सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि वो राज्य में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ आंदोलन के दौरान सरकारी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कथित प्रदर्शनकारियों को जिला प्रशासन की ओर से पहले भेजे गए नोटिस पर कार्रवाई न करे.
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य कानून के मुताबिक और नए नियमों के तहत कार्रवाई कर सकता है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने कहा, “पहले के नोटिस के अनुसार कार्रवाई न करें. सभी कार्रवाई नए नियमों के अनुसार होनी चाहिए."
उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि सुनवाई की आखिरी तारीख के बाद से राज्य आगे बढ़ा है और न्यायाधिकरणों का गठन किया गया है और सभी जरूरी नियम बनाए गए हैं.
बेंच ने प्रसाद को नियमों और गठित न्यायाधिकरणों के विवरण के साथ एक जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है. इस मामले में अब दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी.
बेंच परवेज आरिफ टीटू की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उत्तर प्रदेश में सीएए आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए जिला प्रशासन की ओर से कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को रद्द करने का अनुरोध किया गया.
याचिका में आरोप लगाया गया कि ये नोटिस "मनमाने तरीके" से भेजे गए हैं और एक ऐसे व्यक्ति को भी नोटिस भेजा गया जिसकी मौत छह साल पहले 94 साल की उम्र में हो गई थी. इसके अलावा 90 साल से ज्यादा उम्र के दो लोगों सहित कई अन्य लोगों को भी ऐसे नोटिस भेजे गए.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 31 जनवरी को राज्य सरकार को नोटिस जारी कर याचिका पर जवाब देने को कहा था. टीटू ने दलील दी थी कि ये नोटिस इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के एक फैसले पर आधारित थे जो 2009 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय किए गए "दिशानिर्देशों का उल्लंघन है."
(PTI के इनपुट्स समेत)
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