कर्नाटक के उडुपी जिले ( Udupi district, Karnataka) में आठ लड़कियां नए साल के पहले 20 दिनों में सार्वजनिक अग्निपरीक्षा, भावनात्मक उथल-पुथल और गहन जांच से गुजरी हैं. उनके अनुसार उन्हें अपने स्कूल ऑथॉरिटी के हाथों "मानसिक उत्पीड़न" का शिकार होना पड़ा.
सामान्य दिनों के सामान्य स्टूडेंट्स की जगह वो अब अपने क्लास के बाहर सीढ़ियों पर बैठ रही हैं - उन्हें अंदर जाने से रोक दिया गया है. इसका कारण क्या है? उनके सिर पर कपड़े का टुकड़ा, जिसे हिजाब कहते हैं.
गवर्नमेंट पीयू कॉलेज फॉर गर्ल्स में पढ़ने वाली इन लड़कियों की उम्र 16 से 19 साल के बीच है. क्लास के बाहर विरोध करते हुए उनकी तस्वीरें वायरल हो गई हैं, लेकिन उनका कहना है कि बहुत कम लोगों ने उनकी पीड़ा को समझने की कोशिश की है.
जूम कॉल पर द क्विंट से बात करते हुए, यूनिवर्सिटी की ऐसी ही दो छात्राओं, 18 वर्षीय एएच अल्मास और 17 वर्षीय आलिया असदी ने विस्तार से बताया कि उन्हें किन हालातों से गुजरना पड़ा.
आलिया ने कहा कि “हम मुस्लिम हैं, और हिजाब हमारे विश्वास का एक हिस्सा है. इसके साथ ही, हम करियर और अच्छे जीवन की आकांक्षा रखने वाले स्टूडेंट भी हैं. हमसे अचानक अपनी पहचान और अपनी शिक्षा के बीच में से एक चुनने की अपेक्षा क्यों की जाती है? यह बिल्कुल भी उचित नहीं है”
31 दिसंबर 2021 को, जब छात्राएं अपनी-अपनी क्लास में गयीं, तो उनके शिक्षकों ने उन्हें "हिजाब हटाने या क्लास छोड़ देने" के लिए कहा. जबकि लड़कियों को इसकी उम्मीद नहीं थी, वे पूरी तरह से हैरान भी नहीं थीं.
"जब हम पिछले साल यूनिवर्सिटी में शामिल हुए और हिजाब पहनने की कोशिश की, तो हमें बताया गया कि हम नहीं कर सकते क्योंकि हमारे माता-पिता ने हमारे एडमिशन के दौरान एक लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें कहा गया था कि हम यूनिवर्सिटी में हिजाब नहीं पहनेंगे”अल्मास
बाद में लॉकडाउन के बाद से क्लासेज ऑनलाइन हो गईं, लेकिन जब दिसंबर 2021 में फिजिकल क्लासेज (ऑफलाइन) फिर से शुरू हुईं, तो उन्होंने फिर से हिजाब पहनने का फैसला किया है.
अल्मास ने कहा, "हमने वापस जाकर चेक किया. यूनिवर्सिटी में ऐसा कोई आधिकारिक नियम नहीं है और न ही हमारे माता-पिता ऐसी किसी मनमानी पॉलिसी के लिए सहमत हैं. इसलिए हमने किसी तरह हिजाब पहनने का फैसला किया."
लड़कियों को अपने हिजाब के साथ क्लास में आने से प्रतिबंधित किए जाने के कुछ दिनों बाद, कॉलेज अथॉरिटी ने उनके माता-पिता के साथ बैठक की, जिसकी अध्यक्षता कॉलेज की विकास समिति के अध्यक्ष और उडुपी के बीजेपी विधायक के. रघुपति भट ने की. बैठक के बाद स्टूडेंट्स को बताया गया कि स्कूल क्लासों में हिजाब की अनुमति नहीं देने के अपने फैसले पर कायम रहेगा.
हिजाब के खिलाफ भगवा स्कार्फ
छात्राओं का आरोप है कि उन्हें जबरन कॉलेज प्रशासन से माफी मांगने को कहा जा रहा है. अल्मास ने कहा कि "हमें अपना विरोध वापस लेने और माफी मांगने की धमकी दी जा रही है."
कॉलेज के प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा ने इस रिपोर्ट को पब्लिश किए जाने तक द क्विंट के कॉल या मैसेज का जवाब नहीं दिया. बीजेपी विधायक रघुपति ने पहले मैंगलोरियन से कहा था कि लड़कियों को एकरूपता के लिए हिजाब पहनने की अनुमति नहीं दी जा रही है.
विधायक रघुपति ने कहा कि "आज, कुछ छात्राओं ने क्लास के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति देने के लिए कहा है, कल कुछ और स्टूडेंट भगवा शॉल, जींस या बिना स्लीव की ड्रेस पहनने की अनुमति मांगेंगे"
उडुपी हिजाब मुद्दे पर हंगामे के तुरंत बाद, चिकमगलूर में सरकार द्वारा संचालित एक यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स के एक समूह ने हिजाब पहनने वाले छात्राओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिन्हें अपनी गर्दन पर भगवा स्कार्फ पहने देखा गया.
ऐसा ही एक और विरोध मंगलुरु के पोम्पेई कॉलेज में हुआ, जिसमें छात्रों ने भगवा स्कार्फ पहन रखा था. इनमें से कुछ एबीवीपी के थे.
लेकिन उडुपी की लड़कियां जोर देकर कहती हैं कि वे कोई विशेष छूट के लिए नहीं कर रही हैं. आलिया ने कहा, "स्कूल में नियमित रूप से पूजा और अन्य धार्मिक कार्यक्रम होते हैं. और अगर दूसरे स्टूडेंट अपने धार्मिक प्रतीकों को पहनना चाहते हैं, तो हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं है."
'यह हमारी शिक्षा को नुकसान पहुंचा रहा है'
छात्राओं का कहना है कि 20 दिनों से क्लास में नहीं जाने से उनकी शिक्षा और उनके अटेंडेंस पर असर पड़ रहा है. अल्मास ने कहा, "हमारी अटेंडेंस कम हो रही है... हम महत्वपूर्ण चैप्टर्स से चूक रहे हैं. कुछ महीनों में हमारे एग्जाम हैं. हम बहुत घबराए हुए हैं कि फिर क्या होगा"
उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही कुछ हिजाब पहनने वाली छात्राएं बीमार पड़ने लगी हैं, इस विवाद ने उनके शरीर पर भारी असर डाला है.
चूंकि यूनिवर्सिटी भी अब तक अपने रुख पर अड़ा रहा है, छात्राओं के पास बहुत अधिक विकल्प नहीं बचे हैं. आलिया ने कहा, "हम या तो हार मान लें और क्लास में चले जाए या अपने मौलिक अधिकारों के लिए लड़ना जारी रखें. हम मौलिक अधिकारों को चुनते हैं. हम हार नहीं मान रहे हैं."
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