भय्यूजी महाराज को रुतबे के लिए राज्यमंत्री के ओहदे की जरूरत नहीं, वो पहले से ही मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के राजनीतिक दलों में खासा रसूख रखते हैं. भय्यूजी के बारे में जानने वालों का तो ऐसा ही मानना है.
भय्यूजी महाराज का पूरा नाम उदय सिंह देशमुख है. उन्हें गृहस्थ संत माना जाता है, लेकिन आध्यत्मिक गुरु बनने से पहले 21 साल की उम्र में उन्होंने कुछ वक्त के लिए मॉडलिंग भी की थी.
भय्यूजी महाराज होने का मतलब
भय्यूजी मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में लोगों के बीच जाने-जाते थे, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान बनी 2011 दिसंबर में, जब उन्होंने अन्ना और सरकार के बीच बातचीत की भूमिका निभाई और अन्ना का अनशन खत्म कराया. तब महाराष्ट्र के नेता और केंद्रीय मंत्री रहे विलासराव देशमुख के कहने पर भय्यूजी मध्यस्थ बने थे.
इस वक्त बीजेपी के शीर्ष नेताओं के बीच उनका उठना-बैठना है. उन्हें सरसंघचालक मोहन भागवत का करीबी माना जाता है. इसके अलावा शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे भी उनको तरजीह देते हैं.
भय्यूजी महाराज राजनीतिक संपर्क में कैसे आए
मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में रहने वाले भय्यूजी महाराज का राजनीति से जुड़ने का महाराष्ट्र कनेक्शन है. उनका पैतृक गांव महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में आता है. ऐसे में उनका अपने गांव में आना-जाना रहता था. राजनीतिक नेताओं से संपर्क कांग्रेस नेता अनिल देशमुख के जरिए हुआ. साल 1995 में वो महाराष्ट्र के नेता अनिल देशमुख के जरिए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख से जुड़े. मराठा होने के नाते भी भय्यूजी का प्रभाव महाराष्ट्र की राजनीति में रहा है.
विलासराव देशमुख से नजदीकी
कहा जाता है कि पूर्व सीएम विलासराव देशमुख से नजदीकी की वजह से भय्यूजी की महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में तेजी से पैठ बढ़ी. 2000 में जब विलासराव मुख्यमंत्री थे, तब भय्यूजी का अधिकतर समय महाराष्ट्र में ही गुजरता था. उस वक्त उन्हें महाराष्ट्र में राजकीय अतिथि का दर्जा भी दिया गया था.
कांग्रेस के नेता तो भय्यूजी से प्रभावित थे ही, एनसीपी और बीजेपी के नेता भी उन्हें सम्मान देते रहे हैं. बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी से भी उनकी नजदीकियां रही हैं.
शिवसेना सुप्रीम उद्धव ठाकरे के भी करीबी
साल 2008 से भय्यूजी शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के काफी करीबी हो गए. बाला साहब ठाकरे और उद्धव, दोनों नियमित तौर पर भय्यूजी से अपने घर मातोश्री में मिला करते थे. बाला साहब के निधन के वक्त भी भय्यूजी के मार्गदर्शन में ही बाला साहब का अंतिम संस्कार किया गया और वो पूरे वक्त उद्धव ठाकरे परिवार के साथ मौजूद रहे.
ये तक कहा जाने लगा कि इंदौर के सर्वोदय आश्रम (भय्यूजी का आश्रम) से कह दिया जाए, तो शिवसेना में टिकट मिलने की गारंटी.
भय्यूजी के दर पर नेता क्यों जाते हैं
भय्यूजी का इस्तेमाल नेता संकटमोचक के तौर पर भी किया करते थे. साल 2011 में अन्ना हजारे का आंदोलन खत्म कराने में मध्यस्थता की. एमएनएस अध्यक्ष राज ठाकरे भी भय्यूजी के भक्तों में जाना जाते हैं. हालांकि राज ठाकरे की नजदीकी कुछ साल पहले से भी बढ़ी है.
फिलहाल RSS प्रमुख मोहन भागवत और भय्यूजी के सम्बन्ध बेहद घनिष्ठ बताये जाते हैं. करीब-करीब सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से उनके संपर्क हैं. यही वजह है कि किसी भी पार्टी के नेता भय्यूजी की आलोचना करने से बचते हैं.
आलीशान लाइफस्टाइल
भय्यूजी के बारे में मशहूर है कि वो महंगी लग्जरी कारों और स्विस घड़ियों के शौकीन हैं. कुछ साल पहले उनकी पहली पत्नी का देहांत होने के बाद उन्होंने दूसरी शादी की. वो अक्सर कहते हैं, सबकी पहली जिम्मेदारी परिवार है, उसके बाद समाज.
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