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सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, वकीलों की फीस तय करे सरकार

वकीलों की बढ़ती फीस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि इस वजह से गरीबों को न्याय नहीं मिल पाता

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महंगाई बढ़ने के साथ न्याय पाना भी महंगा होता जा रहा है. वकीलों की बढ़ती फीस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि वकीलों की बेतहाशा बढ़ती फीस की वजह से गरीबों को न्याय नहीं मिल पाता. इसलिए केंद्र सरकार ऐसा कानून बनाए, जिससे वकीलों की अधिकतम फीस निर्धारित की जा सके.

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लॉ कमीशन की रिपोर्ट का हवाला

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने लॉ कमीशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कुछ वरिष्ठ वकीलों की फीस बहुत ज्यादा है. कॉरपोरेट सेक्टर तो ऐसे वकीलों से पैरवी कराने में सक्षम है, लेकिन गरीब तबका ऐसा कर पाने में समर्थ नहीं हैं. बेंच ने कहा कि वकीलों को संविधान के आर्टिकल-39A के तहत अपने कर्तव्यों को हमेशा याद रखना चाहिए. बता दें कि संविधान का आर्टिकल-39A सभी नागरिकों के लिए न्याय तक समान पहुंच की बात करता है.

इसमें कोई शक नहीं कि लीगल प्रफेशन न्याय पाने के लिए बेहद जरूरी है और कानून को बनाए रखने में इसका अहम स्थान है, लेकिन नागरिकों को न्याय दिलाना और उनके मौलिक और अन्य अधिकारों की रक्षा करना भी इस प्रोफेशन का महत्वपूर्ण कर्तव्य है. क्या कानूनी पेशे में किए जा रहे कदाचार के आधार पर किसी को न्याय दिए जाने से रोका जा सकता है?” 
-सुप्रीम कोर्ट बेंच  
जस्टिस गोयल और जस्टिस ललित की बेंच का कहना है कि अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार कानूनी कार्यकलापों में हस्तक्षेप करे, जिससे गरीब लोगों को भी न्याय के लिए वकीलों की व्यवस्था सुनिश्चित हो. ऐसा भी देखा गया है कि वकील अपने मुवक्किल से कोर्ट की दी गई आर्थिक सहायता में भी हिस्सा मांगते हैं. कोर्ट ने कहा कि यह पेशेवर रूप से गलत है और ऐसे वकीलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. 
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'संसद जरूरी कदम उठाये'

वकीलों की ऊंची फीस पर चर्चा करते हुए बेंच ने कहा कि यह संसद का कर्तव्य है कि वह वकालत के पेशे के लिए न्यूनतम और अधिकतम फीस निर्धारित करे. साल 1998 में आई लॉ कमिशन की 131वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि वकीलों की फीस  निर्धारित करने के लिए पहला कदम संसद की ओर से उठाया जाना चाहिए. बेंच ने चिंता जताते हुए कहा कि लॉ कमीशन की रिपोर्ट के इतने सालों बाद भी इस दिशा में कोई कानून नहीं बन पाया है.

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बता दें कि कोर्ट ने ये टिप्पणी एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए की. महिला ने दावा किया था कि एक वकील ने उसे 10 लाख रुपये के चेक पर जबरन हस्ताक्षर करने को मजबूर किया था, जबकि वह वकील की फीस पहले ही दे चुकी थी.

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