उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के हाथरस (Hathras) में गैंगरेप पीड़िता के घर पर जब सितंबर 2020 में मीडिया गया तो परिवार को लगा कि राष्ट्रव्यापी आक्रोश की वजह से उनकी 19 वर्षीय बेटी को जल्द ही इंसाफ मिल जाएगा. गंभीर चोट की वजह से पीड़ित लड़की ने दम तोड़ दिया था, जिसके बाद हाथरस पुलिस और प्रशासन द्वारा रात के अंधेरे में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया. इसके बाद पूरे देश में इस वारदात की चर्चा हुई. दो साल बाद भी सीआरपीएफ फोर्स उनकी सुरक्षा में लगी हुई है. और यह लगातार नजर रखे हैं कि उनसे कौन मिलने आता है.
परिवार ऐसे गांव में रहने से डरता है, जहां चार आरोपी ठाकुर युवकों के लिए व्यापक समर्थन देखने को मिलता है. ठाकुरों और ब्राह्मणों के गांव में केवल दो घर दलितों के हैं, जिसमें से एक रेप पीड़िता का घर है.
दलित परिवार की सुरक्षा खतरे में
जब क्विंट की टीम उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के इस गांव में मृतक पीड़ित के परिवार के घर पहुंची, तो घर की रखवाली कर रहे सीआरपीएफ बलों द्वारा एंट्री-बुक पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया. इसके बाद हमें कहा गया कि अगर हम पीड़िता के भाइयों का इंटरव्यू लेना चाहते हैं तो जिला प्रशासन से अनुमति लें. बहुत समझाने के बाद आखिरकार हमें भाइयों के साथ बातचीत करने दी गई.
मृतक पीड़िता के दूसरे भाई ने कहा कि दो साल हो गए हैं, हम व्यावहारिक रूप से हाउस अरेस्ट में रह रहे हैं. हम किसी काम या नौकरी के लिए नहीं जा रहे हैं क्योंकि गांव के किसी भी भीड़भाड़ वाले इलाके में जाना असुरक्षित होगा.
इसका मतलब यह नहीं है कि परिवार सुरक्षा के महत्व को नहीं समझता है. अगर सीआरपीएफ फोर्स को हटा दिया जाता है तो संभावित रूप से क्या हो सकता है, इसका डर उन्हें सताता रहता है.
उन्होंने कहा कि अगर सुरक्षा हटा दी जाती है, तो यहां बिताए गए हर मिनट हमारे जीवन के लिए एक जोखिम होगा.
परिवार के लिए डर निराधार नहीं है
4 अक्टूबर 2020 को कथित रेप के आरोप में चार ठाकुर युवकों को गिरफ्तार किए जाने के कुछ दिनों बाद बीजेपी नेता और हाथरस के पूर्व विधायक राजवीर दिलेर ने उनके समर्थन में एक रैली का नेतृत्व किया था. रैली में भाग लेने वालों में बजरंग दल, आरएसएस और करणी सेना के सदस्य भी शामिल थे.
मृतक पीड़िता के भाई का कहना है कि,
गांव में आरोपियों का समर्थन कम नहीं हुआ है, बल्कि समय के साथ मजबूत हुआ है. हमारी बहन के साथ बलात्कार और हत्या के बाद से गांव से कोई भी हमसे एक बार भी मिलने नहीं आया है. वे हमें सांत्वना देने भी नहीं आए हैं क्योंकि वे आरोपी के साथ खड़े हैं. यहां सभी लोग आरोपी के साथ खड़े हैं.
'युवकों को रिहा किया जाना चाहिए, वे निर्दोष हैं'
पीड़ित परिवार का घर चारों तरफ से ठाकुर और ब्राह्मण जाति के लोगों से घिरा हुआ है. उनमें से कई घरों में लोग यह दावा करते हैं कि आरोपी बनाए गए लोगों के साथ अन्याय हुआ है.
एक मंदिर के बगल में बैठे राम कुमार ने कहा कि, चारों को गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया, वे निर्दोष थे. आसपास के सभी गांवों में हर कोई आपको यही बताएगा कि वे निर्दोष थे.
उनके आसपास के अन्य लोगों ने भी सहमति जताते हुए जोर से सिर हिलाया.
गांव के विजय सिंह नाम के व्यक्ति ने कहा कि, लड़की के परिवार द्वारा लगाए गए आरोप झूठे थे. बलात्कार कभी नहीं हुआ, बच्चों (आरोपियों) को रिहा किया जाना चाहिए.
दिसंबर 2020 में पीड़िता की मौत के दो महीने बाद, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने आरोप पत्र दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि आरोपियों ने पीड़िता के साथ सामूहिक बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी.
दलित परिवार के पड़ोसी मथन सिंह हाथरस में महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं से पूरी तरह इनकार करते हैं. उन्होंने कहा कि यहां महिलाओं को सारी सुविधाएं मिलती हैं, जबकि हम (पुरुष) अंतहीन काम करते हैं.
दो साल पहले यहां हुए रेप का क्या?
उन्होंने कहा कि वह कुछ भी नहीं था...वह सच नहीं था.
केवल पुरुष ही नहीं इस गांव की महिलाएं भी इसी तरह की बातें करती हैं. उन्नति गहलोत ने कहा कि यहां महिलाओं को कोई परेशान नहीं करता. हम सभी यहां सुरक्षित रूप से रह रहे हैं.
पीड़िता के भाई का कहना है कि आरोपियों को गांव वालों का समर्थन उनकी जाति की वजह से मिलता है. उन्होंने कहा कि वे नहीं देख सकते कि बेटी के साथ कुछ गलत हुआ है, वे केवल जाति देख सकते हैं. जाति उनके लिए सबसे ज्यादा मायने रखती है, मानव का जीवन नहीं.
'हम दलितों की शादियों में जाते हैं...लेकिन वहां खाना नहीं खाते'- गांव में जातिवाद
इस गांव के रहने वाले विजय सिंह ने कहा कि गांव में जातिवाद नहीं है. जब भी किसी दलित परिवार में शादी होती है, तो हम जाकर दूल्हा-दुल्हन को पैसे देते हैं.
उन्होंने फौरन एक और बात कही- लेकिन हम वहां नहीं खाते...हम दलित के घर में कैसे खा सकते हैं? यह मुमकिन नहीं है.
जब उनसे पूछा गया कि क्या ठाकुर और दलित की शादी कभी गांव में हुई है, या भविष्य में कभी होगी, उन्होंने कहा, "नहीं, यहां ऐसा नहीं होता है."
गांव के एक अन्य निवासी सुरेंद्र दलितों सहित गांव में सभी को जानने का दावा करते हैं. उन्होंने कहा कि बेशक मैं दलितों को जानता हूं. मैं गांव में सभी को जानता हूं, इसलिए मैं दलितों को भी जानता हूं."
जब उनसे पूछा गया कि वो किसी दलित के दोस्त हैं...तो वो झुंझलाकर हंस पड़े. उन्होंने कहा “नहीं...क्या दोस्ती” गांवों में इतनी बेरोजगारी और परेशानी है. किसके पास दोस्त बनाने का वक्त है."
सुरेंद्र ने आगे कहा कि सबसे ज्यादा उत्पीड़ित लोग ठाकुर हैं. केवल फिल्मों में उन्हें दबंग (निडर) दिखाया जाता है लेकिन वास्तविक जीवन में वो सबसे अधिक उत्पीड़ित होते हैं."
पीड़िता के भाई ने कहा कि 14 सितंबर 2020 को जब हाथरस गैंगरेप हुआ था, तब इस गांव में चार दलित घर थे. लेकिन इसके बाद के महीनों में, दो दलित परिवार अपनी जान के डर से भाग गए. अब केवल हमारा और एक और घर बचा है."
उनक कहना है कि गांव वालों के व्यवहार और परिवार के प्रति रवैये को "जातिवाद के अलावा कुछ भी" बताने का कोई दूसरा तरीका नहीं है.
देश भर में दलितों पर अत्याचार जारी है, छुआछूत अभी भी है. हमारे साथ भी जो हुआ और हो रहा है, वह जातिवाद है.पीड़िता का भाई
UP सरकार के द्वारा परिवार से अधूरे वादे
29 सितंबर 2020 को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पीड़िता के निधन के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने परिवार से कई वादे किए थे. इनमें मुआवजे के रूप में 25 लाख रुपये, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी और एक घर शामिल है. इनमें से सिर्फ मुआवजे का वादा पूरा किया गया है.
26 जुलाई 2022 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य के अधिकारियों को पीड़ित के परिवार को लिखित में किए गए वादे के मुताबिक पीड़ित के परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी देनी चाहिए. बेंच ने राज्य के अधिकारियों को पीड़ित परिवार को हाथरस से बाहर स्थानांतरित करने पर विचार करने का भी निर्देश दिया था.
पीड़िता के पहले भाई ने कहा कि सरकार की ओर से कोई अन्य मदद नहीं मिल रही है.
सरकार ने जो मुआवजा दिया वह भी जल्दी खत्म हो रहा है. एक बार यह खत्म हो गया, तो हम क्या करेंगे. हमें अपना घर चलाने के लिए, सुनवाई के लिए कोर्ट जाने के लिए उस पैसे का उपयोग करना होगा. हमें वह सब खुद ही व्यवस्थित करना होगा.
नौकरी की कमी का मतलब यह भी है कि परिवार के पास कमाई का कोई स्रोत नहीं है लेकिन परिवार के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज सिर्फ हाथरस से बाहर नहीं, बल्कि आदर्श रूप से उत्तर प्रदेश से बाहर स्थानांतरण है.
यूपी सरकार में सभी का कोई न कोई कनेक्शन है और यूपी सरकार यहां है. अगर हम यूपी से बाहर जाते हैं, तो माहौल अलग हो सकता है. आप यूपी में जहां भी जाते हैं, समाज एक जैसा होता है.
हाथरस जिला अदालत में बलात्कार और हत्या के मामले की सुनवाई चल रही है और सरकार ने कहा था कि मामले को तेजी से सुलझाया जाएगा.
पीड़ित परिवार की वकील सीमा कुशवाहा ने कहा कि दो साल हो गए हैं और हम किसी फैसले के करीब नहीं हैं. शुरू में मामले की हर हफ्ते सुनवाई हो रही थी, लेकिन फिर कोरोना की वजह से कई महीनों तक कोई सुनवाई नहीं हुई. जब सुनवाई फिर से शुरू हुई, तो अब 15 दिन में एक बार होती है.
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