खान ने जिला कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. लेकिन हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को कायम रखा और रकम बढ़ा दी. एमए खान ने फिर इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों कोर्ट के फैसले को जस का तस रखते हुए गुजारा कायम रखा.

शाह बानो के सबसे छोटे बेटे जमील अपनी मां को याद करते हुए बताते हैं, "मेरी मां एक साधारण औरत थी. उन्हें घर में रहना पसंद था, लेकिन 60 साल की उम्र में उन्हें तलाक मिलने से वो बहुत सदमे में थीं. वो बीमार रहने लगी थीं.'' शाह बानो की मौत ब्रेन हेमरेज की वजह से 1992 में हो गई.

जमील कहते हैं,

मेरे पिता शुरुआत में तो खाने-खर्चे का इंतजाम कर देते थे, लेकिन बाद में ध्यान देना बंद कर दिया. परेशान होकर अम्मी ने जिला कोर्ट में भरण-पोषण केस दायर कर दिया. एक मुस्लिम महिला का गुजारे के लिए कोर्ट तक पहुंचना समाज को नागवार गुजरा. विरोध होने लगा. अम्मी ने हिम्मत नहीं हारी. वे 7 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ती रहीं और जीतीं.
तलाक पर मुस्लिम महिलाओं की यह लड़ाई काफी पहले ही शुरू हो गई थी. इस लड़ाई में पहला कदम इंदौर की शाह बानो ने रखा था. 

जमील अहमद ने 1985 के उन दिनों को याद करते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरे देश में विरोध हुआ. विरोध कर रहे लोगों का कहना था कि शरियत के हिसाब से तलाक के बाद भरण-पोषण का कोई रिवाज नहीं है.

मामला इतना बढ़ा राजीव गांधी को देना पड़ा दखल

मामला इतना बढ़ा कि प्रधानमंत्री तक को दखल देना पड़ा. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाह बानो को मिलने बुलाया. जमील बताते हैं कि वे अम्मी के साथ राजीव गांधी से मिलने दिल्ली गए थे. मुलाकात करीब आधे घंटे तक चली. राजीव गांधी ने कहा था कि आप भरण पोषण की रकम लेना छोड़ दीजिए.

तीन तलाक पर आए फैसले पर जमील कहते हैं कि ये फैसला मुस्लिम औरतों को नई जिंदगी देगा. साथ ही अब उन्हें डर के साये में नहीं जीना होगा. हालांकि अब न तो शाह बानो जिंदा हैं, न ही एमए खान.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×