सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त को वकील-एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण को अपने बयान पर 'दोबारा विचार' करने के लिए दो-तीन दिन का समय दिया है. भूषण ने इस बयान में कहा था कि न्यायपालिका पर उनके ट्वीट बोलने के कर्त्तव्य को पूरा करने की कोशिश थी और वो दया की मांग नहीं करते हैं. भूषण के इन ट्वीट्स को कोर्ट ने अवमानना माना है.
भूषण ने कहा कि जज जो सजा देना चाहें दे सकते हैं. प्रशांत भूषण बोले:
मैं हैरान हूं कि कोर्ट ने मुझे न्यायपालिका पर ‘दुर्भावनापूर्ण, अपमानजनक हमले’ का दोषी मान लिया. मैं निराश हूं कि कोर्ट इस हमले के पीछे मेरे इरादों का कोई सबूत दिए बिना फैसले पर पहुंच गया.
14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्णा मुरारी की बेंच ने फैसला सुनाया कि प्रशांत भूषण के हाल के दो ट्वीट्स से कोर्ट की अवमानना हुई है. उस दिन कोर्ट ने 20 अगस्त का दिन सजा घोषित करने के लिए तय किया था.
भूषण ने ये बयान इस सुनवाई में दिया, जिसके बाद जजों ने उनसे इस पर दोबारा विचार करने को कहा. कोर्ट का कहना था कि सजा देनी या नहीं देनी पर फैसले से पहले भूषण इस पर विचार कर लें.
जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा. “हम आपको 2-3 दिन का समय दे रहे हैं. आपको इस पर सोचना चाहिए. हमें अभी फैसला नहीं सुनाना चाहिए.” भूषण ने कहा कि उन्होंने बयान ‘सोच-समझकर’ दिया है और वो नहीं समझते कि इसमें कुछ बदलाव होगा लेकिन फिर भी वो सोचेंगे.
जब तक भूषण गलती नहीं मानते, सजा देने में दयालु नहीं हो सकते: SC
सुनवाई असाधारण रही जिसमें भूषण के वकील ने अवमानना के बचाव में सच को लेकर प्रभावी दलीलें दीं. वहीं, ऐसा लगा कि जजों ने माना उन्होंने भूषण का अवमानना के आरोपों पर जवाब का विस्तृत हलफनामा नहीं पढ़ा है.
एक दिलचस्प वाकया ये देखने को मिला कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल भूषण के समर्थन में दिखे. वेणुगोपाल को केस में नोटिस दिया गया था लेकिन उनकी बात अभी तक सुनी नहीं गई थी.
पहले अटॉर्नी जनरल ने सुझाव दिया कि भूषण को सजा नहीं दी जानी चाहिए, और फिर बाद में जब इस बात पर दलीलें दी जा रही थीं कि भूषण का कोर्ट की आलोचना करना वास्तविक है, उन्होंने कहा कि कई रिटायर्ड जजों ने भी यही बात कही है.
जजों ने वेणुगोपाल से कहा कि वो उनके सुझाव तब तक नहीं मान सकते, जब तक भूषण अपने बयान पर दोबारा सोच न लें. जजों ने कहा कि उन्हें देखना होगा कि बयान 'बचाव में था या स्थिति को बढ़ावा देने वाला'.
जजों ने सुनवाई के आखिर में भूषण के लंबे सर्विस रिकॉर्ड और सालों से अच्छाई के लिए उनकी लड़ाई का जिक्र करते हुए कहा कि वो सजा देने में तब तक दयालु नहीं हो सकते, जब तक भूषण अपनी गलती न मान लें.
सुनवाई की शुरुआत में भूषण के वकील दुष्यंत दवे और राजीव धवन ने कोर्ट को उन सभी मामलों की याद दिलाई, जो भूषण ने बिना फीस लिए अच्छाई के लिए लड़े हैं. इनमें कोल स्कैम, 2G, FCRA केस, भ्रष्टाचार के मामले शामिल हैं. दोनों वकीलों ने कहा कि सजा देते समय कोर्ट को इन सब को ध्यान में रखना चाहिए.
जजों ने प्रशांत भूषण को बयान पर दोबारा सोचने के लिए कोई डेडलाइन नहीं दी है और अभी तक ये भी नहीं बताया है कि सजा पर आदेश कब तक आएगा.
हालांकि जजों ने भूषण की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने मांग की थी कि सजा देने को टाल दिया जाए जब तक अवमानना पर फैसले के खिलाफ उनकी रिव्यू पेटिशन नहीं सुनी जाती है, लेकिन फिर भी कोर्ट ने उन्हें आश्वासन दिया कि अगर सजा होती है तो रिव्यू पेटिशन पर फैसले से पहले उस सजा पर अमल नहीं होगा.
भूषण ने अभी तक रिव्यू पेटिशन दाखिल नहीं की है. इसके लिए उनके पास फैसले के बाद से 30 दिन तक का समय है.
कोर्ट ने भूषण का जवाब नहीं पढ़ने की बात मानी?
सुनवाई के दौरान भूषण के वकीलों ने कहा कि कोर्ट की अवमानना कानून का सेक्शन 13 के मुताबिक शख्स को अवमानना के लिए सजा तब तक नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कोर्ट इस बात से संतुष्ट न हो कि अवमानना करने वाली हरकत न्याय प्रशासन में दखलंदाजी करती है. वकीलों ने कहा कि भूषण के मामले में ऐसा कुछ नहीं है.
धवन ने कहा, “इन सुनवाई ने ट्वीट्स से ज्यादा ध्यान खींचा है.”
भूषण के वकीलों ने कहा कि इस कानून का सेक्शन 13 अनुमति देता है कि व्यक्ति जनहित में सच को वैध बचाव के तौर पर दलील में इस्तेमाल कर सकता है और इस आर्टिकल की मांग वास्तविक है.
लाइव लॉ के मुताबिक, इसी दौरान धवन ने कहा कि भूषण के जवाबी हलफनामे में ये बताया गया है कि क्यों उनकी आलोचना वास्तविक है और 'इसे ध्यान में नहीं रखा गया है.'
जिस बात से काफी हैरानी हुई वो था कि ऐसा लगा जजों ने माना उन्होंने हलफनामा नहीं देखा है. जस्टिस मिश्रा ने दावा किया कि दुष्यंत दवे ने 5 अगस्त की मुख्य सुनवाई के दौरान हलफनामे के हिस्सों पर दलीलें दी थीं और बेंच से कहा था कि बाकी हिस्सों को नजरअंदाज कर दें. जस्टिस गवई ने कहा कि दवे ने हलफनामे के सिर्फ पैरा 40 तक ही बात की थी.
जस्टिस गवई ने माना कि हलफनामे के शुरूआती हिस्से को ध्यान में लाया गया है, लेकिन बाकी को नहीं. धवन ने साफ किया कि दावे ने असल में कहा था हलफनामे के बाकी हिस्से को पढ़ना ‘शर्मनाक’ होगा, न कि उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए.
अपने 142 पन्नों के हलफनामे में प्रशांत भूषण ने विस्तृत वजहें दी हैं कि उन्हें क्यों लगता है सुप्रीम कोर्ट ने पिछले छह सालों में लोकतंत्र को नष्ट करने में भूमिका अदा की है. भूषण ने इसमें ये भी बताया था कि उन्हें क्यों लगता है CJI बोबडे के लॉकडाउन में कोर्ट को चलाने के तरीके से न्याय दिए जाने से इनकार किया गया है.
आखिरी के 87 पन्नों में लोकतंत्र के खात्मे के दावे हैं. इनमें पिछले चार चीफ जस्टिस के कार्यकालों में हुए विवादों की लिस्ट भी है.
धवन ने हलफनामे के उस हिस्से का जिक्र किया जिसमें मुख्य न्यायाधीशों के नाम हैं, लेकिन जस्टिस मिश्रा ने उन्हें नाम लेने से रोक दिया. जब धवन ने बिना नाम लिए बोलना शुरू किया, तो जस्टिस मिश्रा ने कहा कि कोर्ट की 'इन सब' में जाने की इच्छा नहीं थी और धवन से आगे बढ़ने को कहा.
इसके बाद जजों ने भूषण को दोबारा सोचने का समय दिया. जब जजों ने भूषण को माफी मांगने का सुझाव दिया तो धवन ने फिर भूषण के प्रामाणिक होने का नजरिया सामने रखा, लेकिन फिर जस्टिस मिश्रा ने उन्हें इसमें जाने से मना किया. जबकि धवन ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज मदन लोकुर के भूषण को समर्थन देने की बात की.
ये वही बात थी जो केके वेणुगोपाल ने कहने की कोशिश की थी, जब उन्होंने कहा था कि उनके पास पांच पूर्व सुप्रीम कोर्ट जजों के नाम की एक लिस्ट है, जिन्होंने कहा है कि लोकतंत्र खतरे में है और नौ जज ऐसे हैं जो कहते हैं कि न्यायपालिका के ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार है.
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