सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को एंट्री की अनुमति देने के फैसले पर कोई रोक नहीं लगायी जाएगी. साथ ही कोर्ट ने कहा कि सभी 49 पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई अगले साल 22 जनवरी को ओपन कोर्ट में होगी.
बीते 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केरल स्थित सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी थी. इस फैसले पर पुर्नविचार करने की मांग को लेकर अब तक 49 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं.
सुप्रीम कोर्ट में आज इन सभी याचिकाओं पर सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविल्कर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच ने सुनवाई की.
याचिकाकर्ताओं की दलील
याचिकाकर्ताओं ने फैसले में प्रक्रियात्मक त्रुटियों का मुद्दा उठाकर मामले की दोबारा सुनवाई की मांग की है. इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि धार्मिक विश्वास को 'तार्किक आधार पर नहीं परखा जा सकता.'
नेशनल एसोसिएशन ऑफ अयप्पा डिवोटीज, नैयर सेवा समाज और 17 अन्य संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने बीते 28 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला देते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 आयुवर्ग की सभी महिलाओं को प्रवेश को मंजूरी दे दी थी. कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश न मिलना उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है.
अदालत की पांच सदस्यीय पीठ में से चार ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया, जबकि पीठ में शामिल एकमात्र महिला जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग राय रखी.
- तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा, "सभी भक्त बराबर हैं और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता."
- जस्टिस एम.एम. खानविलकर ने कहा, "शारीरिक या जैविक आधार पर महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता."
- जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन ने अलग लेकिन समवर्ती फैसला सुनाते हुए कहा कि सभी धर्मों के लोग मंदिर जाते हैं.
- जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भी अलग लेकिन समवर्ती फैसले में कहा, "धर्म महिलाओं को उनके पूजा करने के अधिकार से वंचित नहीं रख सकता.
कोर्ट ने कहा कि सबरीमाला मंदिर किसी संप्रदाय का मंदिर नहीं है. अयप्पा मंदिर हिंदुओं का है, यह कोई अलग इकाई नहीं है.
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