केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को एंट्री देने के खिलाफ प्रदर्शन के बीच केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने विवादित कमेंट पर सफाई दी है.
स्मृति ईरानी ने कहा, ‘‘मैं हिंदू धर्म को मानती हूं और मैंने पारसी धर्मावलंबी से शादी की, इसलिए मुझे प्रार्थना के लिए आतिश बेहराम में जाने की इजाजत नहीं है.''
उन्होंने लिखा, ‘‘मैं पारसी समुदाय या धर्मगुरुओं के इस रुख का सम्मान करती हूं और दो पारसी बच्चों की मां के रूप में प्रार्थना के लिए किसी अदालत में नहीं जाती. इसी तरह पारसी या गैर पारसी महिलाएं माहवारी के समय आतिश बेहराम में नहीं जातीं, भले ही उनकी उम्र कुछ भी हो.''
ईरानी ने कहा कि ये दो सही बयान हैं और बाकी सब मेरा इस्तेमाल करते हुए एजेंडा चलाया जा रहा है. सुबह दिए गए बयान पर हुई आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए मंत्री ने कहा, ‘‘मुझे ये बात हैरान नहीं करती कि एक महिला होने के नाते मैं अपनी बात रखने के लिए आजाद नहीं हूं. जब तक मैं उदार विचार रखती हूं, तब तक मैं स्वीकार्य हूं. यह कैसी उदारता है?”
‘पूजा करने का अधिकार, लेकिन अपवित्र करने का नहीं’
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ प्रदर्शन के बीच केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इससे पहले कहा था कि पूजा करने के अधिकार का यह मतलब नहीं है कि आपको अपवित्र करने का भी अधिकार हासिल है. ईरानी ब्रिटिश उच्चायोग और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित "यंग थिंकर्स" कॉन्फ्रेंस में बोल रही थीं.
ईरानी ने कहा, ‘‘मैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ बोलने वाली कोई नहीं हूं, क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं. लेकिन यह साधारण-सी बात है क्या कि आप माहवारी के खून से सना नैपकिन लेकर चलेंगे और किसी दोस्त के घर में जाएंगे? आप ऐसा नहीं करेंगे.''
क्या आपको लगता है कि भगवान के घर ऐसे जाना सम्मानजनक है? यही फर्क है. मुझे पूजा करने का अधिकार है, लेकिन अपवित्र करने का अधिकार नहीं है. यही फर्क है कि हमें इसे पहचानने और सम्मान करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘‘मैं हिंदू धर्म को मानती हूं और मैंने एक पारसी व्यक्ति से शादी की. मैंने यह सुनिश्चित किया कि मेरे दोनों बच्चे पारसी धर्म को मानें, जो आतिश बेहराम जा सकते हैं.''
आतिश बेहराम पारसियों का प्रार्थना स्थल होता है. ईरानी ने याद किया जब उनके बच्चे आतिश बेहराम के अंदर जाते थे, तो उन्हें सड़क पर या कार में बैठना पड़ता था. उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं अपने नवजात बेटे को आतिश बेहराम लेकर गई, तो मैंने उसे मंदिर के द्वार पर अपने पति को सौंप दिया और बाहर इंतजार किया, क्योंकि मुझे दूर रहने और वहां खड़े न रहने के लिए कहा गया.”
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 28 सितंबर को मंदिर में माहवारी उम्र (10 से 50 साल) की महिलाओं के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हटा दिया था. इसके बावजूद महिलाओं को सबरीमला मंदिर में जाने से रोक दिया गया.
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