जनरल नॉलेज की किताब छापने वाले आज कल बहुत परेशान हैं, साथ ही जनरल नॉलेज की किताब पढ़ने वाले बच्चों में भी काफी कंफ्यूजन है. ऐसा इसलिए है कि जब तक जनरल नॉलेज वाले यह छापते हैं कि फलां इस राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष बना तब तक कोई और उस पार्टी का अध्यक्ष बन जाता है. लोग इतना जल्दी कपड़े नहीं बदलते हैं जितनी जल्दी यहां कुर्सी पर बैठे लोग बदल रहे हैं.
तमिलनाडु बना उत्तर प्रदेश पार्ट-2
अब उदाहरण उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी परिवार का ही ले लें. पहले पिता मुलायम सिंह यादव ने अनुशासनहीनता के आरोप में बेटे अखिलेश और चचेरे भाई रामगोपाल यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया, फिर थोड़े ही वक्त में पता चला कि पिता मुलायम सिंह को ही पद से हटा दिया गया. मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा. अध्यक्ष पद पर तो कंफ्यूजन बरकरार है लेकिन फिलहाल पार्टी का चुनाव चिह्न अखिलेश के पास है. रुठे मुलायम सिंह चुनाव प्रचार में हैं या नहीं, ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता है.
ऐसा ही कुछ अब तमिलनाडु की राजनीति में भी देखने को मिल रहा है. तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के मरने के बाद से ही एआईएडीएमके पार्टी में अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के लिए रस्सा कशी शुरू हो गई थी.
जयललिता के मरने के बाद पन्नीरसेल्वम ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन कुछ ही दिन बाद एआईएडीएमके में दरार पैदा हो गई और जयललिता की करीबी शशिकला ने खुद मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जता दी, और फिर पन्नीरसेल्वम को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
वो अलग बात है कि आय से अधिक संपत्ति मामले में शशिकला दोषी पाई गईं और अब वो जेल की हवा खा रही हैं.
कहानी में अभी ट्विस्ट बाकी है
अभी कहानी में एक और ट्विस्ट बाकी था, शशिकला ने जेल जाने से पहले पलनीसामी को एआईएडीएमके के विधायक दल का नया नेता चुन लिया और अब पलनीसामी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी बन गए हैं.
लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम ग्रुप चुप कहां बैठने वाला था. शशिकला द्वारा सप्ताह भर पहले पार्टी से बर्खास्त किए जाने के बाद पन्नीरसेल्वम गुट के सदस्य और एआईएडीएमके के पूर्व प्रेजिडियम चैयरमैन ई. मधुसूदनन ने शशिकला को ही पार्टी से निकाल दिया.
और तो और मधुसूदनन ने शशिकला के करीबी और एआईएडीएमके के उपमहासचिव टी.टी.वी. दिनकरन और एस. वेंकटेश को भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से हटा दिया.
लेकिन अब यह समझ नहीं आ रहा कि यह पार्टी किसकी है और कौन किसे किस अधिकार से निकाल रहा है? कंफ्यूजन ही कंफ्यूजन !
खैर, इन राजनीतिक पार्टियों का तो पता नहीं लेकिन एक बात तो साफ है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो जनरल नॉलेज की किताब छापने वाले और उसे पढ़ने वाले बच्चे छपी किताब छोड़ इ-बुक्स का सहारा जरुर ले लेंगे.
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