बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एच और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एम शब्द हटा ही दिया जाना चाहिये. ये सुझाव है यूजीसी पैनल का, इस सुझाव के चर्चा में आते ही दोनों विश्वविद्यालयों में बखेड़ा शुरू होने लगा. हालांकि हालात को भांपते हुये बिना देर किए HRD मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर ने साफ कर दिया कि ऐसा कोई फैसला नहीं होने जा रहा है, लेकिन तब तक दोनों ही विश्वविद्यालय में इसको लेकर बयानबाजी शुरू हो गयी थी.
यूजीसी के पैनल ने जिन दो अल्फाबेट एच और एम को हटाने का सुझाव दिया है, दरअसल अब वो अल्फाबेट सिर्फ अल्फाबेट नहीं और इनसे जो शब्द बनते हैं वो सिर्फ शब्द नहीं बल्कि दो समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं. जी हां वो समाज है हिन्दू और मुसलमान. और इनसे थोड़ी भी छेड़छाड़ करना, भले ही किसी भी मानसिकता से की जा रही हो. लेकिन आज के हालात में तो उसे सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक नजरिये से ही देखा जायेगा. जो हो रहा है.
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में जैसे ही इस फरमान को सुना गया, वैसे ही लोगो में हड़कंप मच गया. इस बाबत पूछने पर सब का यही जवाब है कि महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय सिर्फ इसलिये नहीं बनाया कि यहां सिर्फ हिन्दू पढ़ेंगे, बल्कि इसलिये बनाया कि पूर्वांचल के इलाके के हर धर्म सम्प्रदाय के लोग उच्च और आधुनिक शिक्षा ग्रहण करें.
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