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महाराष्ट्र में शरद पवार की ‘पगड़ी पर राजनीति’,ये हैं सियासी मायने 

एनसीपी प्रमुख शरद पवार के एक कदम ने महाराष्ट्र में ‘पगड़ी पर राजनीति’ शुरू कर दी है.

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एनसीपी प्रमुख शरद पवार के नए कदम ने महाराष्ट्र में 'पगड़ी पर राजनीति' शुरू कर दी है. पुणे में 10 जून को शरद पवार ने छगन भुजबल का स्वागत परंपरागत 'पुणेरी पगड़ी' की बजाय 'फुले पगड़ी' से किया था. संदेश साफ था कि छगन भुजबल पिछड़ी जातियों के साथ खड़े हैं और एनसीपी सिर्फ मराठाओं की पार्टी नहीं है.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार के एक कदम ने महाराष्ट्र में ‘पगड़ी पर राजनीति’ शुरू कर दी है.
10 जून को शरद पवार ने पुणे में छगन भुजबल का स्वागत परंपरागत ‘पुणेरी पगड़ी’ की बजाय ‘फुले पगड़ी’ से किया था.
(फोटो: ट्विटर\@PawarSpeaks)
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दरअसल, पिछले कई दशकों में 'पुणेरी पगड़ी' और 'फुले पगड़ी' अलग-अलग जातीय वर्गों का सांकेतिक चिह्न बन गईं हैं और अब पवार ने पुणेरी पगड़ी की जगह फुले पगड़ी अपनाने की बात कही है, जिसके गहरे सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. शिवसेना ने शरद पवार पर जातीय ध्रुवीकरण का आरोप लगाया है.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार के एक कदम ने महाराष्ट्र में ‘पगड़ी पर राजनीति’ शुरू कर दी है.
फुले पगड़ी पहने हुए ज्योतिबा फुले, पुणेरी पगड़ी के साथ बाल गंगाधर तिलक
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'पुणेरी पगड़ी' और 'फुले पगड़ी' अपनाने का मतलब क्या है?

आप सोच रहे होंगे कि आखिर इन पगड़ियों में ऐसा क्या है कि विवाद खड़ा हो गया है. इसके लिए इन दोनों पगड़ियों के इतिहास को जानने की जरूरत है. पुणेरी पगड़ी पेशवाई के दौर में अस्तित्व में आई. इसे ब्राह्मण शासकों पेशवाओं का प्रतीक चिह्न माना जाता है. इसका इस्तेमाल समाज में ऊंचा ओहदा रखने वाले शिक्षित और संपन्न लोग किया करते थे. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, जस्टिस रानाडे जैसे आजादी के नायक भी इस पगड़ी को पहनते थे.

दूसरी तरफ, दलितों, महिलाओं की बेहतरी के लिए काम करने वाले समाज सुधारक ज्योतिबा फुले भी एक खास तरह की पगड़ी पहनते थे. उन्हीं के नाम पर फुले पगड़ी का अस्तित्व सामने आया. महात्मा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने जीवन भर दलित और महिलाओं के जीवन सुधार के लिए काम किया, वे पिछड़े समाज का प्रतिनिधित्व करते थे.

ऐसे में ये दोनों पगड़ियां अलग-अलग जातीय वर्गों की प्रतीक चिह्न बनकर उभरी हैं

पगड़ी में फेरबदल के क्या मायने हैं?

एनसीपी प्रमुख शरद पवार के एक कदम ने महाराष्ट्र में ‘पगड़ी पर राजनीति’ शुरू कर दी है.
पगड़ी में फेरबदल के क्या मायने हैं?
(फोटो: फेसबुक)

शरद पवार एक बेहद मंझे हुए राजनेता माने जाते हैं. उन्हें कब, क्या, कैसे और कितना बोलना ये अच्छी तरह पता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में अब सालभर से भी कम का वक्त बचा है और हर पार्टी पिछड़ी जाति के लोगों को अपने साथ जोड़ने के जुगत में हैं. शरद पवार के 'पगड़ी में फेरबदल' को भी पिछड़ी जातियों को साथ लाने की कवायद बताया जा रहा है. हालांकि, विपक्ष इस कदम को जातिवादी बताने में जुटा हुआ है.

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पवार की पगड़ी की राजनीति पर उद्धव का निशाना

एनसीपी प्रमुख शरद पवार के एक कदम ने महाराष्ट्र में ‘पगड़ी पर राजनीति’ शुरू कर दी है.
पवार की पगड़ी की राजनीति पर उद्धव का निशाना
(फोटोः AP)

शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने सामना के संपादकीय में शरद पवार की 'पगड़ी की राजनीति' पर जमकर हमला बोला. उद्धव ने कहा की शरद पवार का संतुलन बिगड़ गया है और आत्मविश्वास डगमगाता दिख रहा है. ठाकरे ने कहा कि उन्होंने जो पगड़ी की राजनीति शुरू की है वो महाराष्ट्र के लिए खतरे की घंटी है. उद्धव आगे लिखते हैं कि महाराष्ट्र में जातीय ध्रुवीकरण करने के लिए कई तरह की कोशिशें हो रही हैं. भीमा कोरेगांव की घटना के बाद पवार की पार्टी को नया पैंतरा मिलने की बात भी उद्धव ठाकर ने कही है.

पवार की सफाई

विवाद को बढ़ता देख शरद पवार ने कहा है की फुले पगड़ी को लेकर उनके बयान का गलत मतलब निकाला जा रहा है. उन्होंने कहा कि जिन लोगों के आदर्शों को लेकर वो चलते हैं उनमें छत्रपति शाहूजी महाराज, ज्योतिबा फुले और बाबा साहेब अंबेडकर हैं. इस मामले में बीजेपी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. सोशल मीडिया पर पवार के पगड़ी वाले बयान की जमकर आलोचना की जा रही है.

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