सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक खत्म करके ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच में 3-2 से फैसला ट्रिपल तलाक के खिलाफ आया. कोर्ट ने 395 पन्ने के फैसले की शुरुआत में ही पहले ‘तलाक’ शब्द, उसके मायने और उसके तरीकों के बारे में बताया है. कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को भले असंवैधानिक करार दिया हो लेकिन दो तलाक और हैं जिनके बारे में अब तक कोई बात नहीं हुई है. दिलचस्प ये है कि कोर्ट ने फैसले में इन दो तलाकों का जिक्र भी किया है.
1. तलाक-ए-एहसन
तलाक-ए-एहसन के मुताबिक पति जब पत्नी को एक बार ही तलाक कह दे तो वो तलाक माना जाता है. इसके ठीक बाद इद्दत का वक्त शुरू होता है. ये समय आम तौर पर 90 दिनों का होता है. इस दौरान पति-पत्नी के बीच संबंध नहीं बनते. अगर इन 90 दिनों के दौरान पति-पत्नी संबंध बना लेते हैं तो तलाक खुद-ब-खुद खारिज हो जाता है. यानी, तलाक-ए-एहसन वो तलाक है जिसे घर पर ही पलटा जा सकता है. कोर्ट ने लिखा कि मुस्लिम समाज के बीच तलाक-ए-एहसन को सबसे सही तरीका समझा जाता है.
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2. तलाक-ए-हसन
तलाक-ए-हसन में तलाक-ए-एहसन के उलट तीन बार तलाक कहा जाता है. खास बात ये है कि ये तीन बार, एक साथ न होकर तीन महीनों के दौरान कहना होता है.
पहली बार तलाक कहने के बाद ही पति-पत्नी के बीच संबंध नहीं बन सकते. लेकिन पहला महीना खत्म होने से पहले अगर दोनों के बीच सुलह हो जाती है तो तलाक रद्द मान लिया जाता है. अगर, संबंध नहीं बनते और पति दूसरे और तीसरे महीने भी तलाक बोल देता है तो तलाक, हुआ मान लिया जाता है.
कोर्ट ने लिखा कि तलाक-ए-हसन की मान्यता मुस्लिम समाज में तलाक-ए-एहसन से तो कम है लेकिन फिर भी इसे ठीक समझा जाता है.
3. तलाक-ए-बिद्दत
तीसरे तरह का तलाक वो है जिसको लेकर बीते कुछ वक्त से सुप्रीम कोर्ट में माथापच्ची चल रही थी यानी ट्रिपल तलाक या एक साथ तीन तलाक. इसे दो तरह से दिया जाता है. या तो पति एक साथ तलाक...तलाक...तलाक कहे या कहे कि ‘मैं तुम्हें हमेशा के लिए तलाक देता हूं’. इसी के साथ तलाक लागू हो जाता है.
कोर्ट ने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता के मुताबिक कुरान में तलाक-ए-बिद्दत का कोई जिक्र नहीं है. हालांकि तलाक-ए-बिद्दत कई सदियों से चलन में है. कोर्ट के मुताबिक, मुस्लिम समाज में ट्रिपल तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को अच्छा नहीं समझा जाता और ये इतना चलन में भी नहीं है.
फैसले में लिखा है कि सीधे तौर पर समझा जाए तो तलाक, पति-पत्नी के अलग होने जाने का एक जरिया है जो पति देता है. वहीं ‘खुला’ भी दोनों के अलग होने के लिए ही इस्तेमाल होता है लेकिन इसे पत्नी देती है. एक तीसरी कैटेगरी भी है जिसे ‘मुबारात’ कहा जाता है. इसे पति-पत्नी दोनों की सहमति से लिया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले को 395 पन्नों में लिखा है. जिसमें कुरान और हदीस से कई अंश भी लिए गए हैं.
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