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संसद में अविश्वास प्रस्ताव की उठी मांग, जानिए क्या है इसका इतिहास

अविश्वास प्रस्ताव का पूरा गणित समझे यहां

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टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस ने केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया है. आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने की वजह ये दोनों पार्टियां नाराज है. और अब अन्य दलों के समर्थन के साथ ऐसा करना चाहती है.

इन्हें प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस और कुछ अन्य दलों का भी समर्थन मिला है. अगर ये अविश्वास प्रस्ताव सदन में पेश हो जाता है तो मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव होगा.

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अविश्वास प्रस्ताव का पूरा गणित समझे यहां
(इंफोग्राफः श्रुति माथुर/क्विंट हिंदी)

अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया जाता है?

अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में विपक्षी पार्टी की तरफ से सरकार के खिलाफ लाया जाने वाला एक प्रस्ताव है. जब विपक्षी दलों में से किसी पार्टी को ऐसा लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सदन का विश्वास खो चुकी है. वैसी स्थिति में पार्टी की तरफ से ये प्रस्ताव लाया जाता है. यह केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता है.

राज्यसभा में कभी भी अविश्वास प्रस्ताव नहीं पेश किया जा सकता है. अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए कम से कम 50 लोक सभा सदस्यों के सपोर्ट की जरूरत होती है.

अविश्वास प्रस्ताव में अगर सरकार के विपक्ष में ज्यादा वोट पड़ गए. मतलब कि सदन में मौजूद कुल सदस्यों में से आधे से एक ज्यादा ने अगर सरकार के खिलाफ वोट दिया तो, उस स्थिति में सरकार गिर जाती है.

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अविश्वास प्रस्ताव का क्या है इतिहास

भारतीय ससंदीय इतिहास में सबसे पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरु की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने संसद में नेहरु सरकार के खिलाफ प्रस्ताव रखा था. लेकिन इसके पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे. जबकि प्रस्ताव के विरोध में 347 वोट.

अब तक सबसे ज्यादा 15 बार अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ लाए गए. वहीं लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव सरकार को तीन-तीन बार ऐसे प्रस्ताव का सामना करना पड़ा.

मोदी सरकार के पिछले चार साल के कार्यकाल में पहली बार उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है.

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