सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों के लिए पेंशन में बढ़ोतरी का रास्ता साफ कर दिया है. सर्वोच्च अदालत ने भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जो केरल हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर की गई थी. इस फैसले में केरल हाई कोर्ट ने ईपीएफओ को आदेश दिया था कि वो रिटायर हुए सभी कर्मचारियों को उनकी आखिरी सैलरी के आधार पर पेंशन दे. बता दें कि अभी तक ईपीएफओ अधिकतम 15,000 हजार रुपये तक की सैलरी को आधार बनाते हुए ही पेंशन देता था.
अब पेंशन की गणना (नौकरी में बिताए गए कर्मचारी के कुल साल+2)/70xअंतिम सैलरी के आधार पर होगी. केंद्र सरकार ने साल 1995 में एम्प्लॉयीज पेंशन स्कीम (ईपीएस) की शुरुआत की थी. इसके तहत नियोक्ता को कर्मचारी की सैलरी का 8.33 फीसदी हिस्सा पेंशन स्कीम में जमा करना होता था.
हालांकि यह योगदान 6500 रुपये के 8.33 फीसदी ( या 541 रुपये प्रति माह) तक ही सीमित था. इसके बाद मार्च 1996 में बदलाव किया गया कि अगर कर्मचारी फुल सैलरी के हिसाब से स्कीम में योगदान देना चाहे और नियोक्ता भी राजी हो तो उसे पेंशन भी उसी हिसाब से मिलनी चाहिए.
2014 में हुआ था एक और बदलाव
सितंबर 2014 में ईपीएफओ ने अपने नियमों में एक फिर बदलाव किए. इस बार 15 हजार रुपये के 8.33% तक योगदान को मंजूरी मिल गई. हालांकि, इसके साथ यह नियम भी बनाया गया कि अगर कोई कर्मचारी अपनी पूरी सैलरी पर पेंशन चाहता है तो उसकी पेंशन वाली सैलरी पिछले 5 साल की सैलरी के हिसाब से तय होगी.
इससे पहले तक यह पिछले साल की औसत सैलरी के हिसाब से तय हो रहा था. बाद में केरल हाई कोर्ट ने सितंबर 2014 को हुए बदलाव को रद्द करके पुराना सिस्टम चालू कर दिया. इसके बाद पेंशन वाली सैलरी पिछले साल की औसत सैलरी पर ही तय होने लगी.
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